
Afghanistan Foreign Minister Amir Khan Muttaqi meets Indian leaders in New Delhi; symbolic visit to Darul Uloom Deoband highlights cultural diplomacy.
अमीर खान मुत्ताक़ी का भारत दौरा: देवबंद से नई दिल्ली तक कूटनीति की नई राह
तालिबान और भारत के दरमियान सियासी मेल या रणनीतिक प्रयोग?
📍नई दिल्ली
🗓️ 9 अक्टूबर 2025 ✍️ Asif Khan
अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताक़ी सात दिवसीय भारत यात्रा पर हैं। यह दौरा न सिर्फ़ तालिबान शासन के लिए, बल्कि भारत की दक्षिण एशियाई नीति के लिए भी अहम माना जा रहा है। मुत्ताक़ी की नई दिल्ली और देवबंद यात्राएं कूटनीति और विचारधारा दोनों के स्तर पर कई संकेत देती हैं। सवाल यह है कि क्या यह यात्रा दोनों देशों के रिश्तों में नई दिशा तय करेगी?
अमीर खान मुत्ताक़ी की यात्रा — अफ़ग़ानिस्तान और भारत के रिश्तों में नई गरमी
नई दिल्ली की हवा इन दिनों कुछ अलग है — अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताक़ी के भारत आगमन के साथ ही, दक्षिण एशिया की कूटनीतिक ज़मीन पर नए कदमों की आहट सुनाई दे रही है। जब से तालिबान ने 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता संभाली, भारत ने सावधानी और संतुलन से अपनी नीति तय की है — न स्पष्ट समर्थन, न खुला विरोध। ऐसे में मुत्ताक़ी का यह भारत दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक है।
यह पहली बार है जब किसी तालिबान मंत्री को भारत ने औपचारिक तौर पर बुलाया है। नई दिल्ली में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुत्ताक़ी की मुलाक़ात तय है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा,
“नई दिल्ली पहुंचने पर अफ़ग़ान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताक़ी का हार्दिक स्वागत। हम द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय मुद्दों पर रचनात्मक चर्चा की उम्मीद कर रहे हैं।”
दरअसल, मुत्ताक़ी को पहले पिछले महीने भारत आना था, लेकिन यूएनएससी (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) के यात्रा प्रतिबंधों के कारण वे नहीं आ सके। अब उन्हें 9 से 16 अक्टूबर तक अस्थायी छूट मिली है, और इस दौरान वह भारत के साथ-साथ धार्मिक और शैक्षणिक संस्थानों का भी दौरा करेंगे।
🔸 तालिबान की वैचारिक जड़ों की तलाश — देवबंद यात्रा का संदेश
मुत्ताक़ी का सबसे प्रतीकात्मक पड़ाव है — दारुल उलूम देवबंद। यह वही संस्था है, जिसे तालिबान अपनी धार्मिक और वैचारिक प्रेरणा का स्रोत मानता है। देवबंद के मोहतमिम मुफ्ती अबुल क़ासिम नौमानी ने मुत्ताक़ी की यात्रा की पुष्टि की है।
11 अक्टूबर को सुबह 10:30 बजे मुत्ताक़ी सड़क मार्ग से देवबंद पहुंचेंगे, जहां वह लगभग पाँच घंटे रुकेंगे।
देवबंद की नवनिर्मित लाइब्रेरी में छात्रों द्वारा स्वागत समारोह आयोजित किया जाएगा। मुत्ताक़ी यहाँ छात्रों से संवाद करेंगे और वरिष्ठ उलेमाओं — जैसे मौलाना अरशद मदनी — से भी मुलाक़ात करेंगे।
तालिबान के दृष्टिकोण से यह यात्रा प्रतीकात्मक से कहीं अधिक है। यह उस विचारधारा की जड़ों की पहचान का संकेत है, जो उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में रहते हुए भी नहीं भुलाई। मगर भारत के लिए यह सिर्फ धार्मिक प्रतीकवाद नहीं — यह एक कूटनीतिक संवाद का अवसर है।
🔸 भारत की रणनीति — संपर्क, पर मान्यता नहीं
भारत ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है। नई दिल्ली लगातार यह दोहराती रही है कि अफ़ग़ानिस्तान में “समावेशी सरकार” होनी चाहिए, और उसकी ज़मीन का इस्तेमाल किसी भी आतंकवादी गतिविधि के लिए नहीं होना चाहिए।
भारत ने तालिबान शासन के दौरान भी मानवीय सहायता जारी रखी — गेहूं, दवाइयाँ और कोविड वैक्सीन भेजी गईं। लेकिन साथ ही यह स्पष्ट संकेत भी दिया कि भारत आतंकवाद या कट्टरवाद से कोई समझौता नहीं करेगा।
अब मुत्ताक़ी की यह यात्रा एक ‘सॉफ्ट रिकग्निशन’ (Soft Recognition) की तरह देखी जा रही है। भारत संभवतः यह दिखाना चाहता है कि वह काबुल से दूरी बनाए रखते हुए भी संवाद के दरवाज़े बंद नहीं कर रहा।
🔸 अफ़ग़ान जनता और भारत का जुड़ाव
भारत और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्ते सिर्फ़ सरकारों तक सीमित नहीं हैं — यह जनता से जनता का रिश्ता है। काबुल में आज भी भारतीय मेडिकल सहायता केंद्रों और शैक्षणिक छात्रवृत्तियों की चर्चा होती है। अफ़ग़ान छात्रों का भारत आना अब भी जारी है, और देवबंद जैसे मदरसों में सैकड़ों अफ़ग़ानी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं।
मुत्ताक़ी का इन छात्रों से मिलना इस रिश्ते की नई परतें खोल सकता है। यह सांस्कृतिक संवाद भारत के लिए ‘सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी’ का हिस्सा है — जहाँ हथियार नहीं, बल्कि शिक्षा और संवाद के ज़रिए पुल बनाए जाते हैं।
🔸 क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य — पाकिस्तान, चीन और ईरान का फैक्टर
भारत का यह क़दम, स्वाभाविक रूप से पाकिस्तान और चीन दोनों की निगाह में है। पाकिस्तान लंबे समय से तालिबान का पारंपरिक सहयोगी माना जाता रहा है। लेकिन हाल के महीनों में काबुल और इस्लामाबाद के बीच सीमा विवाद और व्यापारिक तनाव बढ़े हैं।
चीन ने भी अफ़ग़ानिस्तान में आर्थिक निवेश के संकेत दिए हैं, लेकिन सुरक्षा की अनिश्चितता ने उसे पीछे रखा है। ऐसे में भारत का मुत्ताक़ी से संवाद शुरू करना इस क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में एक नया तत्व जोड़ता है।
भारत यह दिखाना चाहता है कि वह अफ़ग़ानिस्तान को ‘गिव अप’ नहीं करेगा — चाहे तालिबान शासन में ही क्यों न हो।
🔸 देवबंद और तालिबान — वैचारिक रिश्ता या सांस्कृतिक संवाद?
कई विश्लेषक मुत्ताक़ी की देवबंद यात्रा को “वैचारिक वापसी” कह रहे हैं। लेकिन यह कहना अधूरा होगा। देवबंद और तालिबान का रिश्ता ऐतिहासिक है, पर भारत में यह संस्था हमेशा “शिक्षा और शांति” की बात करती आई है।
मौलाना अबुल क़ासिम नौमानी ने हाल ही में कहा था —
“दारुल उलूम किसी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा नहीं, बल्कि इल्म और इंसानियत का मरकज़ है।”
इस बयान से यह साफ़ होता है कि भारत मुत्ताक़ी की यात्रा को धार्मिक से ज़्यादा शैक्षणिक और सांस्कृतिक रूप में प्रस्तुत करना चाहता है।
🔸 मुत्ताक़ी की यात्रा का संभावित परिणाम
मुत्ताक़ी की मुलाक़ातें चाहे औपचारिक हों या प्रतीकात्मक, उनके दूरगामी असर होंगे। यह दौरा इस बात की शुरुआत है कि भारत और तालिबान के बीच संवाद की रेखाएँ धीरे-धीरे बहाल हो रही हैं।
हालाँकि यह मानना जल्दबाज़ी होगी कि भारत तालिबान को मान्यता देने जा रहा है। लेकिन यह दौरा एक टेस्ट केस की तरह है — यह देखने के लिए कि क्या तालिबान अपने वादों पर कायम रह सकता है:
अफ़ग़ान भूमि आतंकवाद के लिए इस्तेमाल न हो
महिलाओं की शिक्षा और मानवाधिकारों का सम्मान हो
अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन किया जाए
अगर तालिबान इस दिशा में थोड़ा भी आगे बढ़ता है, तो भारत आगे के संवाद को गहराई दे सकता है।
🔸 निष्कर्ष — कूटनीति का नया अध्याय
अमीर खान मुत्ताक़ी का भारत दौरा केवल एक राजनीतिक यात्रा नहीं है, यह दो सभ्यताओं के बीच संवाद का पुल है।
नई दिल्ली और देवबंद — दोनों ही दक्षिण एशिया के प्रतीक हैं: एक आधुनिक कूटनीति का, दूसरा पारंपरिक शिक्षा का।
भारत इस अवसर को संतुलन और सावधानी से संभाल रहा है — न अत्यधिक उत्साह, न ठंडी दूरी।
अगर आने वाले महीनों में दोनों देशों के बीच व्यापार, शिक्षा और सुरक्षा सहयोग पर वार्ता आगे बढ़ती है, तो यह कहा जा सकेगा कि मुत्ताक़ी की यात्रा ने सचमुच एक नया अध्याय खोला है — “संवाद की राजनीति” का।






