
Questions raised by the death of an American officer in Dhaka — Did the CIA plan an attack on Modi? India-Russia secret collusion explored at Shah Times.
मोदी-पुतिन मुलाक़ात और CIA की परछाई,ढाका मौत ने खोली CIA साजिश का राज़?
ढाका राज़: भारत-रूस ने साजिश रोकी या अफ़वाह चली?
ढाका में अमेरिकी अधिकारी की मौत से उठे सवाल — क्या CIA ने मोदी पर हमला प्लान किया था? भारत-रूस के गुप्त तालमेल की पड़ताल Shah Times पर।
✍️ Asif Khan | शाह टाइम्स 📍 नई दिल्ली 🗓️ 26 अक्टूबर 2025
कभी-कभी दुनिया की सबसे बड़ी कहानियाँ उसी जगह से निकलती हैं, जहाँ सबको लगता है — “यह तो बस इत्तेफाक़ होगा।”
ढाका के एक होटल में एक अमेरिकी स्पेशल फोर्स अफ़सर टेरेंस अर्वेल जैक्सन की रहस्यमयी मौत ने ऐसा ही माहौल पैदा कर दिया। अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है कि CIA ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के assassination plot की योजना बनाई थी, जिसे भारत और रूस की खुफ़िया एजेंसियों ने मिलकर नाकाम कर दिया।
यह कहानी सुनने में फ़िल्म जैसी लगती है — पर सवाल ये है कि हक़ीक़त कहाँ ख़त्म होती है और तसव्वुर कहाँ से शुरू?
अफ़वाह या इत्तेफ़ाक़?
रिपोर्ट्स कहती हैं कि 31 अगस्त 2025 की सुबह, ढाका के वेस्टिन होटल में जैक्सन मृत पाए गए।
बाहरी चोट के कोई निशान नहीं। पुलिस जांच जारी है। लेकिन सोशल मीडिया पर कहानी कुछ और थी — “India and Russia jointly foiled a CIA plot to eliminate PM Modi.”
इस दावे को कुछ मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स ने और हवा दी, खासकर जब यह बात जोड़ी गई कि उसी वक़्त प्रधानमंत्री मोदी SCO summit में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से निजी कार में 45 मिनट तक अकेले में मुलाक़ात कर रहे थे।
क्या ये महज़ टाइमिंग का खेल है या कोई गुप्त इत्तेफ़ाक़?
CIA की सियासत और South Asia का मैदान
अमेरिका की Central Intelligence Agency (CIA) पर पहले भी कई इल्ज़ाम लग चुके हैं — हुकूमतें गिराने से लेकर रियासतों को अस्थिर करने तक।
ईरान से लेकर लैटिन अमेरिका, और अब साउथ एशिया तक — CIA की मौजूदगी हर कहानी में किसी न किसी साये की तरह मिल जाती है।
उर्दू में एक कहावत है, “जहाँ धुआँ है, वहाँ कुछ तो जल रहा होगा।”
तो क्या सच में यह धुआँ किसी आग की निशानी है?
दक्षिण एशिया में हाल के सालों में लगातार उथल-पुथल रही — पाकिस्तान की सियासी गिरफ़्त, नेपाल की सत्ता में बदलाव, बांग्लादेश की खुफ़िया हलचल — हर जगह अमेरिका के दख़ल के आरोप। ऐसे में भारत जैसा मज़बूत लोकतंत्र भी CIA की निगाह से बचा रहेगा, यह मान लेना भोलेपन जैसा होगा।
क्या भारत-रूस की जोड़ी ने कोई ख़ुफ़िया मिशन चलाया?
यहाँ बात दिलचस्प हो जाती है।
भारत और रूस की खुफ़िया एजेंसियों का तालमेल पुराना है। KGB के दिनों से लेकर RAW के दौर तक दोनों ने कई covert operations में सहयोग किया है।
पुतिन खुद former KGB officer रह चुके हैं, और मोदी का उनके साथ strategic chemistry किसी से छिपी नहीं।
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि तियानजिन में हुई मोदी-पुतिन मीटिंग “unplanned yet crucial” थी।
कार के भीतर हुई वह 45 मिनट की बातचीत किसी diplomatic agenda से कहीं ज़्यादा गहरी थी।
क्या उस वक्त दोनों नेताओं को किसी “threat alert” की जानकारी मिली थी?
कहीं वही मिशन तो नहीं था जिसने CIA के प्लान को neutralize कर दिया?
लेकिन क्या सबूत हैं?
यहीं से कहानी धुंधली हो जाती है।
अब तक कोई official document, कोई classified leak, या credible statement सामने नहीं आया है जो इस साजिश की पुष्टि करे।
Organiser जैसी वेबसाइट्स ने ज़रूर यह दावा किया, पर यह दावा ज़्यादा “interpretation” पर आधारित है, ना कि “evidence” पर।
कहानी में इतनी परतें हैं कि यह तय करना मुश्किल है कि क्या “coincidence” था और क्या “coordination”।
एक शक यह भी है कि यह सब information warfare का हिस्सा है — narratives बनाकर geopolitical pressure बनाना।
India-US-Russia Triangle — एक नया तनाव
अगर मान लिया जाए कि यह साजिशी रिपोर्ट सच्ची है, तो इसका सीधा असर Indo-US संबंधों पर पड़ेगा।
Trump administration पहले ही भारत पर टैरिफ़ बढ़ा चुकी है, पाकिस्तान को खुला सपोर्ट दे रही है।
उधर रूस, जो अब चीन के और करीब है, भारत के साथ फिर से strategic संतुलन बना रहा है।
ऐसे में यह भी संभव है कि यह “CIA conspiracy” वाली कहानी किसी तीसरे power block की बनाई गई रणनीति हो — ताकि India-US रिश्तों में अविश्वास बढ़े और Russia को geopolitical leverage मिले।
मगर यह सिर्फ़ एक logical angle है, दावा नहीं।
सवाल ये नहीं कि साजिश थी या नहीं, सवाल ये है कि हम क्या मानना चाहते हैं
कभी-कभी narratives खुद जनता बनाती है।
भारत में एक वर्ग ऐसा है जो अमेरिका की नीयत पर भरोसा नहीं करता,
दूसरा वर्ग ऐसा जो हर global incident में “anti-Modi plot” देखता है।
और तीसरा वर्ग — जो बीच में है — वो बस transparency चाहता है।
एक democratic समाज की यही खूबसूरती है कि हर राय की जगह है, पर हर राय को ज़िम्मेदारी के साथ पेश करना चाहिए।
हमारा मक़सद डर फैलाना नहीं, सवाल उठाना है।
प्रधानमंत्री मोदी की वो बात… एक इशारा या मज़ाक़?
जब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा,
“क्या आप इसलिए ताली बजा रहे हैं क्योंकि मैं चीन गया था या इसलिए कि वापस आया हूँ?”
तो सोशल मीडिया ने इसे एक “cryptic message” की तरह लिया।
पर कभी-कभी बयान सिर्फ़ बयान होते हैं —
हर बात के पीछे “secret code” ढूंढना भी एक किस्म की collective paranoia है।
शब्दों के पार की सच्चाई
सियासत में साज़िशें होती हैं, पर हर साज़िश का सबूत नहीं होता।
CIA की दुनिया में ‘deniable operations’ एक आम चलन है — ऐसे ऑपरेशन जिनका कभी कोई सबूत न मिले।
लेकिन पत्रकारिता की दुनिया में ‘denial’ और ‘doubt’ के बीच का फ़र्क़ समझना ज़रूरी है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ढाका में एक इंसान की मौत हुई है —
वो किसी का बेटा था, किसी का साथी।
हर मौत के पीछे एक कहानी होती है, लेकिन हर कहानी के पीछे साज़िश नहीं होती।
अफ़वाह से ऊपर उठकर सच्चाई की तलाश
शायद यह कहानी समय के साथ साफ़ होगी,
या शायद कभी नहीं होगी।
पर एक बात तय है — South Asia की राजनीति अब पहले जैसी नहीं रही।
हर कदम, हर बयान, हर मुलाक़ात अब ‘decoded’ होती है।
भारत और रूस की साझेदारी मज़बूत है,
अमेरिका की खुफ़िया नीति आक्रामक है,
और जनता की सोच अब सवाल करने वाली है।
शायद यही लोकतंत्र की असली तासीर है —
जहाँ ख़ामोशी से ज्यादा ताक़त सवाल में होती है।
📰 “सच्चाई की तलाश में रहिए, अफ़वाहों से दूर। Shah Times आपके साथ है।”






