
Gangsterism spreads on the streets of Canada and fear grows among the Indian diaspora.
कनाडा की सड़कों पर खून और खामोशी,प्रवासी भारतीयों में डर, सरकारें खामोश
कनाडा के अबॉट्सफोर्ड में भारतीय मूल के कारोबारी दर्शन सिंह साहसी की गोली मारकर हत्या ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अब कनाडा गैंगस्टरिज़्म का नया हब बन चुका है? लॉरेंस बिश्नोई गैंग के दावे, पंजाबी सिंगर्स पर फायरिंग और संगठित अपराध के राजनीतिक छांव में पलने की कहानी अब डर से कहीं गहरी हो चली है।
📍कनाडा 🗓️29 अक्टूबर 2025 ✍️Asif Khan
कनाडा में बढ़ता गैंगस्टरिज़्म
कभी कनाडा को दुनिया की सबसे सुरक्षित और इंसाफ़पसंद जगहों में गिना जाता था।
आज वही मुल्क गोलीबारी, गैंगवार और चरमपंथी नेटवर्क का नया ठिकाना बन गया है।
ताज़ा मामला अबॉट्सफोर्ड में भारतीय मूल के कारोबारी दर्शन सिंह साहसी की हत्या का है —
जिसकी ज़िम्मेदारी खुलेआम लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने सोशल मीडिया पर ली।
यह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि उस गिरते नैतिक और सामाजिक ढांचे की तस्वीर है
जहाँ अपराध, राजनीति और पहचान की सियासत एक-दूसरे में घुल चुकी हैं।
लॉरेंस बिश्नोई गैंग का अंतरराष्ट्रीय फैलाव
भारत में अपने खूनी ट्रैक रिकॉर्ड के लिए कुख्यात लॉरेंस बिश्नोई गैंग अब
कनाडा में भी अपने पंजे फैला चुका है।
गोल्डी ढिल्लन, जो खुद को बिश्नोई गैंग का सदस्य बताता है,
ने सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर दावा किया कि
“दर्शन सिंह नशे के कारोबार से जुड़े थे और जब हमने पैसे मांगे, उन्होंने इंकार कर दिया।”
यह बयान चाहे सच्चा हो या झूठा —
लेकिन एक बात साफ़ है:
कनाडा में बैठे भारतीय मूल के अपराधी अब सोशल मीडिया को
‘हथियार और मंच’ दोनों की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
वो धमकी भी देते हैं, प्रचार भी करते हैं,
और डर के ज़रिए अपनी मौजूदगी दिखाते हैं।
दर्शन सिंह साहसी की कहानी: मेहनत से लेकर मौत तक
दर्शन सिंह साहसी का सफ़र किसी भी मेहनतकश प्रवासी की तरह था।
खन्ना ज़िले के राजगढ़ गांव से निकले इस शख़्स ने
कनाडा में अपनी मेहनत और लगन से अरबों की कंपनी खड़ी की।
उनकी पहचान एक कर्मठ, मददगार कारोबारी के रूप में थी।
पर अब वही नाम एक “टारगेट” बन गया।
गांव राजगढ़ में मातम पसरा है।
परिवार सदमे में है और कनाडा में बसे भारतीय समुदाय में डर का माहौल है।
उनके रिश्तेदारों ने कहा —
“वो किसी का बुरा नहीं सोचते थे, ना किसी से दुश्मनी रखते थे।”
तो क्या सिर्फ गैंगस्टर की ‘फिरौती’ ठुकराने की सज़ा मौत थी?
या इसके पीछे कोई और खेल है?
कनाडा में सिख गैंग्स, ISI और SFJ का मेल
यहाँ कहानी और गहरी है।
पिछले कुछ वर्षों में कनाडा में BKI (बब्बर खालसा इंटरनेशनल),
SFJ (सिख्स फ़ॉर जस्टिस) और ISI के एजेंट नेटवर्क का प्रभाव बढ़ा है।
ये संगठन खुले तौर पर “ख़ालिस्तान” एजेंडा को हवा देते हैं,
और स्थानीय गैंग्स से रिश्ते बनाकर अपने लिए “ग्राउंड कवरेज” तैयार करते हैं।
जो कल खालिस्तानी चरमपंथ था,
आज वही संगठित अपराध और ड्रग माफ़िया का रूप ले चुका है।
पैसा, पावर और पहचान — यही तीन ‘P’ अब कनाडा की सड़कों पर
खून की कहानी लिख रहे हैं।
सिंगर्स पर फायरिंग, समाज पर असर
दर्शन सिंह की हत्या के बाद कुछ ही दिन में
पंजाबी सिंगर चन्नी नट्टन के घर पर भी फायरिंग हुई।
गोल्डी ढिल्लन ने इस पर भी पोस्ट डाली —
कहा, “नट्टन हमारा दुश्मन नहीं, यह तो चेतावनी है।”
मतलब यह कि अब धमकी देना भी “पब्लिक रिलेशन स्ट्रेटेजी” बन चुका है।
सोशल मीडिया पर गैंग्स के वीडियो, रैप-कल्चर और हथियारों की शेख़ी
युवा पीढ़ी के लिए “एडवेंचर” बन चुकी है।
जिस दौर में गायक सुर से मोहब्बत बाँटते थे,
आज वही दुनिया बंदूकों की ताल पर नाच रही है।
कनाडा सरकार की चुप्पी और भारतीय सरकार की बेचैनी
कनाडा की सरकार बार-बार “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” की आड़ में
ऐसे नेटवर्क्स को खुली हवा देती रही है।
यह वही नीति है जिसने आज हालात यहाँ तक पहुँचा दिए हैं।
भारत कई बार चेतावनी दे चुका है
कि कनाडा की ज़मीन से चल रहे चरमपंथी और अपराधी नेटवर्क
दोनों देशों के रिश्तों को नुक़सान पहुँचा रहे हैं।
लेकिन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार
हर बार “डिप्लोमैटिक बैलेंस” की बात कहकर
मुद्दे को टाल देती है।
अब सवाल यह है कि क्या कनाडा अपनी धरती पर
इस “आपराधिक चरमपंथ” को रोकना चाहता भी है या नहीं?
आर्थिक चमक के पीछे सड़ांध
कनाडा की पॉलिसी और समाज दोनों में
अब एक नैतिक पतन साफ़ दिखता है।
जहाँ अपराधी खुद को सोशल हीरो की तरह पेश करते हैं,
और सरकारें ‘फ्री-स्पीच’ का बहाना लेकर चुप रहती हैं।
यह वही सिस्टम है जहाँ “डॉलर और डर” ने इंसानियत को कुचल दिया है।
गैंगस्टरिज़्म अब सिर्फ अपराध नहीं,
एक “कल्चर” बनता जा रहा है —
जहाँ बच्चों के हाथ में किताब नहीं,
रिवॉल्वर का सपना है।
भारत-कनाडा रिश्तों पर असर
भारत के लिए यह चिंता का विषय है कि
पंजाबी मूल के कई गैंगस्टर कनाडा की नागरिकता या शरण लेकर
वहाँ से ऑपरेशन चला रहे हैं।
नतीजा यह कि दोनों देशों के बीच
विश्वास का पुल अब टूटने की कगार पर है।
भारतीय एजेंसियाँ कई बार
कनाडा से अपराधियों के प्रत्यर्पण की मांग कर चुकी हैं —
पर ज्यादातर मामलों में वहाँ की अदालतें “मानवाधिकार” का हवाला देकर
मामला ठंडे बस्ते में डाल देती हैं।
नैतिक सवाल: क्या यह समाज की हार है?
हर प्रवासी भारतीय के मन में अब यह सवाल है —
क्या मेहनत से काम करने वाला,
कानून मानने वाला इंसान अब सुरक्षित नहीं?
क्या “फिरौती ठुकराने” की सज़ा मौत है?
कनाडा जैसे देश, जो इंसाफ़ और इंसानियत के प्रतीक माने जाते थे,
आज “मॉरल हॉलोनेस” का उदाहरण बन रहे हैं।
जहाँ अपराधी हीरो हैं और निर्दोष पीड़ित गुमनाम।
कनाडा की कहानी अब चेतावनी बन चुकी है —
उन तमाम देशों के लिए जो “स्वतंत्रता” और “सहिष्णुता” के नाम पर
संगठित अपराध और चरमपंथ को जगह दे रहे हैं।
दर्शन सिंह साहसी की हत्या सिर्फ एक केस नहीं,
बल्कि उस दुनिया की झलक है जहाँ
गोलियों की आवाज़ कानून से ज़्यादा तेज़ है।






