
व्यापार वार्ता से खुलेंगे अवसर, 50% टैरिफ घटाने की तैयारी
क्वाड शिखर सम्मेलन से पहले भारत-अमेरिका रिश्तों में गर्माहट
भारत-अमेरिका रिश्तों में सुधार के संकेत, ट्रंप- मोदी की व्यापार वार्ता से 50% टैरिफ घटने की उम्मीद, क्वाड शिखर सम्मेलन पर भी असर।
भारत और अमेरिका के रिश्ते हमेशा से उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। कभी रणनीतिक साझेदारी में गहरी गर्माहट दिखाई देती है तो कभी व्यापार और रक्षा नीतियों को लेकर तनाव। हाल ही में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुए सकारात्मक संवाद ने इस रिश्ते में नई जान फूंक दी है। दोनों नेताओं ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक-दूसरे के बयान साझा करके इस बात का संकेत दिया कि व्यापार वार्ता सही दिशा में आगे बढ़ रही है।
यह संवाद ऐसे समय आया है जब दोनों देशों के बीच 50% टैरिफ, रूस से तेल खरीद और इंडो-पैसिफिक रणनीति जैसे मुद्दों पर मतभेद साफ नज़र आ रहे थे। लेकिन अब संकेत हैं कि भारत-अमेरिका की दोस्ती की गाड़ी पटरी पर लौट रही है।
अमेरिका का नरम रुख और ट्रंप के बयान
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया अकाउंट ट्रुथ सोशल पर लिखा:
“मुझे खुशी है कि भारत और अमेरिका व्यापार बाधाओं को खत्म करने की दिशा में गंभीरता से बातचीत कर रहे हैं। मैं अपने अच्छे दोस्त प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करने के लिए उत्सुक हूं।”
यह बयान वॉशिंगटन की पॉलिसी सर्किल्स में खासा चर्चा का विषय बन गया। वजह साफ है – पिछले कुछ महीनों से ट्रंप लगातार भारत की आलोचना करते रहे थे, खासकर रूस से तेल खरीद और चीन की ओर झुकाव को लेकर।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर लिखा:
“भारत और अमेरिका स्वाभाविक साझेदार हैं। हमारी टीमें व्यापार वार्ता को जल्द अंतिम रूप देने में जुटी हैं। मुझे विश्वास है कि यह साझेदारी हमारी जनता के लिए नए अवसर खोलेगी।”
व्यापार समझौते की अहमियत
भारत और अमेरिका के बीच 50% टैरिफ का मुद्दा व्यापार जगत के लिए बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। भारत का दावा है कि उच्च टैरिफ से महंगाई बढ़ रही है, ब्याज दरों पर दबाव पड़ रहा है और निर्यात पर असर हो रहा है।
अमेरिका की ओर से यह टैरिफ रूस से तेल खरीद और कुछ अन्य स्ट्रेटेजिक मुद्दों के चलते लगाया गया था। मगर अब संकेत हैं कि ट्रंप प्रशासन इस पर पुनर्विचार कर सकता है।
भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में कहा:
“हमें उम्मीद है कि नवंबर तक भारत और अमेरिका एक व्यापक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। यह दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा।”
Analysis : दोस्ती और रणनीति का समीकरण
भारत और अमेरिका का रिश्ता केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। यह इंडो-पैसिफिक रणनीति, क्वाड गठबंधन और वैश्विक कूटनीति से भी जुड़ा है।
क्वाड शिखर सम्मेलन: उम्मीद जताई जा रही है कि राष्ट्रपति ट्रंप जल्द ही भारत का दौरा कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो यह इंडो-पैसिफिक में चीन को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा होगा।
ऊर्जा सुरक्षा: भारत रूस से तेल खरीद जारी रखे हुए है। अमेरिका चाहता है कि भारत इस निर्भरता को कम करे।
रक्षा सहयोग: दोनों देशों के बीच हाल ही में रक्षा समझौते हुए हैं जिनका असर आने वाले वर्षों में दिखेगा।
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ट्रंप का यू-टर्न क्यों?
ट्रंप का अचानक नरम पड़ना कई सवाल खड़े करता है। विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे तीन अहम वजहें हैं:
चुनावी राजनीति: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव नजदीक हैं और एशियाई-अमेरिकी वोट बैंक अहम हो गया है।
चीन फैक्टर: अमेरिका नहीं चाहता कि भारत चीन की ओर और झुके।
आर्थिक दबाव: उच्च टैरिफ से अमेरिकी कंपनियों को भी नुकसान हो रहा है।
पलटवार और आलोचनाएं
हालांकि ट्रंप के रुख में बदलाव सभी को आश्वस्त नहीं कर पा रहा। आलोचकों का कहना है कि ट्रंप की पॉलिसी अक्सर अचानक बदल जाती है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल चुनावी स्टंट है।
भारत के भीतर भी कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अमेरिका पर अत्यधिक भरोसा करना खतरनाक हो सकता है।
विपक्षी दलों का आरोप है कि मोदी सरकार ट्रंप के दबाव में झुक रही है और तेल-ऊर्जा सुरक्षा पर भारत का स्वतंत्र रुख कमजोर हो रहा है।
Counterpoints
भारत का दृष्टिकोण: भारत स्पष्ट कर चुका है कि वह किसी भी समझौते में अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा।
रूस से तेल खरीद: भारत ने यह भी साफ कर दिया है कि ऊर्जा सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है और रूस से तेल खरीदना आर्थिक आवश्यकता है।
क्वाड और चीन: भारत मानता है कि अमेरिका के साथ साझेदारी जरूरी है, लेकिन चीन से सीधे टकराव से बचना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
Conclusion
भारत और अमेरिका के रिश्ते नई दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि इसमें चुनौतियां कम नहीं हैं, लेकिन ट्रंप और मोदी के हालिया संवाद ने इस रिश्ते में सकारात्मकता भर दी है।
यदि आने वाले महीनों में व्यापार समझौता हो जाता है और टैरिफ में कटौती होती है, तो यह दोनों देशों के लिए ‘विन-विन’ स्थिति होगी।
सवाल यह है कि क्या ट्रंप का यह यू-टर्न टिकाऊ साबित होगा या यह केवल चुनावी गर्माहट का नतीजा है?
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