
Growing tension between India and America over oil and tariffs
भारत-अमेरिका टकराव: निक्की हेली बोलीं, चीन उठाएगा फायदा
जॉन केरी की चेतावनी: भारत को अलग-थलग करना अमेरिका को भारी
भारत-अमेरिका रिश्तों में रूसी तेल और टैरिफ विवाद से तनाव। निक्की हेली और जॉन केरी ने चेताया कि यह दरार चीन को लाभ पहुंचा सकती है।
भारत और अमेरिका के रिश्ते दशकों से लोकतांत्रिक साझेदारी की मिसाल रहे हैं। लेकिन मौजूदा हालात में दोनों देशों के बीच तनाव गहराता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने और रूसी तेल आयात पर आपत्ति जताने से यह दरार और स्पष्ट हो गई है। इस पर संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की पूर्व राजदूत निक्की हेली और पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी दोनों ने चिंता जताई है। उनके अनुसार यह विवाद केवल व्यापारिक नहीं बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है।
भारत-अमेरिका रिश्तों का संवेदनशील दौर
निक्की हेली ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट और इंटरव्यू में कहा कि भारत और अमेरिका को रूस से तेल खरीद और टैरिफ विवाद जैसे मुद्दों पर जल्द समाधान निकालना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि यह दरार दोनों देशों के दशकों पुराने भरोसे को नुकसान पहुंचा सकती है।
उन्होंने लिखा कि दुनिया की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकतें अगर आपसी मतभेदों में उलझीं, तो चीन इसका फायदा उठा सकता है। उनके मुताबिक वॉशिंगटन और नई दिल्ली को साझा लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए।
जॉन केरी की चिंता और कूटनीति पर सवाल
पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी ने भी चिंता जताते हुए कहा कि भारत को अलग-थलग करने से अमेरिका को ही नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप केवल अल्टीमेटम और दबाव की राजनीति कर रहे हैं, जो महानता नहीं बल्कि असुरक्षा दर्शाता है।
केरी ने पीएम नरेंद्र मोदी और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की सराहना की और उम्मीद जताई कि दोनों देश जल्द ही समाधान निकाल लेंगे। उनका यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि अमेरिका के अंदर भी ट्रंप की नीति को लेकर असहमति बढ़ रही है।
रूस तेल आयात और टैरिफ विवाद
मुद्दा केवल व्यापार का नहीं बल्कि ऊर्जा सुरक्षा का है। भारत ने रूस से तेल खरीद बढ़ाई है क्योंकि यह सस्ता और रणनीतिक दृष्टि से लाभकारी है। अमेरिका इसे अपनी प्रतिबंध नीति का उल्लंघन मानता है।
ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 25 से 50 प्रतिशत तक अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है। भारत का तर्क है कि यह एकतरफा और अनुचित है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद वैश्विक व्यापार व्यवस्था और WTO नियमों पर भी सवाल खड़े करता है।
चीन का बढ़ता प्रभाव
निक्की हेली ने कहा था कि भारत का उभार चीन के विस्तार के बाद सबसे बड़ा भू-राजनीतिक विकास है। अगर भारत और अमेरिका के रिश्तों में दरार आती है तो चीन इसका लाभ उठाएगा। बीजिंग पहले से ही एशिया और अफ्रीका में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।
भारत और अमेरिका दोनों के साझा हित हैं कि चीन की बढ़ती ताकत को संतुलित किया जाए। लेकिन मौजूदा विवाद इस सामरिक साझेदारी को कमजोर कर सकता है।
विश्लेषण: सहयोग या टकराव
भारत और अमेरिका दोनों ही लोकतांत्रिक मूल्य, वैश्विक स्थिरता और आर्थिक विकास को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन जब राष्ट्रीय हितों की बात आती है तो दोनों देशों के दृष्टिकोण अलग हो जाते हैं।
अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए
भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक स्वतंत्रता से समझौता नहीं करना चाहता
दोनों के बीच व्यापार संतुलन भी बड़ा मुद्दा है
प्रति-तर्क और आलोचना
अमेरिका के कई विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का रवैया अत्यधिक कठोर है। उनका कहना है कि भारत जैसे दोस्त को अल्टीमेटम देना गलत संदेश देता है। वहीं कुछ अमेरिकी थिंक टैंक यह भी मानते हैं कि भारत को रूस के साथ अपने रिश्ते पर पुनर्विचार करना चाहिए, ताकि रणनीतिक तालमेल मजबूत हो सके।
भारत के दृष्टिकोण से देखा जाए तो अमेरिकी दबाव उसकी संप्रभुता को चुनौती देता है। भारत ने बार-बार कहा है कि वह स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है।
निष्कर्ष
भारत और अमेरिका के रिश्ते ऐतिहासिक और रणनीतिक रूप से बेहद अहम हैं। मौजूदा व्यापार विवाद और तेल आयात का मुद्दा निश्चित ही चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसे स्थायी दरार बनने से रोकना दोनों देशों के हित में है।
निक्की हेली और जॉन केरी की चेतावनियां इस बात की याद दिलाती हैं कि वैश्विक राजनीति में दोस्ती केवल शब्दों से नहीं, बल्कि कूटनीतिक प्रयासों और लचीलापन से चलती है। अगर दोनों पक्ष समय रहते हल निकालते हैं, तो यह साझेदारी और मजबूत होगी। लेकिन अगर दरार गहरी हुई तो चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी इसका सबसे बड़ा लाभार्थी होगा।