
चिकित्सा के क्षेत्र में गूगल का ‘बड़ा ज्ञान’ जान लेवा साबित
हैदराबाद । तकनीक की तेज रफ्तार विकास के साथ छोटे-से छोटे और बड़े से बड़े ‘ज्ञान’ के लिए लोगों की गूगल पर निर्भरता बढ़ गयी है लेकिन चिकित्सा के क्षेत्र में गूगल का ‘बड़ा ज्ञान’ जान लेवा साबित हो सकता है।
इस संदर्भ में सिकंदराबाद (Secunderabad) की ताजा रिपोर्ट का जिक्र किया जा सकता है जिसमें एक पिता का ‘इंटरनेट टीचर’ की ‘शिक्षा’ से अपनी बेटी की बीमारी का इलाज करना महंगा पड़ा और उसे (बेटी) गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना करना पड़ा। पिता के सुझाने पर बेटी ने किडनी में स्टोन की समस्या से संबंधित परेशानी को लेकर कई बार एंटीबायोटिक का कोर्स शुरु किया लेकिन उन्हें बीच में ही छोड़ दिया जिसके परिणामस्वरूप किडनी में गंभीर संक्रमण हो गया और मैट्रिक्स नामक पत्थर जैसी संरचनाएं बन गईं।
सिकंदराबाद (Secunderabad) के एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ नेफ्रोलॉजी एंड यूरोलॉजी (AINU) के डॉक्टर ने मरीज का सफलतापूर्वक इलाज किया और उसे राहत दी।
एआईएनयू के सलाहकार यूरोलॉजिस्ट डॉ. राघवेंद्र कुलकर्णी (Urologist Dr. Raghavendra Kulkarni) ने शुक्रवार को यहां एक विज्ञप्ति में कहा कि गुर्दे की पथरी से जूझ रही एक महिला आर्किटेक्ट ने पथरी निकालने के प्रयास व्यर्थ साबित होने पर दूसरी राय के लिए एआईएनयू की ओर रुख किया। सीटी स्कैन से किडनी में 10-13 मिमी आकार के कई स्टोन का पिता चला जिनमें से केवल दो वास्तविक में स्टोन थे बाकी सब मैट्रिक्स में तब्दील हो गये थे।
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डेढ़ साल पहले, मरीज की किडनी की पथरी के इलाज के लिए सर्जरी हुई थी, लेकिन कुछ समस्याएँ बनी रहीं। बार-बार प्रकट होने वाले यूटीआई लक्षणों के लिए उसने डॉक्टर के पास जाने के बजाय, अपने पिता की सलाह पर कई बार अधूरा एंटीबायोटिक कोर्स किया। डॉ. कुलकर्णी ने कहा, “इससे एंटीबायोटिक प्रतिरोध और बैक्टीरियल प्रोटीन प्रीसिपिटेट्स पैदा हुआ, जिससे मैट्रिक्स का निर्माण हुआ।”
उन्होंने कहा,“आम जनता को चिकित्सकों की कई वर्षों की मेहनत को ‘सेकेंड’ में चुनौती देकर अपने स्वास्थ्य के साथ घातक प्रयोग नहीं करना चाहिए। आखिर ‘गूगल गुरु’ का भी तो कोई गुरु है।”






