
Donald Trump, Narendra Modi, and Vladimir Putin amid rising tensions over India’s discounted Russian oil imports and US-imposed tariffs. Shah Times Exclusive.
रूस से सस्ता तेल: अमेरिका का 50% टैरिफ़, इंडिया का कड़ा जवाब
India-Russia oil: $3–4/बैरल छूट; US-India में टैरिफ़ टकराव
भारत पर ट्रंप प्रशासन ने रूसी तेल खरीदने को लेकर 50% टैरिफ लगाया। मोदी सरकार ने सख्त जवाब देते हुए रूस से सस्ता तेल आयात जारी रखा।
अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में ऊर्जा राजनीति (Energy Politics) का रोल हमेशा निर्णायक रहा है। आज वही परिदृश्य भारत, रूस और अमेरिका के त्रिकोणीय रिश्तों में देखने को मिल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर अतिरिक्त टैरिफ़ लगाकर यह संदेश दिया कि वाशिंगटन रूस-यूक्रेन जंग में अप्रत्यक्ष भागीदारी को किसी हाल में स्वीकार नहीं करेगा। मगर दिल्ली का रुख बिल्कुल साफ़ है—भारत अपने क़ौमी हित और ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security) को किसी भी बाहरी दबाव से ऊपर रखता है।
भारत पर अमेरिकी टैरिफ़ और उसका असर
ट्रंप प्रशासन ने भारत पर टैरिफ़ दोगुना करके 50 प्रतिशत कर दिया। इस कदम का सीधा निशाना रूस से भारत का बढ़ता तेल आयात था। 2022 में जब यूक्रेन जंग शुरू हुई, भारत ने रूस से डिस्काउंटेड कच्चा तेल खरीदना शुरू किया।
जुलाई 2025 तक भारत को $1 प्रति बैरल की छूट मिल रही थी।
अगस्त में यह बढ़कर $2.5 हो गई।
सितंबर-अक्टूबर के लिए रूस ने $3–4 प्रति बैरल छूट तय कर दी।
यानी अमेरिका का टैरिफ़ जितना सख्त, भारत का सौदा उतना ही फ़ायदेमंद। यही वजह है कि ट्रंप का ग़ुस्सा और भी भड़क गया।
शंघाई शिखर सम्मेलन का संदेश
चीन में हुए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात ने यह संकेत दिया कि भारत और चीन अब केवल प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि साझेदाराना तालमेल तलाश रहे हैं। साथ ही, रूस-भारत संबंधों को मोदी ने “विशेष रिश्ता” बताया। यह संदेश अमेरिका के लिए किसी कूटनीतिक झटके से कम नहीं।
अमेरिकी आलोचना और रणनीतिक विश्लेषण
व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो ने कहा—
“भारत रूसी तेल खरीदकर उसे रिफ़ाइन करता है और फिर यूरोप-एशिया को ऊँचे दाम पर बेचता है। इससे रूस की युद्ध मशीन को फ़ायदा होता है।”
यह बयान दर्शाता है कि अमेरिका अब भारत की ऊर्जा डिप्लोमेसी को अपने रणनीतिक हितों के ख़िलाफ़ देख रहा है।
विशेषज्ञों की राय
एश्ले जे टेलिस (अमेरिकी सामरिक मामलों के विशेषज्ञ) का मानना है कि ट्रंप भारत से नाखुश हैं क्योंकि मई 2025 में भारत-पाकिस्तान विवाद सुलझाने का श्रेय उन्हें नहीं मिला।
टेलिस के अनुसार, ट्रंप को “अपमान” इसलिए भी महसूस हुआ क्योंकि भारत ने पाकिस्तान मसले में किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को नकार दिया।
भारत का कड़ा जवाब
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मॉस्को में साफ़ कहा—
“अमेरिका ने ही भारत से कहा था कि रूसी तेल लेकर वैश्विक ऊर्जा बाज़ार को स्थिर करें। आज वही अमेरिका भारत पर आलोचना कर रहा है।”
इस बयान से यह स्पष्ट हो गया कि नई दिल्ली अपनी स्वतंत्र विदेश नीति (Independent Foreign Policy) से पीछे हटने वाली नहीं।
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चीन को नज़रअंदाज़ कर भारत पर हमला क्यों?
आंकड़े बताते हैं—
2024 में चीन ने रूस से $62.6 अरब का तेल आयात किया।
भारत ने उसी अवधि में $52.7 अरब का आयात किया।
यानी चीन सबसे बड़ा ख़रीदार है, मगर ट्रंप ने निशाना भारत को बनाया। वजह यह हो सकती है कि भारत, अमेरिका का रणनीतिक साझेदार (Strategic Partner) माना जाता है और वॉशिंगटन को नई दिल्ली से “निष्ठा” (Loyalty) की उम्मीद थी।
काउंटरपॉइंट्स
अमेरिका का दृष्टिकोण – वॉशिंगटन मानता है कि भारत की खरीद रूस के युद्ध-ख़र्च को सहारा देती है।
भारत का दृष्टिकोण – ऊर्जा सुरक्षा और डिस्काउंटेड तेल आयात एक आर्थिक मजबूरी है, किसी भू-राजनीतिक पक्षधरता का प्रतीक नहीं।
चीन का दृष्टिकोण – वह सबसे बड़ा खरीदार होते हुए भी अमेरिकी आलोचना से बचा हुआ है।
निष्कर्ष
भारत-अमेरिका रिश्ते ऐतिहासिक रूप से उतार-चढ़ाव से गुज़रे हैं। आज जो टैरिफ़ युद्ध चल रहा है, वह असल में ऊर्जा राजनीति बनाम भू-राजनीति की लड़ाई है।
भारत के लिए रूसी तेल केवल एक सौदा नहीं, बल्कि रणनीतिक ऊर्जा सुरक्षा है। दूसरी तरफ़, अमेरिका इसे अपनी वैश्विक नेतृत्व की चुनौती मान रहा है।
यह तय है कि आने वाले महीनों में यह टकराव और गहराएगा। सवाल यह है—क्या भारत और अमेरिका अपनी कूटनीतिक समझ से इस खाई को भर पाएंगे, या यह तनाव वैश्विक ऊर्जा राजनीति का नया अध्याय लिखेगा?