HomeEditorialकांग्रेस को अब क्यों याद आ रहे हैं पसमांदा मुसलमान ?

कांग्रेस को अब क्यों याद आ रहे हैं पसमांदा मुसलमान ?

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ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष मंजूर अहमद अंसारी ने कहा कि बुनकरों के लिए राज्य सरकार ने अलग से कोई बजट नहीं रखा

यूसुफ़ अंसारी

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद कांग्रेस उत्साहित है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐलान किया है कि मध्य प्रदेश में इस बार 150 से ज्यादा सीटें जीतकर सत्ता में वापसी करेगी। वहीं राजस्थान में भी कांग्रेस अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मनमुटाव दूर करने की मुहिम में जुटी है। इन सब राजनीतिक गतिविधियों के बीच सबसे अहम बात यह है कि कांग्रेस को भी अब पसमांदा मुसलमान याद आ रहे हैं। सोमवार को कांग्रेस ने इसकी शुरुआत झारखंड की राजधानी रांची में बुनकर जोड़ो भारत जोड़ो कार्यक्रम से की। अहम बात यह है कि बुनकरों का यह सम्मेलन 14 साल के बाद हुआ है।

क्या हुआ बुनकर सम्मेलन में ?

रांची के बुनकर सम्मेलन के बाद कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष इमरान प्रतापगढ़ी ने वह बुनकरों की समस्याओं को संसद में उठाने का आश्वासन दिया है। हालांकि सम्मेलन में बुनकर समाज से जुड़े कई नेताओं ने राज्य में कांग्रेस की साझेदारी वाली हेमंत सोरेन सरकार पर बुनकरों की समस्याओं के समाधान में अनदेखी के गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर, झारखंड सरकार में मंत्री बन्ना गुप्ता और बादल के साथ विधायक अंबा प्रसाद, राजेश कच्छप और इरफान अंसारी की मौजूदगी में झारखंड सरकार के कामकाज पर बुनकर समाज से के नेताओं ने खुलकर आरोप लगाया कि मंत्री बुनकर समाज की समस्याओं को सुलझाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं।

क्या शिकायतें हैं बुनकर समाज की?

ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष मंजूर अहमद अंसारी ने कहा कि बुनकरों को एक के लिए राज्य सरकार ने अलग से कोई बजट नहीं रखा। बिहार के अस्पतालों में बुनकरों का बनाया सतरंगी चादर बिछाया जाता है लेकिन झारखंड में नहीं। पहले बुनकरों की सब्सिडी के लिए 10 करोड़ का बजट था इनमें से 8.32 प्रोसेसर सरेंडर हो गए। यानि इतनी रकम की सब्सिडी नहीं दी गई। फुल करो को सब्सिडी देने की जटिल की प्रक्रिया जटिल कर दी गई है। मंजूर अंसारी ने दो टूक कहा कि जब हमारी सरकार में ही हमारे काम नहीं होंगे तो 6 महीने बाद हम क्या मुंह लेकर जनता के बीच जाएंगे। अगर मुसलमान दूसरी तरफ रुख करने लगेंगे तो हमको नहीं बोलिएगा। मुस्लिम लड़के की मॉब लिंचिंग होती है तो कोई मंत्री, विधायक देखे तक नहीं जाता। वहीं दूसरी कौम वालों को नौकरी दी जा रही हैं। यह समझ नहीं आ रहा है कि सरकार में बैठे हमारे नेता क्या कर रहे हैं।

शिकायतों आरोपों पर इमरान की तसल्ली


बुनकर समाज के नेताओं की दो टूक बाते शिकायतों और आरोपों से इन से संवाद करने पहुंचे कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन इमरान प्रतापगढ़ी कुछ देर के लिए तो सकपका गए। बाद में उन्होंने भरोसा दिया कि जिन राज्यों में कांग्रेस या उनके सहयोगी दलों की सरकारें हैं वहां बुनकरों की समस्याओं को लेकर वह खुद राहुल गांधी से मुलाकात करेंगे‌। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर बुनकरों के हक के लिए अपनी सरकार से भी लड़ने की जरूरत होगी तो वह पीछे नहीं हटेंगे। इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि हम लोग गोडसे के दौर में गांधी के साथ चल रहे हैं। जिन कांग्रेसियों को पार्टी ने कुछ दिया है वह अगर आपको कुछ नहीं लौटा रहे हैं तो उनका कॉलर पकड़ें। कम्युनिकेशन गैप दूर कीजिए। इमरान प्रतापगढ़ी ने बताया कि यूपीए सरकार में बुनकरों के लिए कई तरह की सब्सिडी का प्रावधान था लेकिन केंद्र में सरकार बदलने के बाद बुनकरों को मिलने वाले लाभ बंद कर दिए गए हैं। असली मुद्दे पर आते हुए इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट देकर बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंके।

कांग्रेस समझ गई पसमांदा के वोट की ताकत
अहम सवाल यह है कि पसमांदा मुसलमानों से हमेशा दूरी बनाकर रखने वाली कांग्रेस को अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इनकी याद क्यों आ रही है? सही बात है कि कांग्रेस ने आपस माता मुसलमानों के वोट की ताकत को समझ लिया है इसलिए अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले वह इन्हें अपने झंडे के नीचे लाने की कवायद में जुटी है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस पसमांदा मुसलमानों को साधने की जिम्मेदारी चेयरमैन इमरान प्रतापगढ़ी को सौंपी गई है। इसकी शुरुआत रांची में इस बुनकर संवाद से हुई है। आगे चलकर यूपी-बिहार में भी पसमांदा मुसलमानों के अलग-अलग संगठनों के साथ इसी तरह का संवाद कायम करके उनकी समस्याएं सुनी जाएंगी और उन्हें कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश की जाएगी। इमरान प्रतापगढ़ी ने भरोसा दिलाया है कि कांग्रेस की तरफ से बुनकर समाज के बड़े नेता रहे अब्दुल कयूम अंसारी, आसिम बिहारी और अब्दुल रजाक अंसारी जैसे नेताओं की जयंती और पुण्यतिथि पर कार्यक्रम करके उन्हें और देश और समाज के विकास में उनके योगदान को याद किया जाएगा।

राहुल भी मिले थे पसमांदा मुसलमानों से

गौरतलब है कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने भी पसमांदा मुसलमानों के प्रतिनिधियों से मुलाकात करके उनकी समस्या सुलझाने का भरोसा दिया था। भारत जोड़ो यात्रा पूरी होने के बाद अब इस तरह अलग-अलग राज्यों में संवाद भारत जोड़ो संवाद कार्यक्रम आयोजित करके समाज के अलग-अलग ओर से मिलने का सिलसिला शुरू किया गया है। राहुल गांधी को पसमांदा मुसलमानों की तरफ ध्यान देने के लिए कई वर्षों से कुछ लोग कोशिश कर रहे थे लेकिन तब उन्होंने इस तरफ तवज्जो नहीं दी। इस बीच यूपीए की लगातार 10 साल सरकार रही लेकिन पसमांदा मुसलमानों के मुद्दे जस के तस बने रहे। अब अगर 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले राहुल गांधी भी अगर पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में लाने की मुहिम में जुटे हैं तो इसके पीछे की वजह तलाशना जरूरी है।

पीएम मोदी का मिशन पसमांदा
अगर आज राहुल गांधी पसमांदा मुसलमानों की तरफ ध्यान दे रहे हैं और उन्हें कांग्रेस की तरफ लाने की कोशिश कर रहे हैं तो उसके पीछे सबसे बड़ी वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मिशन पसमांदा है। पिछले साल जुलाई में हैदराबाद में हुई बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम मोदी ने अपनी पार्टी के नेताओं से उत्तर प्रदेश और बिहार में मुसलमानों के बीच पार्टी की पैठ बनाने को कहा था। उसके बाद बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में पसमांदा मुसलमानों के बीच लगातार सम्मेलन करके पार्टी की विचारधारा का प्रचार किया और उन्हें पार्टी से जोड़ने की कोशिश की। हाल ही में उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में अब्दुल्लाह आजम की सदस्यता रद्द होने से खाली हुई स्वार विधानसभा सीट बीजेपी ने अपने सहयोगी अपना दल को दी। अपना दल ने पठानों और नवाबों के इस गढ़ में एक अंसारी उम्मीदवार उतारकर ये सीट जीत ली। इससे ये संदेश गया कि अगले लोकसभा चुनावों में पसमांदा मुसलमान बीजेपी गठबंधन की तरफ जा सकता है। इससे मुसलमानों के वोट के सहारे राजनीति करने वाले सपा, बसपा और कांग्रेस समेत तमाम दलों में बेचैनी है।

सेकुलर दलों में पसमांदा मुसलमानों की अनदेखी
दरअसल कांग्रेस और अन्य सर्कुलर कहे जाने वाले राजनीतिक दलों में फसाना मुसलमान हादसे पर रहे हैं मुसलमानों के नाम पर जहां कांग्रेस में अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद, सलमान खुर्शीद मोहसिना किदवई जैसे अगड़े तबके के मुसलमानों का दबदबा रहा। पिछड़े वर्गों से आने वाले मुस्लिम नेताओं को ना संगठन में जगह मिली है और ना ही सरकार में। विधानसभा लोकसभा का टिकट देने में भी इन्हें हाशिए पर ही रखा गया। आजादी के बाद कांग्रेस में कोई पसमांदा मुसलमान महासचिव पद पर नहीं रह। पसमांदा तबके के मुसलमान विधायक और सांसद जरूर बने लेकिन उन्हें मंत्री बनाने में भी कांग्रेस ने कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों में एकमात्र मंत्री जियाउर रहमान अंसारी रहे। उन्होंने उप मंत्री से लेकर कैबिनेट मंत्री तक का सफर किया। आजादी के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में वह अकेले पसमांदा मुस्लिम तबके से आने वाले मंत्री रहे हैं। बाकी सेकुलर दलों का भी यही हाल रहा है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में आजम खान का दबदबा रहा और बीएसपी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी का। बिहार में राजद में अगड़े तबके के मुसलमान ही संगठन में हावी रहे। 2005 में अली अनवर के नेतृत्व में पसमांदा मुसलमानों ने नीतीश कुमार का साथ देकर आरजेडी की सत्ता पलट दी थी। बाद में उन्हें नीतीश कुमार ने दो बार राज्यसभा का सदस्य बनाया।

पसमांदा मुसलमानों के बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की तरफ बढ़ते झुकाव से सबसे ज्यादा परेशान कांग्रेस है। लिहाजा अब कांग्रेस उन्हें बीजेपी की तरफ जाने से रोकने की में जुटी है। राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी से मुकाबला करने की स्थिति में अकेले कांग्रेस है। ऐसे में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों में पसमांदा मुसलमानों की मौजूदगी राजनीतिक रूप से काफी अहम हो जाती है। इन राज्यों में अगर पसमांदा मुसलमानों का एक हिस्सा बीजेपी की तरफ जाता है तो कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है। 2024 में बीजेपी को हराकर केंद्र की सत्ता में आने का उसक सपना चकनाचूर हो सकता है। यही वजह है कि आज कांग्रेस को भी पसमांदा मुसलमान याद आ रहे हैं। जबकि सत्ता में रहते कभी उसने इनकी समस्याओं के समाधान की तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यहां तक की इसाई और मुसलमान दलितों को अनुसूचित जाति में आरक्षण देने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे में उसने हलफनामा तक दाखिल नहीं किया। लिखना बदले हुए हालात में पसमांदा मुसलमानों के वोट की ताकत को देखते हुए कांग्रेस भी उन पर डोरे डालने को मजबूर दिख रही है।

(लेखक टाइम्स के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक हैं। लेख में व्यक्त विचार इनके निजी हैं)

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