
Gaza City burning under Israeli airstrikes as Prime Minister Benjamin Netanyahu faces global criticism — Shah Times.
नरसंहार बहस के दरमियान गाज़ा में मौत और भूख का साया
इज़रायल-गाज़ा जंग: अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ती आलोचना
गाज़ा पर इज़रायली हमले जारी, 31 लोगों की मौत। अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों ने इज़रायल पर नरसंहार के आरोप लगाए, जबकि नेतन्याहू सरकार ने इन दावों को खारिज किया।
गाज़ा में बढ़ते हमले और अंतरराष्ट्रीय चिंता
पिछले 22 महीनों से जारी जंग में इज़रायली फौज ने गाज़ा पट्टी पर अपने कंट्रोल को मज़बूत करने के लिए ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए हैं। ताज़ा हमले में कम से कम 31 लोग मारे गए, जिनमें ज़्यादातर औरतें और बच्चे शामिल हैं। गाज़ा सिटी – जिसे तीन दिन पहले इज़रायल ने युद्ध क्षेत्र घोषित किया था – अब सबसे बड़े निशाने पर है।
इसी बीच, दुनिया भर के नरसंहार विद्वानों ने इज़रायल पर जनसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध और युद्ध अपराध करने के आरोप लगाए हैं।
नरसंहार विशेषज्ञों का आरोप और वैश्विक प्रतिध्वनि
इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ़ जेनोसाइड स्कॉलर्स (IAGS) – जिसमें दुनिया भर के लगभग 500 सदस्य शामिल हैं – ने एक प्रस्ताव पारित करते हुए कहा कि गाज़ा में इज़रायल की नीतियाँ नरसंहार की कानूनी परिभाषा पर खरी उतरती हैं।
इस प्रस्ताव को 86% समर्थन मिला। संगठन की अध्यक्ष प्रोफेसर मेलानी ओ’ब्रायन ने कहा:
“जो लोग जनसंहार अध्ययन के विशेषज्ञ हैं, वे हालात को असली शक्ल में देख सकते हैं।”
यह बयान केवल कानूनी दृष्टि से ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय नैतिक विमर्श में भी इज़रायल की छवि को चुनौती देता है।
इज़रायल का पुरज़ोर खंडन
बेंजामिन नेतन्याहू सरकार ने इन आरोपों को “झूठा और शर्मनाक” बताते हुए कहा कि यह पूरा अभियान हमास की दुष्प्रचार रणनीति का हिस्सा है।
इज़रायली विदेश मंत्रालय का कहना है:
इज़रायल सिर्फ़ हमास के आतंकवादियों को निशाना बना रहा है।
नागरिकों की मौत के लिए हमास ज़िम्मेदार है क्योंकि वह घनी आबादी वाले इलाकों में छिपा है।
आंतरिक इज़रायली आलोचना और मानवीय प्रश्न
दिलचस्प बात यह है कि दो इज़रायली मानवाधिकार संगठन – बी’त्सेलेम और फ़िज़िशियन फ़ॉर ह्यूमन राइट्स-इज़राइल – ने भी गाज़ा में नरसंहार का आरोप लगाया था।
हालांकि ये संगठन मुख्यधारा की इज़रायली सोच का प्रतिनिधित्व नहीं करते, लेकिन यह पहली बार था कि स्थानीय यहूदी-नेतृत्व वाले समूहों ने इस स्तर का आरोप लगाया।
साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों ने भी बार-बार यही मुद्दा उठाया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आलोचना केवल राजनीतिक प्रोपेगैंडा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मानवीय आधार भी गहरा है।
गाज़ा सिटी का हाल: जंग और भुखमरी
गाज़ा सिटी अब दोहरी तबाही का सामना कर रहा है –
युद्ध का ख़तरा: हवाई हमले और ज़मीनी गोलाबारी।
भुखमरी का संकट: खाद्य आपूर्ति टूट चुकी है।
संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य विशेषज्ञ पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि गाज़ा अकाल की स्थिति में प्रवेश कर चुका है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार:
अब तक 63,557 फ़िलिस्तीनी मारे गए।
1,60,660 घायल।
मृतकों में आधे से ज़्यादा महिलाएँ और बच्चे।
हालांकि इज़रायल इन आँकड़ों पर सवाल उठाता है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र समेत स्वतंत्र संस्थाएँ इन्हें सबसे विश्वसनीय आकलन मानती हैं।
नरसंहार का कानूनी बनाम राजनीतिक विमर्श
नरसंहार की कानूनी परिभाषा जटिल है। इसमें शामिल होता है –
किसी जातीय, धार्मिक या राष्ट्रीय समूह का व्यवस्थित रूप से सफाया।
इसके लिए ज़रूरी है इरादे का सबूत।
इज़रायल का तर्क: उनका उद्देश्य हमास का सफाया है, न कि पूरे फ़िलिस्तीनी समाज का।
आलोचकों का तर्क: महिलाओं और बच्चों की मौतें, स्वास्थ्य और भोजन की नाकाबंदी, और पूरे शहर का विनाश – ये सब इरादतन जनसंहार की मिसालें हैं।
यहां पर कानून और राजनीति आपस में टकराते हैं। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों में ऐसी दलीलें सालों तक चल सकती हैं, जबकि जमीनी स्तर पर लोग तुरंत प्रभावित होते हैं।
आतंकवाद और सुरक्षा दलील
इज़रायल का कहना है कि 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने बड़े आतंकी हमले में सैकड़ों लोगों की जान ली थी।
ऐसे हालात में किसी भी राष्ट्र का पहला कर्तव्य अपनी सुरक्षा है।
अमेरिका और कई यूरोपीय देशों का मानना है कि इज़रायल को आतंकवाद से लड़ने का हक़ है।
मगर सवाल यह उठता है कि आतंकवाद से लड़ाई और नागरिक जनसंहार के बीच रेखा कहाँ खींची जाएगी?
इंसानी त्रासदी और वैश्विक ज़िम्मेदारी
गाज़ा की जंग केवल राजनीतिक विवाद नहीं रही, बल्कि यह अब एक मानव त्रासदी बन चुकी है।
एक ओर इज़रायल अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देता है।
दूसरी ओर लाखों फ़िलिस्तीनी युद्ध और भूख के दोहरे शिकंजे में हैं।
यह स्थिति अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए एक गंभीर चुनौती है – क्या वे केवल राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित रहेंगे या वास्तव में मानवीय हस्तक्षेप करेंगे?
इतिहास गवाह है कि जब दुनिया ने नरसंहारों पर चुप्पी साधी, तब उसका परिणाम और भी खतरनाक रहा। गाज़ा अब वही नैतिक परीक्षा बन चुका है।