
डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों पर भारत का करारा पलटवार
भारत के खिलाफ डोनाल्ड ट्रंप की धमकी: कूटनीति या दबाव की राजनीति?
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है।
भारत ने रूस से तेल खरीद को उचित ठहराया है।
यूरोप और अमेरिका खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं।
ट्रंप की टिप्पणियां चुनावी एजेंडे का हिस्सा हो सकती हैं।
भारत अब कूटनीतिक रूप से अधिक मुखर हो गया है।
भारत पर ट्रंप की टैरिफ धमकी, रूस से तेल खरीद पर हमला। MEA का कड़ा जवाब, अमेरिकी-यूरोपीय दोहरे मापदंड उजागर।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर भारत को अपने तीखे बयानों के ज़रिए घेरने में लगे हैं। रूस से भारत द्वारा सस्ते तेल की खरीद को लेकर ट्रंप की लगातार बयानबाजी अब न केवल कूटनीतिक मर्यादाओं को लांघती दिख रही है, बल्कि यह अमेरिकी कारोबारी हितों को थोपने का एक सीधा प्रयास प्रतीत होती है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने न सिर्फ भारत पर रूस से भारी मात्रा में तेल खरीदने का आरोप लगाया, बल्कि यह भी कहा कि भारत इस तेल को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बेचकर मुनाफा कमा रहा है और इसलिए अमेरिका को भारतीय आयात पर शुल्क बढ़ाना चाहिए।
लेकिन इस बार भारत ने ट्रंप के इन बयानों पर सधी चुप्पी नहीं, बल्कि ठोस और तथ्यों पर आधारित जवाब दिया है — जिसमें अमेरिकी और यूरोपीय देशों की दोहरी नीति को भी बेनकाब किया गया है।
ट्रंप की धमकी: तेल व्यापार पर टैरिफ की तलवार?
ट्रंप ने ट्रुथ सोशल (Truth Social) पर लिखा कि:
“भारत रूस से सस्ता तेल खरीदता है और उसे खुले बाज़ार में बेचकर मुनाफा कमाता है। इन्हें यूक्रेन में मरते लोगों से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए मैं भारत पर भारी शुल्क लगाने जा रहा हूं।”
यह बयान ऐसे समय आया जब चुनावी माहौल बन रहा है, और ट्रंप अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को दोबारा उभारने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सवाल है — क्या यह बयान भारत को व्यापार वार्ता के लिए मजबूर करने की एक रणनीति है या वैश्विक राजनीतिक दबाव का हिस्सा?
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भारत का सधा हुआ लेकिन कड़ा जवाब
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने भारत की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा:
भारत की प्राथमिकता: अपने नागरिकों को सस्ती और सुलभ ऊर्जा देना।
यूक्रेन युद्ध के बाद परिस्थिति: पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ताओं ने अपना रुख यूरोप की ओर मोड़ लिया।
रूस से व्यापार की मजबूरी: यह भारत की जरूरत है, न कि किसी राजनीतिक पसंद की अभिव्यक्ति।
“भारत को निशाना बनाना अन्यायपूर्ण और अनुचित है। वही देश जो भारत पर उंगली उठा रहे हैं, खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं।”
आंकड़ों में दोहरे मापदंड
▶️ यूरोपीय संघ का व्यापार रूस से (2024):
वस्तु व्यापार: €67.5 अरब यूरो
सेवाओं का व्यापार: €17.2 अरब यूरो
LNG आयात: 16.5 मिलियन टन
▶️ अमेरिका का व्यापार रूस से:
यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड: परमाणु ऊर्जा के लिए
पैलेडियम: इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए
रसायन व उर्वरक: कृषि के लिए आवश्यक
जब अमेरिका और यूरोप स्वयं रूस से व्यापार कर रहे हैं, तो भारत की आलोचना करना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि एकतरफा दबाव की रणनीति भी है।
ट्रंप की बयानबाजी: मक़सद क्या है?
ट्रंप के हालिया बयानों में कई बिंदु स्पष्ट नहीं हैं:
टैरिफ कितना बढ़ाया जाएगा, इसका कोई ज़िक्र नहीं।
यह शुल्क पहले से लगे 25% टैरिफ से अलग होगा या नहीं?
“पेनाल्टी” का कोई स्पष्ट आधार या कानूनी ढांचा नहीं बताया गया।
➡️ यह अस्पष्टता इस ओर इशारा करती है कि यह सब भारत को WTO या द्विपक्षीय व्यापार वार्ता में मनाने का एक टूल है।
थिंक टैंक और विशेषज्ञों की राय
GTRI (Global Trade Research Initiative) ने स्पष्ट किया:
“भारत कच्चा तेल निर्यात नहीं करता। वह रिफाइंड उत्पाद जैसे डीजल और ATF निर्यात करता है।”
इस तरह ट्रंप का दावा कि भारत सस्ता रूसी तेल खरीद कर मुनाफा कमा रहा है, तथ्यों से परे है।
भारतीय आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि:
अमेरिका की यह नीति केवल भारत नहीं, बल्कि अन्य देशों पर भी “मजबूरी में व्यापार नीति” थोपने की रणनीति है।
भारत को अब अधिक सशक्त वैश्विक भूमिका निभानी होगी, जिसमें कूटनीतिक नरमी के बजाय पारदर्शी जवाब हो।
भारत-रूस तेल व्यापार: रणनीतिक जरूरत
भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों का 85% आयात करता है, रूस से मिलने वाला छूट वाला कच्चा तेल उसकी आर्थिक स्थिरता के लिए बेहद जरूरी है।
🔑 कारण:
वैश्विक तेल कीमतों में अस्थिरता
ईंधन सब्सिडी के बोझ को कम करना
आम आदमी को राहत देना
भारत का यह रुख साफ है — राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं, चाहे सामने अमेरिका हो या कोई और ताकत।
क्या अब भारत नई कूटनीति की ओर बढ़ रहा है?
भारत ने ट्रंप के बयानों को खारिज कर यह संकेत दे दिया है कि वह अब ‘लो-प्रोफाइल’ नहीं रहेगा।
➡️ कूटनीतिक संतुलन की नीति अब रणनीतिक मुखरता में बदल रही है।
ट्रंप के बयान चुनावी रणनीति हो सकते हैं, लेकिन भारत के लिए यह अपने हितों की रक्षा का मामला है।
तेल व्यापार को लेकर दोगली वैश्विक नीति पर भारत ने जो सीधी बात रखी है, वह आगे चलकर उसके कूटनीतिक कद को और मज़बूती दे सकती है।