
मानसून सत्र के दौरान संसद भवन के बाहर मीडिया से बातचीत करते राहुल गांधी
संसद में विपक्ष की आवाज बंद? राहुल गांधी ने साधा निशाना
‘मैं नेता प्रतिपक्ष हूं, फिर भी बोलने नहीं दिया गया’: संसद सत्र में राहुल गांधी ने लगाए पक्षपात के आरोप
लोकसभा मानसून सत्र के पहले दिन राहुल गांधी ने सदन में बोलने न देने पर नाराजगी जताई। उन्होंने सरकार पर विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप लगाया।
संसद के मानसून सत्र में हंगामा और राहुल गांधी की नाराजगी: पक्षपात का आरोप या लोकतंत्र का दबाव?
भारत की संसदीय परंपरा में हर सत्र अनेक राजनीतिक और सामाजिक विमर्शों का केंद्र बनता है। 2025 के मानसून सत्र की शुरुआत भी कुछ अलग नहीं रही। इस बार पहले ही दिन का घटनाक्रम देश की राजनीति को फिर से केंद्र में ले आया, जब लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सदन में उन्हें बोलने की अनुमति न देने को लेकर सरकार पर पक्षपात का आरोप लगाया।
‘हम दो शब्द कहना चाहते थे लेकिन अनुमति नहीं मिली’ — राहुल गांधी
संसद की कार्यवाही के दौरान नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मीडिया से बातचीत करते हुए नाराजगी जाहिर की कि एक ओर सरकार के नेता और रक्षा मंत्री को बोलने दिया गया, वहीं विपक्ष की आवाज को दबा दिया गया। उन्होंने कहा, “मैं नेता प्रतिपक्ष हूं, मेरा हक है। मुझे तो कभी बोलने ही नहीं देते।”
राहुल गांधी का कहना था कि सरकार केवल अपने पक्ष की बात सदन में रखना चाहती है, लेकिन विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों पर चर्चा से बच रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सरकार की रणनीति है कि विरोधी स्वरों को दबा दिया जाए।
पहलगाम आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर पर विपक्ष का हंगामा
मानसून सत्र के पहले दिन की कार्यवाही के दौरान पहलगाम में हुए आतंकी हमले और इसके बाद भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर विपक्ष ने जोरदार प्रदर्शन किया। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने इन मुद्दों पर चर्चा की मांग करते हुए नारेबाजी की और वेल में आकर तख्तियां लहराईं।
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इस मुद्दे पर राहुल गांधी समेत कई विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया कि सरकार गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर चर्चा से बच रही है और सदन में असहमति के स्वरों को दबा रही है।
राहुल गांधी बोले, “सरकार एक नया तरीका अपना रही है”
राहुल गांधी ने कहा कि सरकार एक नया तरीका अपना रही है, जिसमें विपक्ष को बिल्कुल भी बोलने का मौका नहीं दिया जाता। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी कटाक्ष करते हुए कहा, “प्रधानमंत्री सदन में उपस्थित नहीं रहते और बाकी नेता भी विपक्ष की बात सुनने को तैयार नहीं हैं।”
उन्होंने कहा, “अगर सरकार के लोगों को बोलने की अनुमति है, तो परंपरा के अनुसार विपक्ष को भी स्थान मिलना चाहिए। हम केवल दो शब्द कहना चाहते थे लेकिन उसकी भी अनुमति नहीं दी गई।”
प्रियंका गांधी का समर्थन
राहुल गांधी की बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी उनका समर्थन करते हुए कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में नेता प्रतिपक्ष को अपनी बात रखने का अधिकार है और संसद में इस अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए।
लोकसभा में दो बार कार्यवाही स्थगित
विपक्ष के हंगामे और नारेबाजी के कारण लोकसभा की कार्यवाही दो बार स्थगित करनी पड़ी। पहले प्रश्नकाल शुरू होते ही सदन में शोर-शराबा हुआ और कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। जब दोबारा कार्यवाही शुरू हुई तो हंगामा जारी रहा और स्पीकर ओम बिरला को इसे दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित करना पड़ा।
सरकार का पक्ष: चर्चा के लिए हम तैयार हैं
सरकार की ओर से सांसद जगदंबिका पाल ने संसद में कहा कि सरकार हर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है। उन्होंने विपक्ष से अपील की कि सदन को चलने दें क्योंकि “देश की जनता सब देख रही है” और “हम सेना के पराक्रम का सम्मान करते हैं।”
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी स्पष्ट किया कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर, पहलगाम हमला और अन्य सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन सदन नियमों के तहत ही चलेगा।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का बयान
ओम बिरला ने कहा कि प्रश्नकाल के बाद सभी मुद्दों को उठाने की अनुमति दी जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि “नारेबाजी और तख्तियां लहराना असंवैधानिक है और सदन की गरिमा के खिलाफ है।” उन्होंने कहा कि यदि विपक्ष नोटिस देता है तो सभी को समय दिया जाएगा और सभी सांसदों को बोलने का पूरा अवसर मिलेगा।
लोकतंत्र में संवाद आवश्यक या एकपक्षीय विमर्श?
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या लोकतंत्र में विपक्ष की आवाज को दबाना नई परंपरा बनती जा रही है? भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में जहां संसद को विचार-विमर्श और बहस का मंच माना जाता है, वहां यदि विपक्ष को बोलने न दिया जाए तो इसका सीधा असर राजनीतिक पारदर्शिता और उत्तरदायित्व पर पड़ता है।
राहुल गांधी का यह कहना कि “मुझे बोलने नहीं दिया जाता” केवल एक व्यक्ति की नाराजगी नहीं बल्कि उस समूचे विपक्ष की व्यथा है जो महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगना चाहता है।
क्या यह विपक्ष की रणनीति थी?
सरकार की ओर से यह आरोप भी सामने आया कि राहुल गांधी और उनके सहयोगी केवल हंगामा करना चाहते हैं, न कि स्वस्थ चर्चा। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अपने सांसदों को व्हाट्सएप पर निर्देश भेज रहे थे ताकि सदन में व्यवधान डाला जा सके।
यह आरोप न सिर्फ राजनीतिक रणनीति की ओर इशारा करता है, बल्कि इस पर भी सवाल उठाता है कि क्या संसद में गंभीर मुद्दों पर चर्चा अब केवल राजनीतिक हथकंडों की भेंट चढ़ रही है?
संसद या संघर्ष का मंच?
लोकसभा में विपक्ष के नेता की आवाज को महत्व देना लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है। संसद का उद्देश्य केवल सत्ता पक्ष की योजनाओं को लागू करना नहीं, बल्कि सत्ता से सवाल पूछना भी है। यदि संसद में विपक्ष की आवाज को दबाया जाएगा, तो वह मंच संघर्ष में तब्दील हो जाएगा।
राहुल गांधी के इस बयान ने संसद की कार्यवाही और सरकार के रवैये पर एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है। अब यह देखना बाकी है कि आगे के दिनों में सदन किस दिशा में जाएगा—संवाद की ओर या टकराव की ओर?
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