
Ethiopian volcanic ash reaches India, flights cancelled, Delhi's AQI crosses 400. Scientists warn impact expected to subside by evening.
राख का तूफ़ान और भारत की उड़ानें: सबक क्या है?
आसमान धुंधला, सवाल साफ़: क्या हम तैयार थे?
इथियोपिया के हायली गुब्बी ज्वालामुखी के विस्फोट के बाद राख का बादल तेज़ हवाओं के साथ भारत तक पहुंच गया. दिल्ली, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के आसमान में धुंधलापन और कई एयरलाइंस की उड़ानें रद्द. वैज्ञानिकों ने कहा कि सतही वायु गुणवत्ता पर असर सीमित होगा, लेकिन aviation सेक्टर के लिए खतरा बरक़रार.
📍 नई दिल्ली 🗓️25 नवम्बर 2025 ✍️आसिफ़ खान
दिल्ली की सुबह का आसमान जब अचानक धुंधली सिल्वर ग्रे चादर में लिपटा नज़र आया, तो ज़्यादातर लोगों ने इसे सामान्य स्मॉग समझा. लेकिन हक़ीक़त कुछ और थी. दूर अफ्रीका के इथियोपिया में मौजूद हायली गुब्बी ज्वालामुखी के अचानक हुए विस्फोट के बाद उठा राख का गुबार हवा के तेज़ रुख और ऊंचाई पर पवन की गति के साथ लगभग साढ़े चार हज़ार किलोमीटर की दूरी तय करते हुए भारत तक पहुंच चुका था. यह ख़बर चौंकाती है, मगर विज्ञान इसे असंभव नहीं मानता. ऊंचाई पर तेज़ हवाएं राख को continent से continent ले जा सकती हैं.
लोग सोचते हैं कि ज्वालामुखी की राख केवल स्थानीय तबाही का कारण बनती है. मगर कहानी कहीं ज़्यादा बड़ी है. राख में सल्फ़र डाइऑक्साइड, चट्टानों और volcanic glass के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं, जो विमान के इंजनों को नुकसान पहुँचा सकते हैं. जहाज़ के टर्बाइन में जा कर यह राख पिघल कर कांच जैसी परत बना देती है और इंजन बंद होने का ख़तरा पैदा होता है. यही वजह है कि aviation दुनिया में volcanic ash को सबसे ख़तरनाक atmospheric hazards में गिना जाता है.
दिल्ली के आनंद विहार, एम्स और सफदरजंग के आसपास AQI 400 से ऊपर गया और हवा बेहद ख़तरनाक कैटेगरी में पहुंची. लोगों ने आँखों में जलन, गले में irritation और सांस में heaviness महसूस किया. लेकिन यहाँ एक ज़रूरी सवाल उठता है: क्या यह पूरा प्रदूषण volcanic ash की वजह से है या हमारे अपने emission disorder का आईना?
असलियत यह है कि सतही स्तर पर प्रदूषण का बड़ा हिस्सा अब भी स्थानीय स्रोतों से आता है. शहरों में यातायात, उद्योग, निर्माण धूल और crop burning से हालत पहले ही बदतर थी. volcanic ash ने इसे केवल एक additional layer की तरह push किया. यानी संकट कहीं बाहर से नहीं आया. बीज हमारे अपने भीतर गड़े थे.
DGCA ने चेतावनी जारी की, advised alternate flight routes and engine checks. Akasa, Indigo और international carriers ने rerouting किया, कई उड़ानों को suspend भी करना पड़ा. Air India ने precautionary inspection mandatory कर दी और कुछ flights रद्द कीं. सवाल यह है कि क्या हम आपदा के बाद ही सतर्क होते हैं? क्या हमारी सिस्टम planning हमेशा reactive ही रहेगी?
वैज्ञानिकों ने कहा कि surface air quality पर effect limited रहेगा लेकिन 25,000 से 45,000 feet altitude पर उड़ानों पर risk real है. Aviation experts कहते हैं कि global weather pattern unpredictable होता जा रहा है. कहीं cloudburst भारी तबाही ला रहे हैं, कहीं समुद्री तूफ़ान का calendar बदल गया है, और अब volcanic winds हजारों किलोमीटर दूर देशों को प्रभावित कर देती हैं.
यहां counter-point ज़रूरी है. क्या हमें हर असामान्य घटना का कारण climate change मान लेना चाहिए? या scientific evidence के साथ इंतज़ार करना चाहिए? Exaggeration narrative निर्माण में मदद करता है, लेकिन सच की कीमत पर नहीं. यही journalism की असली परीक्षा है.
कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि अगर यह राख चीन की ओर move कर रही है तो panic क्यों? जवाब simple है. Panic नहीं, preparedness. जो समाज समझदारी से सवाल पूछता है, वही जवाब खोज पाता है. यह घटना remind करती है कि global events local life को reshape कर सकते हैं. Boundaries आज symbolic हैं. हवा passports नहीं देखती.
भारत के वैज्ञानिकों ने कहा कि राख शाम तक move हो जाएगी. यह बयान confidence देता है, लेकिन इससे governance की ज़िम्मेदारी खत्म नहीं होती. Problem सिर्फ visibility reduction नहीं. Medical side में भी कई खतरे quietly छिपे होते हैं. सांस की बीमारी, asthma, heart patients के लिए risk immediate होता है.
हमारे लिए बड़ा सवाल है: क्या हम हर साल बीमार हवा को normal मानते जाएंगे? क्या हर आपदा के बाद only temporary action ही response रहेगा? क्या सरकारें, उद्योग और नागरिक मिलकर long-term blueprint बनाएंगे या केवल emergency bulletins लिखते रहेंगे?
दूसरी तरफ यह तथ्य भी स्वीकार करना चाहिए कि aviation रिकॉर्ड के हिसाब से precautionary cancellations best safety decisions होते हैं. Passenger safety must always be priority. Risk को underestimate करना सबसे बड़ी ग़लती होती. जो उड़ानें रोकी गईं, उन्होंने lives बचाईं.
कुछ voices यह कहती हैं कि economic loss avoidable था. लेकिन क्या economy human safety से बड़ी हो सकती है? Answer self explanatory है. Risk management कभी luxury नहीं होता, यह discipline है.
दिल्ली का सामाजिक psychology भी इस event में दिखा. लोग हवा का रंग देखकर घबराए, masked भीड़ फिर से visible हुई. अचानक स्वास्थ्य और पर्यावरण public conversation का हिस्सा बन गया. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह discussion कुछ दिनों में गायब हो जाएगा?
सच्चाई यह है कि अगर इस राख की घटना ने हमें only एक बात सिखाई है, तो वह यह कि हवा global है. Pollution local नहीं रहता. किसी भी देश की environmental crisis दूसरे देशों को प्रभावित कर सकती है. हम अकेले नहीं हैं. यह दुनिया एक linked ecosystem है.
अब alternative perspective. क्या यह event short-term disturbance है या warning संकेत? अगर हम इसे wake-up call समझें तो progress possible है. अगर इसे सिर्फ one-day headline मान लें तो यह missed lesson होगा.
Science, governance, aviation और नागरिक जिम्मेदारी, चारों को मिलकर काम करने की ज़रूरत है. Awareness must become action. अगर हम खुद हवा के मालिक नहीं हैं, तो उसके caretaker बनने से भी पीछे क्यों?




