
कतर बैठक से निकली नई आवाज़: मुस्लिम कम्युनिटी की सियासी और फौजी एकजुटता पर बहस
OIC–अरब लीग दोहा कॉन्फ्रेंस: इजराइल को जवाब देने के लिए इस्लामी दुनिया का इरादा
दोहा में मुस्लिम मुल्कों के 50 नेता इजराइल के खिलाफ OIC–अरब लीग की आपात बैठक में जुटे। पाकिस्तान ने NATO जैसे इस्लामी डिफेंस फोर्स का सुझाव दिया।
इस्लामी उम्माह की इत्तिहाद की पुकार
दोहा की फिज़ाओं में आज एक अलग सा जज़्बा था। पचास मुस्लिम देशों के रहनुमा एक ही मेज़ पर जमा हुए, हाथ में कुरआनी इल्म और दिल में उम्माह की रहनुमाई का एहसास लिए। इजराइल के हालिया हमले ने न सिर्फ़ कतर बल्कि पूरी इस्लामी दुनिया के जज़्बात को झकझोर दिया है। सवाल यह है कि क्या ये बैठक महज़ मुतालबात और तहरीरी बयानात तक सीमित रहेगी या सच में उम्माह एक नये दौर की तरफ़ कदम बढ़ाएगी?
हमले की पृष्ठभूमि
9 सितंबर को दोहा में इजराइली हमला हुआ, जिसमें हमास के पांच अरकान और एक कतरी सुरक्षा अफसर मारे गए। हमले का निशाना हमास चीफ़ खलील अल-हय्या थे। यह वह वक़्त था जब हमास और अमेरिकी नुमाइंदे जंगबंदी पर बात कर रहे थे। कतरी वज़ारते-ख़ारिजा ने इसे “कायराना हमला” बताया और पूरी दुनिया से इजराइल की निंदा करने की गुज़ारिश की।
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ईरान और पाकिस्तान का आक्रामक रुख
ईरानी सदर मसूद पजशकियान ने साफ़ कहा कि “अब वक़्त आ गया है कि तमाम मुस्लिम मुल्क इजराइल से ताल्लुकात ख़त्म करें।” उनकी तहरीर उम्माह के इत्तिहाद की पुकार है।
वहीं पाकिस्तान ने उससे भी एक कदम आगे बढ़कर NATO जैसी इस्लामी फोर्स बनाने का तजवीज़ पेश किया। पाकिस्तानी दिफ़ा वज़ीर ख्वाजा आसिफ ने कहा कि “कोई भी मुल्क ग़ज़ा की जंग से महफ़ूज़ नहीं रहेगा, जब तक इजराइल के खिलाफ जवाबी कार्रवाई न की जाए।”
मुस्लिम वर्ल्ड के सामने चुनौतियाँ
सियासी मतभेद: सऊदी अरब, UAE, मिस्र जैसे मुल्क अक्सर ईरान और तुर्की की पॉलिसी से अलग नज़र आते हैं।
फाइनेंशियल दबाव: बहुत से मुस्लिम मुल्क IMF और पश्चिमी ताक़तों की मदद पर क़ायम हैं।
मुसलसल जंग: ग़ज़ा, यमन, सीरिया और लीबिया जैसी जंगें मुस्लिम दुनिया को बिखेरती रही हैं।
अरब लीग और OIC का किरदार
अरब लीग (1945) और OIC (1969) की तामीर का मक़सद मुस्लिम मुल्कों की सियासी और माली एकजुटता था। लेकिन तारीख़ गवाह है कि अकसर बयानात और प्रस्तावात तक सीमित रह जाने से ये इदारें अपने असल मक़सद को हासिल करने में नाकाम रहे। अब सवाल है, क्या दोहा बैठक इन तहरीरी कमज़ोरियों से आगे बढ़कर एक अमली नक़्शा पेश कर पाएगी?
कतर की लीडरशिप और इम्तहान
कतर ने हमेशा से “मध्यस्थ” का रोल निभाया है, चाहे अफ़ग़ानिस्तान तालिबान और अमेरिका की बातचीत हो या फिर हमास और इस्राईल के बीच ceasefire talks। लेकिन इस बार हमला दोहा की सरज़मीं पर हुआ है। क़तरी प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने साफ़ कहा कि उनकी हुकूमत अपनी सरज़मीं की हिफ़ाज़त करेगी और इजराइल को जवाब देगा।
इजराइल का तर्क और UN में बयान
इजराइली राजदूत डैनी डैनन ने UN में कहा कि दोहा हमला “सटीक निशाना” था और हमास नेताओं पर किया गया था, जिन्हें वह “terror masterminds” बताते हैं। सवाल ये है कि अगर दुनिया भर में किसी भी जगह एक मुल्क दूसरे मुल्क की सरज़मीं पर जाकर हमला करेगा, तो क्या ये अंतरराष्ट्रीय कानून की तौहीन नहीं?
उम्माह की आवाज़: महज़ बयान या अमली कदम?
आज की मीटिंग में सबसे बड़ा सवाल यही है:
क्या मुस्लिम मुल्क वाक़ई इजराइल से ताल्लुकात तोड़ेंगे?
क्या पाकिस्तान की तजवीज़ पर एक “इस्लामिक डिफेंस फोर्स” बन पाएगी?
क्या कतर की सरज़मीं पर हुए हमले को सभी इस्लामी मुल्क अपनी संप्रभुता पर हमला मानेंगे?
एडिटोरियल नज़रिया
इस्लामी एकता की सबसे बड़ी रुकावट हमेशा से आंतरिक इख़्तिलाफ़ रही है। उम्माह में तहरीरी एकजुटता मौजूद है लेकिन अमली इक़दामात की कमी हमेशा दिखी है।
अगर दोहा कॉन्फ्रेंस सिर्फ़ बयानात पर खत्म हुई, तो उम्माह की जनता का एतबार और ज़्यादा गिर जाएगा। लेकिन अगर ये मीटिंग एक अमली नक़्शा लेकर निकलती है—जैसे कि जॉइंट डिफेंस, इकोनॉमिक बॉयकॉट, या इजराइल से मुताल्लिक डिप्लोमैटिक बहिष्कार—तो यह वाक़ई एक नये दौर का आग़ाज़ हो सकता है।
नतीजा
दोहा की बैठक उम्माह के लिए एक historical turning point साबित हो सकती है। अब फैसला मुस्लिम लीडरशिप के हाथ में है: क्या वे बयान से आगे बढ़ेंगे या फिर एक बार फिर उम्माह को मायूस करेंगे?






