
गाजा पर कहर: हमास ने इस्लामिक दुनिया को बताया कसूरवार
इजरायल पर फिर फायरिंग का इल्ज़ाम, हमास ने जताई नाराज़गी
Shah Times Editorial
गाजा में हमास और इजरायल संघर्ष के दरमियान 32 फलस्तीनियों की मौत, हमास ने मुस्लिम मुल्कों की ख़ामोशी को नरसंहार में सहभागिता करार दिया।
इजरायल-हमास संघर्ष का घटनाक्रम दिन-ब-दिन और अधिक भयावह होता जा रहा है। हाल ही में गाजा में हुई एक और घटना ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को झकझोर दिया है। गाजा में राहत सामग्री लेने पहुंचे फलस्तीनी नागरिकों पर इजरायली सैनिकों द्वारा की गई गोलीबारी में 32 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हुए। इस घटना के बाद हमास ने इजरायल पर युद्धविराम विफल करने का आरोप लगाया और साथ ही अरब व इस्लामी देशों की चुप्पी को भी गाजा के नरसंहार में सहभागी बताया।
गाजा में हो रही फायरिंग और मानवीय संकट
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सात सप्ताहों में राहत केंद्रों के पास इजरायली गोलीबारी में करीब 900 फलस्तीनियों की जान जा चुकी है। इजरायल का तर्क है कि वह सिर्फ चेतावनी देने के लिए हवा में फायर करता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, यह फायरिंग सीधे नागरिकों को लक्ष्य बनाकर की जाती है, खासकर उन स्थानों पर जहां खाद्य सामग्री और मानवीय सहायता वितरित की जाती है।
गाजा में राहत कार्य में लगे अमेरिकी संगठन जीएचएफ के अनुसार, हालिया घटना उनके वितरण केंद्र के पास नहीं हुई, लेकिन यह जरूर बताया गया कि लोग सुबह होने से पहले अंधेरे में लाइन में लग गए थे ताकि सामग्री मिल सके। इस बीच इजरायली सेना को यह गतिविधि संदिग्ध लगी और फायरिंग कर दी गई।
युद्धविराम और बंदियों की रिहाई पर गतिरोध
हमास ने साफ किया है कि वह व्यापक युद्धविराम के लिए तैयार है, जिसमें गाजा से सभी बंदियों की एक साथ रिहाई भी शामिल है। लेकिन इजरायल की ओर से बार-बार इस प्रस्ताव को नकारा गया है। हमास की सैन्य शाखा अल-कसम ब्रिगेड के प्रवक्ता अबू ओबैदा ने बयान जारी कर कहा कि इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू और उनकी सरकार शांति प्रस्तावों में कोई रुचि नहीं दिखा रही है। इसके बजाय वे जनता को यह मानसिक तैयारी करा रहे हैं कि सभी बंदी मारे जा सकते हैं।
इस राजनीतिक गतिरोध के चलते न केवल युद्धविराम की संभावनाएं धुंधली होती जा रही हैं, बल्कि गाजा में आम नागरिकों की स्थिति और भी नाजुक होती जा रही है। मार्च में हुए युद्धविराम के टूटने के बाद से इजरायल लगातार गाजा पर बमबारी कर रहा है और अब तक इस संघर्ष में 58,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।
हमास की नाराजगी और इस्लामिक देशों की भूमिका
हमास ने इस बार अपने बयान में अरब और इस्लामी देशों पर भी कड़ा प्रहार किया है। अबू ओबैदा ने कहा कि इस्लामी दुनिया की चुप्पी उन्हें गाजा नरसंहार का भागीदार बनाती है। उन्होंने कहा कि हम किसी भी देश को दोषमुक्त नहीं कर सकते क्योंकि इनकी निष्क्रियता ने इजरायल को और अधिक हिंसक कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है।
ओबैदा ने विशेष रूप से उन अरब देशों को निशाना बनाया जिनके पास सैन्य क्षमता है लेकिन उन्होंने गाजा की रक्षा में कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने कहा, “इन मुल्कों के सिर पर हजारों निर्दोषों के खून का बोझ है, क्योंकि इनकी चुप्पी ने इजरायल को यह विश्वास दिलाया कि उसके खिलाफ कोई खड़ा नहीं होगा।”
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं और अमेरिका की भूमिका
इस पूरे परिदृश्य में अमेरिका की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। दोहा में चल रही वार्ताओं में अमेरिका मध्यस्थता कर रहा है, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने संकेत दिया है कि गाजा में बंधक बनाए गए इजरायली नागरिकों की जल्द रिहाई हो सकती है, लेकिन यह बयान भी राजनीतिक और सामरिक दबाव में दिया गया लगता है।
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मानवाधिकार संगठनों की चेतावनी
मानवाधिकार संगठनों ने बार-बार चेतावनी दी है कि गाजा में हो रहे हमले अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन हैं। राहत संगठनों का मानना है कि नागरिकों को जानबूझकर निशाना बनाना, विशेषकर जब वे सहायता लेने के लिए एकत्रित होते हैं, एक युद्ध अपराध की श्रेणी में आता है।
हमास और इजरायल की रणनीतिक जंग
हमास की रणनीति इस बार न केवल सैन्य संघर्ष तक सीमित है, बल्कि वह कूटनीतिक मोर्चे पर भी इजरायल को घेरने की कोशिश कर रहा है। अबू ओबैदा का बयान इसी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह वैश्विक जनमत को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर, इजरायल इस युद्ध को पूरी तरह सैन्य दृष्टिकोण से देख रहा है, जहां उसका उद्देश्य हमास को पूरी तरह कमजोर करना है, चाहे इसकी कीमत आम लोगों की जान क्यों न हो।
क्या अमन की कोई राह बची है?
इजरायल और हमास के बीच जारी यह संघर्ष न केवल मध्य पूर्व की स्थिरता को खतरे में डाल रहा है, बल्कि वैश्विक मानवता के सामने भी एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर रहा है। अरब और इस्लामी देशों की चुप्पी, संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता और वैश्विक शक्तियों की दोहरी नीति ने इस संघर्ष को और जटिल बना दिया है।
अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अब भी हस्तक्षेप नहीं किया, तो गाजा में मानवीय संकट और भी गहरा हो जाएगा। अब वक्त है कि मुस्लिम दुनिया अपने कर्तव्यों को समझे और फलस्तीन के पक्ष में स्पष्ट और निर्णायक कदम उठाए। क्योंकि चुप्पी अब केवल मौन नहीं, बल्कि सहभागिता मानी जाएगी।





