
Donald Trump announcing 100% tariff on pharma imports, Indian pharmaceutical industry worried
ट्रंप का फार्मा टैरिफ और भारत की अर्थव्यवस्था पर असर
जेनेरिक दवाओं पर अमेरिकी बाधा: भारतीय कंपनियों की चिंता
📍 नई दिल्ली | 26 सितम्बर 2025 | असिफ़ ख़ान
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 1 अक्टूबर 2025 से दवा उत्पादों के आयात पर 100% टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह निर्णय भारतीय दवा उद्योग के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है, क्योंकि भारत अमेरिका के जेनेरिक और बायोसिमिलर दवा बाजार का प्रमुख सप्लायर है। यह फैसला सिर्फ़ व्यापार नहीं बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, कूटनीति और स्वास्थ्य क्षेत्र को भी प्रभावित करेगा।
अमेरिका और भारत के दरमियान व्यापारिक रिश्ते हमेशा से वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा तय करते आए हैं। अब जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दवा उत्पादों पर 100% टैरिफ का ऐलान किया है, तो इसका असर सिर्फ़ कंपनियों की बैलेंस शीट तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर मरीजों की ज़िंदगी, हेल्थकेयर सिस्टम और वैश्विक अर्थशास्त्र पर भी होगा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
फार्मास्युटिकल्स इंडस्ट्री किसी एक देश की सीमा में बंधी नहीं। भारत जैसे देशों ने पिछले तीन दशकों में अपनी पहचान एक “फार्मेसी ऑफ़ द वर्ल्ड” के रूप में बनाई है। आज भारत दुनिया भर में सस्ती और भरोसेमंद जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा सप्लायर है।
रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली 45% जेनेरिक दवाएँ भारत से आती हैं, जबकि 15% बायोसिमिलर दवाओं की सप्लाई भी भारत से ही होती है। यह आँकड़े बताते हैं कि ट्रंप का टैरिफ सिर्फ़ भारत के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका के हेल्थकेयर सेक्टर के लिए भी चुनौती है।
आज का शाह टाइम्स ई-पेपर डाउनलोड करें और पढ़ें
भारत पर असर
भारत की दवा कंपनियाँ – डॉ. रेड्डीज, अरबिंदो फार्मा, जाइडस, सन फार्मा, ल्यूपिन, ग्लैंड फार्मा – अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा अमेरिका से कमाती हैं। कई कंपनियों के लिए यह आँकड़ा 30% से 50% तक है।
अब अगर 100% टैरिफ लग जाएगा, तो इन कंपनियों की दवाएँ अमेरिका में महँगी हो जाएँगी। महँगी दवाओं का सीधा असर बिक्री पर होगा, जिससे कंपनियों का मुनाफ़ा घटेगा और शेयर बाज़ार में गिरावट देखने को मिल सकती है।
यह हालात वैसा ही है जैसे किसान ने मेहनत से फसल उगाई और अचानक मंडी पहुँचते ही सरकार ने उसके उत्पाद पर इतना भारी टैक्स लगा दिया कि बेचने का मुनाफ़ा आधा रह गया।
अमेरिकी नज़रिये से
ट्रंप का कहना है कि यह टैरिफ अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देगा। उनका तर्क है कि अगर विदेशी कंपनियाँ अमेरिका में प्लांट नहीं लगाएंगी, तो अमेरिकी कंपनियों को नुकसान होता रहेगा।
लेकिन हकीकत यह है कि दवा उद्योग में फैक्ट्री स्थापित करना और प्रोडक्शन लाइन शिफ्ट करना रातों-रात संभव नहीं। इसमें सालों लग जाते हैं। इस बीच अमेरिकी मरीज महँगी दवाओं की मार झेलेंगे।
आलोचना और चुनौतियाँ
कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम इन्फ्लेशन बढ़ा सकता है। क्योंकि जब दवाओं की कीमत बढ़ेगी, तो आम मरीजों का हेल्थ बजट बिगड़ेगा।
दूसरा बड़ा खतरा है – ग्रोथ स्लोडाउन। व्यापारिक रिश्तों में तनाव से कंपनियों का एक्सपोर्ट घटेगा और विदेशी निवेशक भी सतर्क हो जाएँगे।
नज़रिया
ये फ़ैसला किसी ज़लज़ले से कम नहीं। हिन्दुस्तानी दवा कंपनियाँ जो अब तक अमरीकी नागरिकों को सस्ती दवा देती थीं, अब उन्हें दोहरी मार झेलनी होगी। एक तरफ़ कारोबार की गिरावट और दूसरी तरफ़ बेरोज़गारी का ख़तरा। ये मसला सिर्फ़ व्यापार का नहीं बल्कि इंसानी सेहत से जुड़ा हुआ है।
अगर दवा महँगी होगी तो मरीज़ इलाज से दूर भागेंगे, और ये हालात अमरीका की सोसाइटी को भी झकझोर देंगे।
संभावित समाधान
भारत सरकार को चाहिए कि वह अमेरिका से डिप्लोमैटिक बातचीत शुरू करे और दवा क्षेत्र के लिए राहत की माँग करे।
दूसरी ओर, भारत को अपने एक्सपोर्ट डेस्टिनेशन्स को डाइवर्सिफाई करना होगा। यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका ऐसे बाज़ार हैं जहाँ भारतीय दवाओं की भारी माँग है।
चुनावी रणनीति या आर्थिक नीति?
कई जानकार मानते हैं कि यह निर्णय ट्रंप की इलेक्शन स्ट्रेटेजी है। “America First” का नारा देकर वे घरेलू मतदाताओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे विदेशी कंपनियों के बजाय अमेरिकी कंपनियों की रक्षा कर रहे हैं।
लेकिन लंबी अवधि में यह फैसला उल्टा भी पड़ सकता है, क्योंकि अमेरिकी नागरिक ही महँगी दवाओं से परेशान हो सकते हैं।
निचोड़
दवा पर टैरिफ लगाना केवल ट्रेड पॉलिसी नहीं, बल्कि एक ऐसा कदम है जो सीधे-सीधे इंसान की सेहत और ग्लोबल हेल्थकेयर सिस्टम से जुड़ा हुआ है।
भारत को समझदारी और रणनीति से इस चुनौती का सामना करना होगा।