
UK, Canada and Australia’s recognition of Palestine sparks strong Israeli reaction. Shah Times.
फिलिस्तीन की मान्यता: ब्रिटेन-कनाडा-ऑस्ट्रेलिया का बड़ा फैसला
क्या यह ऐतिहासिक कदम मिडिल ईस्ट की शांति की शुरुआत है या नया विवाद?
ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को मान्यता दी। इज़रायल ने इसे खतरनाक बताया और कहा यह कदम आतंकवाद को बढ़ावा देगा।
21 सितंबर 2025 को ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देकर मध्य-पूर्व की राजनीति को नया मोड़ दे दिया। यह फैसला सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक मजबूत संदेश है कि दो-राष्ट्र समाधान को अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने तुरंत कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि मान्यता देना “आतंकवाद को पुरस्कृत करने जैसा” है। उनका बयान यह भी साफ करता है कि आने वाले समय में इज़रायल और पश्चिमी देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है।
न्यूयॉर्क घोषणापत्र और अंतरराष्ट्रीय मिशन
फ्रांस और सऊदी अरब के नेतृत्व में जुलाई 2025 में न्यूयॉर्क घोषणापत्र जारी किया गया था, जिसमें गाज़ा के युद्धविराम के बाद अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बल की तैनाती और हमास के निरस्त्रीकरण की बात शामिल थी। अब ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की मान्यता उसी रोडमैप को मजबूत करती है।
वैश्विक समर्थन और नई राजनीतिक बहस
अब तक 145 से अधिक देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। भारत समेत कई एशियाई और अफ्रीकी राष्ट्र लंबे समय से दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन कर रहे हैं। लेकिन पश्चिमी देशों की ताज़ा मान्यता ने इस मुद्दे को और तेज कर दिया है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने अपने बयान में कहा कि यह कदम “शांति की उम्मीद को पुनर्जीवित करने” के लिए उठाया गया है। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने भी स्पष्ट किया कि उनका समर्थन आतंकवादियों के लिए नहीं बल्कि फिलिस्तीनी जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए है।
इज़रायल की दुविधा
नेतन्याहू का मानना है कि जॉर्डन नदी के पश्चिम में कभी भी फिलिस्तीनी राज्य अस्तित्व में नहीं आ सकता। उनका तर्क यह है कि इससे इज़रायल की सुरक्षा और स्थिरता को खतरा होगा। वहीं, इज़रायल के भीतर भी विपक्ष और नागरिक समूह अब युद्धविराम और मानवीय सहायता के लिए दबाव बढ़ा रहे हैं।
आगे का रास्ता
साफ है कि आने वाले महीनों में यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और क्षेत्रीय मंचों पर और गरमाएगा। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने चुनौती यह है कि प्रतीकात्मक मान्यता को व्यावहारिक शांति समझौते में कैसे बदला जाए।
नतीजा
यह मान्यता फिलिस्तीन की कूटनीतिक जीत है लेकिन शांति की असली परीक्षा अब शुरू होती है। क्या यह कदम स्थायी समाधान की दिशा खोलेगा या फिर नए तनाव की नींव रखेगा? यही आने वाला समय तय करेगा।




