
Ambassador P. Harish representing India at the UN Security Council during the Gaza crisis debate – Shah Times
गाज़ा संकट पर भारत का बड़ा बयान, UNSC में युद्धविराम की मांग
भारत ने UNSC में इजरायल-गाज़ा युद्ध पर उठाई आवाज
UNSC में भारत ने गाजा में मानवीय संकट पर चिंता जताई, युद्धविराम और समयबद्ध सहायता की मांग रखी। फलस्तीन के साथ अटूट समर्थन दोहराया।
भारत का स्पष्ट रुख: गाज़ा संकट पर स्थायी समाधान की मांग
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत ने पहली बार गाज़ा में जारी इजरायल-हमास युद्ध को लेकर बेहद स्पष्ट और कड़ा रुख अपनाया है। भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने इस त्रैमासिक खुली बहस में कहा कि गाजा में मानवीय संकट गंभीर हो चुका है और केवल “छिटपुट युद्धविराम” अब पर्याप्त नहीं रह गया है।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब इजरायल और हमास के बीच चल रहा संघर्ष न केवल सैन्य मोर्चे पर बल्कि मानवीय आधार पर भी पूरे विश्व समुदाय के लिए चिंता का विषय बन गया है। भारत ने अपने रुख में स्पष्टता लाते हुए युद्ध की समाप्ति, बंधकों की रिहाई और मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति पर जोर दिया है।
छिटपुट विराम से नहीं चलेगा काम: भारत का स्पष्ट संदेश
यूएन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने जोर देकर कहा कि सिर्फ छिटपुट रूप से शत्रुता रोकने से वहां की जमीनी स्थिति में कोई ठोस बदलाव नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि गाज़ा के लोगों को प्रतिदिन जिन बुनियादी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है—जैसे भोजन, ईंधन, चिकित्सा और शिक्षा की भारी कमी—वे केवल समर्पित और स्थायी उपायों से ही हल हो सकती हैं।
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उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मंच से वैश्विक समुदाय को यह संदेश भी दिया कि भारत हमेशा मानवीय दृष्टिकोण से संघर्षों का समाधान ढूंढ़ने की वकालत करता आया है, और इस मामले में भी उसकी नीति स्पष्ट और स्थिर रही है।
मानवीय सहायता और युद्धविराम अनिवार्य
पी. हरीश ने कहा कि “आज की बैठक गाज़ा में जारी गंभीर मानवीय संकट की पृष्ठभूमि में हो रही है। छिटपुट विराम उन मानवीय चुनौतियों का समाधान नहीं कर सकते जिनका सामना वहां के लोग प्रतिदिन कर रहे हैं जैसे भोजन और ईंधन की गंभीर कमी, अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं और शिक्षा तक पहुंच न होना।”
भारत का यह रुख न केवल मानवीय आधार पर गंभीर है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक संतुलित और संवेदनशील राष्ट्र के रूप में उसकी भूमिका को रेखांकित करता है। भारत ने स्पष्ट रूप से युद्धविराम की आवश्यकता, बंधकों की रिहाई और समयबद्ध मानवीय सहायता को प्राथमिकता देने की अपील की है।
भारत-फिलिस्तीन के ऐतिहासिक संबंधों की पुनः पुष्टि
भारत ने फिलिस्तीन के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को एक बार फिर से दोहराया। पी. हरीश ने कहा कि भारत और फिलिस्तीन के बीच ऐतिहासिक और गहरे संबंध हैं। उन्होंने बताया कि भारत फिलिस्तीनी उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध रहा है और यह प्रतिबद्धता समय के साथ और मजबूत हुई है।
भारत फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश रहा है और वर्तमान में वह UNRWA जैसे संगठनों के माध्यम से 4 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता प्रदान कर रहा है। यह कदम भारत की वैश्विक कूटनीतिक नीति में एक गहरी मानवीय सोच का प्रमाण है।
पीएम मोदी को लिखी गई चिट्ठी
फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने भारत सरकार से सीधे समर्थन मांगा है। फिलिस्तीन के भारत स्थित राजदूत अब्दुल्ला एम. अबू शावेश ने बताया कि महमूद अब्बास ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर गाजा में बिगड़ती मानवीय स्थिति पर हस्तक्षेप की अपील की है।
पत्र में उन्होंने भारत से इजरायल पर राजनीतिक दबाव डालने की अपील की ताकि गाजा में मानवीय सहायता पहुंचाई जा सके। इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि भारत को इस संकट में एक विश्वसनीय और संवेदनशील साझेदार के रूप में देखा जा रहा है।
शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर संकट
भारत के प्रतिनिधि ने यह भी रेखांकित किया कि गाजा में हालात कितने विकट हो चुके हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, गाजा के लगभग 95% अस्पताल या तो क्षतिग्रस्त हो चुके हैं या नष्ट हो चुके हैं। वहीं, 6,50,000 से अधिक बच्चे 20 महीनों से स्कूल नहीं जा पाए हैं।
यह आंकड़े किसी भी संवेदनशील राष्ट्र के लिए केवल आंकड़े नहीं, बल्कि एक त्रासदी हैं जिन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तत्काल ध्यान देना चाहिए।
इस्राइल की प्रतिक्रिया
दूसरी ओर, इस्राइल ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बयानों को हमास के दुष्प्रचार का हिस्सा करार देते हुए खारिज कर दिया। इस्राइली विदेश मंत्रालय का कहना है कि इस तरह के बयान युद्धविराम पर चल रही बातचीत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इजरायली प्रतिनिधि ने दावा किया कि 4,500 से ज्यादा ट्रक भोजन और अन्य आवश्यक सामान लेकर गाजा में प्रवेश कर चुके हैं, और करीब 700 ट्रक अभी भी यूएन की कार्रवाई के इंतज़ार में हैं।
यह बयानबाजी दर्शाती है कि युद्ध के मैदान के बाहर भी एक अलग तरह की सूचना और कूटनीति की लड़ाई जारी है।
शांति का कोई विकल्प नहीं
भारत ने जोर देकर कहा कि शांति का कोई विकल्प नहीं है और इसे पाने के लिए संवाद और कूटनीति ही एकमात्र टिकाऊ रास्ता है। युद्धविराम लागू होना चाहिए और सभी बंधकों की रिहाई सुनिश्चित की जानी चाहिए। इस दिशा में भारत का यह रुख न केवल व्यावहारिक है, बल्कि उस वैश्विक नैतिकता का भी प्रतिनिधित्व करता है जिसके लिए भारत की पहचान रही है।
नतीजा: भारत का संतुलित और मानवता-प्रधान दृष्टिकोण
UNSC में भारत का यह हस्तक्षेप एक बार फिर स्पष्ट करता है कि भारत केवल एक निष्पक्ष मध्यस्थ नहीं, बल्कि वैश्विक संकटों में मानवीय पक्षधरता को प्राथमिकता देने वाला राष्ट्र है। इजरायल-हमास संघर्ष के बीच भारत की यह आवाज न केवल नीति की दृढ़ता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक भरोसेमंद नेतृत्व का प्रमाण भी है।
गाज़ा में जो हालात हैं, वह किसी एक देश की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की नैतिक जिम्मेदारी है। भारत ने इस दिशा में जो पहल की है, वह निश्चित रूप से आने वाले समय में पश्चिम एशिया की दिशा और दशा पर प्रभाव डालेगी।