
Heavy rain and flood in Delhi 30 August 2025
देश में बारिश का कहर: दिल्ली-यूपी-बिहार में हालात बिगड़े
Weather Alert: North India में Flood और Landslide का खतरा
30 अगस्त 2025 को दिल्ली, यूपी, बिहार, उत्तराखंड और हिमाचल में भारी बारिश का अलर्ट, बाढ़ और ट्रैफिक जाम से जनजीवन प्रभावित।
New Delhi,(Shah Times)। देश इन दिनों मानसूनी मिज़ाज की गिरफ्त में है। आसमान से बरसते बादल एक तरफ़ धरती को सींच रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ तबाही के आलम भी पैदा कर रहे हैं। दिल्ली से लेकर यूपी-बिहार, उत्तराखंड और हिमाचल तक, बारिश का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। मौसम विभाग ने 30 अगस्त 2025 के लिए फिर से अलर्ट जारी किया है। कई राज्यों में बाढ़ की स्थिति है, हज़ारों लोग प्रभावित हैं और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है।
यह परिघटना महज़ प्राकृतिक नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टि से भी अहम है। सवाल यह है कि क्या भारत हर साल इसी तरह मानसून की मार झेलेगा या फिर कोई ठोस नीतिगत बदलाव सामने आएगा।
दिल्ली NCR: राजधानी पानी-पानी
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में शुक्रवार की सुबह से ही बारिश ने शहर को जाम और जलभराव की गिरफ्त में ले लिया। साउथ दिल्ली से लेकर शाहदरा तक सड़कों पर तालाब जैसे हालात रहे। एयरपोर्ट पर 200 से ज़्यादा फ़्लाइट्स लेट हो गईं।
मौसम विभाग ने येलो और ऑरेंज अलर्ट जारी करते हुए चेताया है कि शनिवार यानी 30 अगस्त को भी हालात सुधरने वाले नहीं। नोएडा और ग़ाज़ियाबाद में रेड अलर्ट जारी है।
दिल्ली पुलिस और प्रशासन लगातार कोशिश कर रहे हैं कि ट्रैफ़िक को नियंत्रित रखा जाए। मगर सवाल यही है कि हर साल बारिश के साथ राजधानी का इंफ्रास्ट्रक्चर क्यों धराशायी हो जाता है।
उत्तर प्रदेश: सत्रह ज़िले बाढ़ की चपेट में
उत्तर प्रदेश में 17 ज़िले इस वक्त बाढ़ के कहर से जूझ रहे हैं। बलिया, बहराइच, गोंडा, वाराणसी और प्रयागराज जैसे जिलों में हालात ख़तरनाक हैं। गंगा और घाघरा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।
सरकारी स्तर पर रेस्क्यू टीमें तैनात हैं, मगर राहत शिविरों में भोजन, पानी और दवाइयों की भारी किल्लत है। आम जनता सवाल कर रही है कि जब हर साल बाढ़ आती है तो स्थायी समाधान क्यों नहीं निकाला जाता।
बिहार और झारखंड: वज्रपात और तबाही
बिहार में पटना, चंपारण और भागलपुर सहित कई ज़िलों में भारी बारिश का अलर्ट जारी है। वज्रपात से पिछले 24 घंटों में 19 लोगों की मौत हो चुकी है।
झारखंड में रांची, पलामू और गुमला में हालात ख़राब हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें कट चुकी हैं और संचार व्यवस्था बाधित है।
यहाँ यह भी देखना ज़रूरी है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। खेत डूब गए हैं, फसलें चौपट हो रही हैं और किसानों पर कर्ज़ का बोझ और बढ़ सकता है।
उत्तराखंड और हिमाचल: पहाड़ों पर आफ़त
उत्तराखंड के चमोली, पिथौरागढ़ और रुद्रप्रयाग में भारी बारिश और भूस्खलन की घटनाएँ सामने आईं। कई राजमार्ग बंद हैं और यात्रियों को बीच रास्ते में ही रात गुजारनी पड़ी।
हिमाचल प्रदेश में भी हालात गंभीर हैं। शिमला, कुल्लू और मंडी जिलों में बाढ़ और लैंडस्लाइड की वजह से 27 लोगों की मौत हो चुकी है। पर्यटन पर सीधा असर पड़ा है और होटल इंडस्ट्री को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है।
मध्य प्रदेश और राजस्थान: मौत का आंकड़ा बढ़ा
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर, होशंगाबाद और धार जिलों में बाढ़ जैसी स्थिति है। वहीं राजस्थान के उदयपुर, डुंगरपुर और बांसवाड़ा में अब तक 91 लोगों की मौत बारिश से संबंधित हादसों में हो चुकी है।
यह आँकड़ा बताता है कि बरसात महज़ प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि जानलेवा आपदा साबित हो रही है।
आर्थिक असर: खज़ाने पर बोझ
भारी बारिश और बाढ़ से राज्यों की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर डैमेज, सड़कें और पुल टूटना, बिजली व्यवस्था ठप होना – यह सब सीधे तौर पर सरकारी खज़ाने पर बोझ डालता है।
कृषि क्षेत्र सबसे बड़ी मार झेल रहा है। धान और मक्का की फसलें प्रभावित हुई हैं। रिज़र्व बैंक और वित्त मंत्रालय के लिए यह चिंता का विषय है क्योंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर असर का मतलब है खपत और बाज़ार दोनों पर दबाव।
हर साल वही संकट क्यों
हर साल मानसून के मौसम में यही तस्वीर क्यों बनती है। बारिश को रोकना संभव नहीं मगर नुकसान कम करना प्रशासनिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। दिल्ली जैसे शहर में सीवर और नाले सालों से साफ़ नहीं हुए। यूपी और बिहार में बाढ़ नियंत्रण परियोजनाएँ अधूरी हैं। पहाड़ी राज्यों में अंधाधुंध निर्माण ने आपदा को और भयावह बना दिया।
प्रकृति का दोष या इंसानी लापरवाही
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पूरी तरह क्लाइमेट चेंज का नतीजा है। धरती का तापमान बढ़ रहा है, मानसून का पैटर्न बदल रहा है। लेकिन दूसरी राय यह कहती है कि इंसानी लापरवाही इस संकट को दोगुना कर देती है।
अगर नदियों के किनारे निर्माण रोके जाएं, बारिश से पहले ड्रेनेज साफ़ किए जाएं और स्मार्ट प्लानिंग हो, तो आधे से ज़्यादा नुकसान टाला जा सकता है।
नतीजा
30 अगस्त का मौसम अलर्ट हमें सिर्फ़ बारिश की भविष्यवाणी नहीं बता रहा, बल्कि यह चेतावनी दे रहा है कि आने वाले वर्षों में हमें क्लाइमेट एडॉप्टेशन पर गंभीरता से काम करना होगा।
प्रशासन, नागरिक और नीति निर्माता – सभी को मिलकर ऐसी रणनीति बनानी होगी, जिससे मानसून का ये वार्षिक संकट एक अवसर में बदला जा सके। वरना हर साल बादल बरसेंगे और हम उसी पुरानी तबाही की कहानी दोहराते रहेंगे।





