
Sons kicked out elderly parents from home in Bareilly, the couple pleaded for justice.
पुलिस तहरीर पर कर रही जांच, बेटों को थाने बुलाया गया
वरिष्ठ नागरिक संरक्षण कानून की अहमियत
बरेली में बेटों ने बुज़ुर्ग माता-पिता को घर से निकाला। दंपत्ति ने थाने में तहरीर दी। पुलिस जांच कर रही है और न्याय का भरोसा दिलाया गया।
~ इरफान मुनीम
Bareilly,(Shah Times) । बरेली ज़िले के थाना फतेहगंज पश्चिमी क्षेत्र से दिल दहला देने वाली ख़बर सामने आई है। गांव अगरास निवासी आशिक हुसैन और उनकी पत्नी इस्लामन को उनके ही दो बेटों – सज्जाद और शारिक – ने मारपीट कर घर से बाहर निकाल दिया। इस नाजुक उम्र में जहां बुज़ुर्गों को सुकून और सहारा मिलना चाहिए, वहीं उन्हें सड़क पर भटकने को मजबूर होना पड़ा।
आशिक हुसैन ने थाने में तहरीर देकर बयान किया कि दोनों बेटों ने गाली-गलौज और मारपीट की, और जबरन घर से बाहर कर दिया। दंपत्ति ने न्याय की गुहार लगाई है।
पुलिस तहरीर पर कर रही जांच, बेटों को थाने बुलाया गया
थाना प्रभारी अभिषेक सिंह के अनुसार पीड़ित दंपत्ति की तहरीर प्राप्त हुई है। प्राथमिक जांच में पाया गया कि बेटों के साथ विवाद ज़मीन और मकान को लेकर है। पुलिस ने दोनों बेटों को थाने बुलाया है और उचित कार्रवाई का भरोसा दिलाया है।
पुलिस जांच के दौरान जब टीम घर पहुंची तो आरोपी बेटे मौके से भाग खड़े हुए। यह स्थिति साफ़ करती है कि मामला गंभीर है और दबाव में हल निकालना मुश्किल होगा।
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अवैध कब्ज़े और पारिवारिक विवाद से बढ़ी समस्या
आशिक हुसैन और इस्लामन के चार बेटे हैं। आरोप है कि बड़े बेटे ने पूरे मकान पर अवैध कब्ज़ा कर लिया है, जबकि वह संपत्ति चारों बेटों की साझी है। पीड़ित दंपत्ति का कहना है कि महेशपुरा में 400 गज ज़मीन भी है, जिसे चारों बेटों में बराबर बांटा जाना चाहिए।
लेकिन दो बेटों की नीयत साफ़ नहीं है। वे पूरे घर और ज़मीन पर कब्ज़ा जमाना चाहते हैं। यही विवाद अब इतनी गंभीर स्थिति तक पहुंच गया कि बुज़ुर्ग मां-बाप को ही घर से निकाल दिया गया।
समाज और कानून के सामने गंभीर सवाल
यह घटना सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं, बल्कि समाज और कानून दोनों के सामने गंभीर सवाल खड़े करती है।
क्या माता-पिता की सेवा करने का फ़र्ज़ अब संपत्ति की दौड़ में दब चुका है?
क्या बुज़ुर्गों की सुरक्षा के लिए बने क़ानून केवल कागज़ों में सीमित हैं?
क्या ऐसी घटनाएं हमारी तहज़ीब और संस्कारों को कमज़ोर कर रही हैं?
क्या बेटों का यह रवैया पारिवारिक मूल्यों पर चोट है?
इस्लामी तालीम और भारतीय परंपराएं दोनों यह कहती हैं कि वालिदैन की खिदमत औलाद का सबसे बड़ा फ़र्ज़ है। कुरआन शरीफ़ में साफ़ हिदायत है कि मां-बाप की इज़्ज़त करो, उनकी देखभाल करो। लेकिन बरेली की यह घटना बताती है कि ज़मीन-जायदाद के लालच ने रिश्तों की नींव हिला दी है।
संपत्ति विवाद या रिश्तों की दरार – असली कारण क्या?
कानूनन देखा जाए तो मकान और ज़मीन बराबर हिस्सेदारी में बांटी जानी चाहिए। मगर यहां मामला सिर्फ कानूनी हक़ का नहीं, बल्कि मोहब्बत और इज़्ज़त का भी है। बेटों ने न सिर्फ कानूनी दायरे का उल्लंघन किया, बल्कि इंसानी रिश्तों और समाजी उसूलों को भी तार-तार कर दिया।
वरिष्ठ नागरिक संरक्षण कानून की अहमियत
भारत में “Parents and Senior Citizens Maintenance and Welfare Act 2007” लागू है, जिसके तहत बच्चों पर यह ज़िम्मेदारी है कि वे अपने माता-पिता की देखभाल करें। अगर वे ऐसा नहीं करते तो क़ानून सज़ा का प्रावधान देता है।
मगर सवाल यह है कि क्या गांव और छोटे शहरों में इस कानून की जानकारी लोगों को है? ज़्यादातर बुज़ुर्ग कानूनी हक़ और अधिकारों से अनजान रहते हैं। यही वजह है कि उनके साथ नाइंसाफ़ी होती है और न्याय पाने में देर लगती है।
नतीजा – इंसाफ की उम्मीद और समाज की जिम्मेदारी
बरेली की यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि बेटों ने जिस तरह अपने वालिदैन को बेघर किया, वह समाज और मज़हब दोनों की नसीहतों के खिलाफ़ है। यह सिर्फ एक मुकदमा नहीं, बल्कि इंसानियत का इम्तिहान है।
अगर समाज ऐसे मामलों में खामोश रहा तो आने वाली नस्लें बुज़ुर्गों के हक़ और इज़्ज़त से महरूम हो जाएंगी। ज़रूरत है कि पुलिस और अदालतें सख़्ती दिखाएं और समाज भी अपनी ज़िम्मेदारी समझे।
आशिक हुसैन और इस्लामन आज भी यही उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कहीं न कहीं से उन्हें इंसाफ़ ज़रूर मिलेगा।