
Donald Trump addressing UN General Assembly, highlighting global wars,
ट्रंप का संयुक्त राष्ट्र महासभा भाषण: भारत-चीन और रूस-यूक्रेन पर बड़ा बयान
ट्रंप का धमाकेदार भाषण -सात युद्धों का दावा, फिलिस्तीन और यूरोप पर कड़ा रुख
डोनाल्ड ट्रंप ने UNGA में भाषण देते हुए सात जंगें रोकने का दावा किया, भारत-चीन को रूस-यूक्रेन युद्ध का फाइनेंसर बताया और UN की क्षमता पर सवाल उठाए।
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) का मंच हमेशा गंभीर और औपचारिक रहा है। यहाँ नेता आते हैं, पॉवर पॉलिटिक्स की भाषा बोलते हैं, और पूरी दुनिया का ध्यान खींचते हैं। लेकिन इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुरुआत ही कुछ अलग अंदाज़ में की।
जब टेलीप्रॉम्प्टर बंद हो गया
जैसे ही वह पोडियम पर पहुँचे, उनका टेलीप्रॉम्प्टर बंद हो गया। उन्होंने मजाक में कहा – “Teleprompter काम नहीं कर रहा, लेकिन कोई बात नहीं, दिल से बोलना ज़्यादा अच्छा होता है।” हॉल में हँसी गूँज गई। उन्होंने यूएन पर चुटकी लेते हुए कहा – “United Nations मुझे टूटी हुई एस्केलेटर और खराब Teleprompter ही दे सकता है।”
यह हल्का-फुल्का पल था, लेकिन असल में ट्रंप का इशारा गहरा था। वह दिखाना चाहते थे कि यूएन अब एक टूटी हुई मशीन जैसा हो गया है – दिखने में बड़ा, पर काम में कमजोर।
ट्रंप का “वार स्टॉपर” दावा
ट्रंप ने खुद को “War Stopper” बताया। उन्होंने कहा कि उन्होंने सात जंगें रोक दीं। इंडिया-पाकिस्तान और इज़रायल-ईरान के बीच कथित “12-दिन की जंग” को भी उन्होंने खत्म करवाने का श्रेय लिया।
यहाँ सवाल उठता है – क्या वाकई ट्रंप ने ऐसा किया, या यह एक पॉलिटिकल नैरेटिव है? इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ट्रंप अपनी छवि Deal Maker और Crisis Stopper के रूप में गढ़ना चाहते हैं। लेकिन इतिहास में उनके दावों की पुष्टि करना मुश्किल है।
मगर ट्रंप की स्टाइल यही है। वह तथ्यों और दावों को इस तरह पेश करते हैं कि सुनने वाला हिल जाए। यह उनकी पॉलिटिक्स की पहचान है – Shock and Awe।
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इंडिया-चाइना और रूस-यूक्रेन का विवाद
भाषण का सबसे विवादित हिस्सा तब आया जब ट्रंप ने कहा –
“India और China, Russia से तेल खरीदकर यूक्रेन की जंग को फंड कर रहे हैं। वे Primary Financier हैं।”
यह बयान भारत के लिए बड़ा झटका है। इंडिया अपनी Strategic Autonomy यानी स्वतंत्र विदेश नीति पर गर्व करता है। रूस से डिस्काउंटेड ऑयल खरीदना उसकी Energy Security पॉलिसी का हिस्सा है। लेकिन ट्रंप ने इसे युद्ध को फाइनेंस करना बताया।
यहाँ कूटनीतिक पेच साफ दिखता है। अमेरिका चाहता है कि इंडिया रूस से दूरी बनाए, जबकि इंडिया अपनी एनर्जी और जियोपॉलिटिकल ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बैलेंस कर रहा है।
ट्रंप का यह बयान न सिर्फ इंडिया-US रिश्तों में दरार डाल सकता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वॉशिंगटन अभी भी इंडिया की “Neutral Stand” को संदेह की नज़र से देखता है।
NATO और यूरोप पर हमला
ट्रंप ने नाटो देशों को भी बख्शा नहीं। उन्होंने कहा –
“NATO countries are funding war against themselves. They buy oil and gas from Russia and then fight Russia. It’s shameful.”
यह बात सुनकर हॉल में कुछ डिप्लोमैट्स असहज हो गए। ट्रंप का तर्क था कि यूरोप ने रूस पर पूरी तरह एनर्जी बैन नहीं लगाया। यूरोप आज भी अरबों डॉलर का गैस, ऑयल और यहां तक कि यूरेनियम रूस से खरीद रहा है।
ट्रंप ने कहा – “You are fighting Russia while buying from Russia. यह दोहरा खेल है।”
उनका निशाना साफ था – यूरोप कमजोर है, और अमेरिका ही वह ताक़त है जो रूस को रोक सकता है।
क्लाइमेट चेंज पर बड़ा विवाद
ट्रंप ने एक बार फिर अपने पुराने बयान को दोहराया:
“Climate Change is the biggest Hoax on Earth.”
उन्होंने Renewable Energy को “जोकर” कहा और Wind Energy को बेकार बताया। दुनिया भर में जब लीडर्स Sustainability और Green Transition की बात कर रहे हैं, ट्रंप ने इसे “Fraud” करार दिया।
यहाँ सवाल यह है कि ट्रंप क्या वाकई विज्ञान को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं, या यह सिर्फ अमेरिकी Oil & Gas Lobby को खुश करने की रणनीति है?
यह बयान निश्चित तौर पर यूरोप और UN के क्लाइमेट फ्रेमवर्क पर करारा हमला था।
फिलिस्तीन पर सख्त रुख
ट्रंप ने उन देशों को चेतावनी दी जो Palestine को राज्य के रूप में मान्यता दे रहे हैं। उन्होंने कहा –
“यह Hamas को इनाम देना है। यह 7 अक्टूबर जैसे अत्याचारों को Legitimize करना है।”
Middle East में यह बयान आग में घी डालने जैसा है। एक तरफ अरब देश फिलिस्तीन को मान्यता देकर अपनी पॉलिटिकल लीडरशिप दिखाना चाहते हैं, दूसरी ओर अमेरिका और इज़रायल इसे आतंकवाद को बढ़ावा मानते हैं।
ट्रंप के इस बयान से अरब दुनिया में नाराज़गी बढ़ना तय है।
यूरोप का इमिग्रेशन संकट
ट्रंप ने यूरोप को “Invasion Zone” कहा। उन्होंने कहा –
“आपके देश Hell में जा रहे हैं। Millions of illegal migrants आपके देशों में घुस रहे हैं। यह एक आक्रमण है।”
यह बयान कठोर था, लेकिन इसमें आंशिक सच्चाई है। जर्मनी, फ्रांस, इटली जैसे देश शरणार्थियों से जूझ रहे हैं। यूरोप की राजनीति में यह सबसे बड़ा विवाद है।
ट्रंप ने इसे मुद्दा बनाकर अपनी पारंपरिक Anti-Immigration Politics को फिर दोहराया।
अमेरिका का “Golden Age”
भाषण के अंत में ट्रंप ने अमेरिका की ताक़त का बखान किया। उन्होंने कहा –
“America has the strongest Economy, strongest Borders, strongest Military, strongest Spirit. यह America का Golden Age है।”
यह America First नैरेटिव का दोहराव था। यह संदेश उनके घरेलू वोटर्स के लिए भी था, क्योंकि अमेरिकी चुनावी राजनीति में UNGA भाषण अक्सर घरेलू मंच की तरह इस्तेमाल होता है।
UN की भूमिका पर सवाल
ट्रंप ने कहा –
“UN सिर्फ सख्त शब्दों वाले खत लिखता है। खाली शब्द युद्ध नहीं रोक सकते।”
यह कटाक्ष था, लेकिन इसमें हकीकत छुपी है। सीरिया से लेकर यूक्रेन और गाज़ा तक, UN resolutions अक्सर सिर्फ कागज़ी साबित हुए।
लेकिन यह भी सच है कि UN एक मल्टीलेटरल प्लेटफॉर्म है, और इसकी कमजोरी का फायदा अमेरिका जैसे देश उठाते हैं ताकि अपनी Unilateral Power दिखा सकें।
नतीजा: भाषण या चुनावी रैली?
ट्रंप का भाषण सिर्फ अंतरराष्ट्रीय नीति नहीं था, यह एक तरह से चुनावी रैली भी था। उन्होंने तंज कसे, अपने काम गिनाए, और विरोधियों को कमजोर बताया।
लेकिन इस भाषण से एक बात साफ हो गई – ट्रंप जब बोलते हैं, तो दुनिया चुपचाप सुनती है। चाहे आप उनसे सहमत हों या न हों, उन्हें नज़रअंदाज़ करना नामुमकिन है।
उनका यह भाषण UNGA के मंच को एक बार फिर Global Showman की स्टेज बना गया।