
Representational image of the investigation into fraud in the Ayushman Bharat scheme
जब इलाज बन गया धंधा: आयुष्मान योजना के फर्जीवाड़े पर सरकार की सख्ती
📍नई दिल्ली | 🗓️ 12 अक्तूबर 2025✍️ आसिफ़ ख़ान
देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना “आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना” गरीबों के इलाज का सहारा बनी थी। लेकिन अब खुलासों ने दिखाया है कि इस योजना के नाम पर कई निजी अस्पतालों ने करोड़ों की फर्ज़ी क्लेम वसूले। सरकार ने जांच बैठाई है, पर सवाल यह है — क्या फर्ज़ीवाड़े की जड़ें सिर्फ अस्पतालों तक हैं या सिस्टम ही बीमार है?
“सबका साथ, सबका विकास” के नारे के साथ जब प्रधानमंत्री ने 2018 में आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की थी, तब यह देश के करोड़ों ग़रीब परिवारों के लिए उम्मीद की किरण थी। 5 लाख रुपए तक का फ्री इलाज — सुनने में यह किसी क्रांति से कम नहीं था। पर आज वही योजना कुछ राज्यों में ‘मुनाफ़े का मेला’ बन चुकी है, जहाँ इलाज से ज़्यादा चालबाज़ी चल रही है।
फर्ज़ी मरीज और ग़ायब डॉक्टर
हाल ही में केंद्र सरकार की जांच रिपोर्ट ने चौंकाने वाले आंकड़े दिए।
कई राज्यों के अस्पतालों में ऐसे “मरीज” दिखाए गए जो या तो ज़िंदा ही नहीं थे या कभी भर्ती हुए ही नहीं।
कहीं एक ही डॉक्टर एक ही समय में तीन-तीन अस्पतालों में ऑपरेशन कर रहे थे, तो कहीं गाँव के छोटे क्लिनिक से करोड़ों के बिल निकल आए।
उदाहरण के तौर पर, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जांच एजेंसियों ने पाया कि
कई हॉस्पिटल्स ने “डायबिटीज़” और “हार्ट सर्जरी” के नाम पर फर्ज़ी ऑपरेशन दिखाकर क्लेम लिया।
कई मामलों में तो आधार कार्ड नंबर तक डुप्लीकेट पाए गए।
पब्लिक वेलफेयर से प्राइवेट प्रॉफिट तक
योजना का मक़सद गरीब परिवारों को स्वास्थ्य सुरक्षा देना था, लेकिन कुछ प्राइवेट अस्पतालों ने इसे सरकारी सब्सिडी का लूट चैनल बना दिया।
फर्ज़ी बिल, ग़लत रिपोर्ट, और एक जैसे मरीज डेटा के ज़रिए करोड़ों का क्लेम निकाला गया।
अब सवाल है — क्या ये सब बिना सिस्टम की मिलीभगत के मुमकिन है?
जवाब शायद “नहीं” में है। क्योंकि फर्ज़ी क्लेम पास करने से लेकर पेमेंट रिलीज़ तक, हर स्टेप में निगरानी एजेंसी मौजूद होती है। अगर फिर भी करोड़ों निकल गए, तो गलती सिर्फ़ अस्पतालों की नहीं, निगरानी तंत्र की भी है।
सरकारी कार्रवाई: सख़्ती या दिखावा?
केंद्र सरकार ने हाल में करीब 400 अस्पतालों पर कार्रवाई की है।
कई जगह ब्लैकलिस्टिंग और FIR दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं।
नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (NHA) ने नई गाइडलाइन जारी कर कहा है कि अब हर क्लेम को Aadhaar वेरिफिकेशन और लाइव फोटो एविडेंस से जोड़ना अनिवार्य होगा।
लेकिन, सवाल ये है — जब तक सज़ा का डर असली नहीं होगा, क्या सिस्टम सुधरेगा?
क्योंकि, हर बार घोटाले के बाद कुछ अस्पताल बंद होते हैं, कुछ डॉक्टर सस्पेंड, फिर सब पुरानी रफ़्तार पर लौट आता है।
निगरानी की कमजोर कड़ी
भारत में हेल्थ डेटा मैनेजमेंट सिस्टम अभी भी बिखरा हुआ है।
कई राज्य अभी तक रियल-टाइम ऑडिट सिस्टम नहीं अपना पाए हैं।
फर्ज़ी बिलिंग के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में पब्लिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर कमजोर है।
जब सरकारी अस्पतालों में बेड नहीं, दवाइयाँ नहीं, तो लोग मजबूरी में प्राइवेट अस्पतालों की तरफ़ जाते हैं — और वहीं से शुरू होती है लूट की कहानी।
जनता का भरोसा टूटता हुआ
एक आम आदमी जब बीमार पड़ता है, तो उसे डॉक्टर की नहीं, भगवान की उम्मीद होती है।
आयुष्मान कार्ड उसके लिए जीवन रक्षक बनता है। लेकिन जब यही कार्ड फर्ज़ी बिलिंग का ज़रिया बन जाए, तो उस भरोसे का क्या?
गाँव के लोग कहते हैं — “सरकारी योजना तो बनी गरीब के लिए थी, पर कमाई अमीर ने कर ली।”
ये वाक्य सिर्फ़ शिकायत नहीं, बल्कि उस गहरी सामाजिक असमानता का आईना है जो हमारे सिस्टम में जड़ें जमा चुकी है।
क्या समाधान है?
सुधार के लिए केवल कार्रवाई नहीं, बल्कि पारदर्शिता ज़रूरी है।
सरकार को चाहिए कि:
हर क्लेम को ब्लॉकचेन आधारित ट्रैकिंग सिस्टम से जोड़े।
राज्य और केंद्र स्तर पर स्वतंत्र मेडिकल ऑडिट टीम बने।
मरीज को भी क्लेम की रसीद और रिपोर्ट डिजिटल रूप में दी जाए ताकि वह देख सके कि उसके नाम पर क्या दावा हुआ।
अस्पतालों के लिए ग्रेडिंग सिस्टम बने — जैसे कोई “A+ अस्पताल” हो तो जनता भरोसा करे, और खराब रिकॉर्ड वाले संस्थान को तुरंत बाहर किया जाए।
योजना की आत्मा को बचाना होगा
आयुष्मान भारत केवल एक सरकारी प्रोग्राम नहीं, बल्कि गरीब की उम्मीद का नाम है।
अगर उस उम्मीद को भ्रष्टाचार खा जाएगा, तो सबसे बड़ा नुकसान जनता का नहीं, व्यवस्था का होगा।
क्योंकि स्वास्थ्य व्यवस्था की विश्वसनीयता ही किसी देश की असली ताक़त होती है।
आयुष्मान भारत योजना में फर्ज़ीवाड़े रोकने के लिए सरकार के ठोस कदम
आयुष्मान भारत योजना में सामने आए फर्ज़ीवाड़े के बाद अब सरकार ने निगरानी और जवाबदेही की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) ने एक मज़बूत शिकायत निवारण तंत्र (Grievance Redressal System – GRS) लागू किया है, ताकि कोई भी नागरिक या लाभार्थी बिना किसी भय के अनियमितताओं की सूचना दे सके। यह तंत्र सिर्फ़ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि योजना की पारदर्शिता की रीढ़ है — क्योंकि अब शिकायतें सीधे तीन-स्तरीय संरचना के तहत दर्ज और निपटाई जाती हैं।
पहला स्तर ज़िला शिकायत निवारण अधिकारी (DGNO) का है, जो स्थानीय स्तर पर आए मामलों को देखता है। दूसरा स्तर राज्य शिकायत निवारण समिति (SGRC) का है, जिसकी अध्यक्षता राज्य स्वास्थ्य एजेंसी (SHA) के CEO करते हैं। और तीसरा, सबसे ऊँचा स्तर, राष्ट्रीय शिकायत निवारण समिति (NGRC) का है — जो अंतिम अपीलीय प्राधिकरण के रूप में काम करती है। इस समिति की अध्यक्षता NHA के उप CEO करते हैं, और उनका निर्णय अंतिम माना जाता है। यह तीन-स्तरीय व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि कोई भी शिकायत “कागज़ों में दब” न जाए।
अब शिकायत दर्ज करना भी पहले से आसान हुआ है। नागरिक टोल-फ्री नंबर 14555 या 1800-111-565 पर कॉल करके अपनी बात रख सकते हैं, या सीधे PM-JAY पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
लेकिन, सबसे अहम बात यह है कि शिकायत के साथ मज़बूत साक्ष्य देना ज़रूरी है — जैसे ऑडियो या वीडियो रिकॉर्डिंग। यह इसलिए, क्योंकि कई बार शक्तिशाली निजी अस्पतालों के खिलाफ़ बिना सबूत के शिकायतें खारिज कर दी जाती हैं। ऐसे में सबूत न सिर्फ़ शिकायत का आधार हैं, बल्कि न्याय की गारंटी भी।
एक और उल्लेखनीय पहल है मुखबिर संरक्षण प्रणाली (Whistleblower Protection)।
कई बार धोखाधड़ी की जानकारी अंदर से मिलती है — किसी कर्मचारी या संवेदनशील नागरिक द्वारा। इसलिए NHA ने यह सुनिश्चित किया है कि ऐसे मुखबिरों की पहचान गोपनीय रखी जाए, ताकि कोई प्रतिशोध या दबाव न बन सके।
जांच पूरी होने तक उनकी सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता रहती है।
यह संपूर्ण ढांचा दिखाता है कि सरकार अब केवल फर्ज़ीवाड़ा पकड़ने पर नहीं, बल्कि जन-भागीदारी से पारदर्शिता बढ़ाने पर भी ध्यान दे रही है।
क्योंकि, अगर शिकायत दर्ज करने का रास्ता साफ़ और सुरक्षित होगा, तो न सिर्फ़ फर्ज़ीवाड़ा घटेगा, बल्कि योजना पर जनता का भरोसा भी लौटेगा।
आख़िरकार, आयुष्मान भारत का असली मक़सद कागज़ों पर आंकड़े बढ़ाना नहीं, बल्कि हर नागरिक तक स्वास्थ्य की गारंटी पहुँचाना है — और यही उस योजना की असली आत्मा है।
इलाज सिर्फ़ बीमारी का नहीं, सिस्टम का भी ज़रूरी है
अब वक्त है कि सरकार सिर्फ़ फर्ज़ी अस्पतालों पर नहीं, बल्कि अपने सिस्टम की बीमारियों पर भी सर्जरी करे।
योजना की मंशा नेक है, लेकिन नीयत पर सवाल तब उठते हैं जब पारदर्शिता और जवाबदेही गायब हो जाती है।
भारत के पास टेक्नोलॉजी, डेटा और प्रशासनिक ताक़त — सब कुछ है।
बस ज़रूरत है इसे जनहित की दिशा में सही ढंग से इस्तेमाल करने की।