
Indian Prime Minister Narendra Modi and UK Prime Minister Keir Starmer greet each other during the Global Fintech Fest 2025 in Mumbai. The meeting highlights growing India–UK cooperation in innovation and strategic partnerships. – Shah Times
ब्रिटेन–भारत रक्षा साझेदारी: नई सामरिक दिशा की ओर कदम
मिसाइल से लेकर इलेक्ट्रिक जहाज तक: नई दिल्ली–लंदन के बीच नया रक्षा समीकरण
📍मुंबई – लंदन
🗓️ 09 अक्टूबर 2025 ✍️ Asif Khan
भारत और ब्रिटेन के बीच हाल ही में हुए £600 मिलियन के रक्षा सौदे केवल सैन्य खरीद नहीं बल्कि रणनीतिक भरोसे की नई कहानी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर की मुंबई बैठक में घोषित इन समझौतों ने दोनों देशों की रक्षा-औद्योगिक साझेदारी को नई ऊँचाई दी है।
इस पैकेज में शामिल थेल्स निर्मित हल्की बहुउद्देशीय मिसाइलें (LMM) और भारतीय नौसेना के लिए इलेक्ट्रिक प्रणोदन प्रणाली न केवल सामरिक जरूरतें पूरी करती हैं बल्कि “आत्मनिर्भर भारत” और “ग्लोबल ब्रिटेन” दोनों के विज़न को जोड़ती हैं।
Anglo-Indian Defence Axis:: हल्के बहुउद्देशीय मिसाइल, इलेक्ट्रिक प्रणोदन समझौते और जटिल हथियार साझेदारी का भविष्य
भारत और ब्रिटेन के रिश्ते सदियों पुराने हैं, लेकिन आज उनकी दिशा पूरी तरह नई और संतुलित है। इस बार बात सिर्फ ऐतिहासिक जुड़ाव की नहीं, बल्कि साझा रणनीतिक हितों की है।
दोनों देशों ने यह मान लिया है कि आधुनिक युद्ध केवल हथियारों से नहीं, तकनीक और भरोसे से लड़ा जाता है। यही भावना LMM और IFEP समझौतों में झलकती है।
हल्की बहुउद्देशीय मिसाइलें (LMM): तेज़ जवाब की नई क्षमता
भारतीय सेना के लिए खरीदी जा रही Thales निर्मित Lightweight Multirole Missiles (LMM), वायु रक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण खालीपन भरेंगी।
ये मिसाइलें Mach 1.5 की गति से उड़ सकती हैं, 8 किमी तक की दूरी तय कर सकती हैं, और ड्रोन, हेलीकॉप्टर, नौका सभी पर समान रूप से असरदार हैं।
तकनीकी रूप से यह एक “मल्टी-गाइडेड” मिसाइल है, जो लेज़र बीम, सेमी-एक्टिव लेज़र और इन्फ्रारेड होमिंग को जोड़ती है — यानी जवाब भी तेज़ और सटीक।
भारतीय सेना के लिए इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह VSHORAD (Very Short Range Air Defence) अंतराल को भरती है, जो लंबे समय से कमजोर कड़ी मानी जाती थी।
जैसे-जैसे ड्रोन युद्ध और सीमाई वायु खतरों का दबाव बढ़ रहा है, LMM भारत की वायु रक्षा में एक निर्णायक बदलाव लाएगी।
ब्रिटेन के लिए यह सौदा आर्थिक राहत भी है। Northern Ireland के Belfast स्थित Thales संयंत्र में करीब 700 नौकरियाँ इस डील से सुरक्षित रहेंगी।
यानी यह सौदा दोनों देशों के लिए सैन्य के साथ-साथ औद्योगिक सुरक्षा की भी गारंटी है।
जटिल हथियार साझेदारी (Complex Weapons Partnership – CWP): तकनीकी भरोसे की नई परीक्षा
CWP फ्रेमवर्क, भारत और ब्रिटेन के बीच लंबी अवधि की तकनीकी साझेदारी का आधार बनेगा।
भारत की “आत्मनिर्भर भारत” नीति और यूके की “Global Britain” रणनीति दोनों इस सहयोग को सामरिक लाभ में बदल सकती हैं — बशर्ते तकनीक हस्तांतरण (Technology Transfer – ToT) निष्पक्ष और तेज़ हो।
पिछले अनुभव, जैसे कि Starstreak-LBRM परियोजना, ने दिखाया कि जब ToT पारदर्शी ढंग से लागू किया जाता है, तो न केवल उत्पादन बढ़ता है, बल्कि भारत वैश्विक सप्लाई चेन का हिस्सा भी बन सकता है।
अब LMM और IFEP समझौतों में वही भरोसा दोहराया जाना चाहिए — ताकि भारत केवल ग्राहक नहीं बल्कि सह-निर्माता बने।
भारतीय नौसेना और इलेक्ट्रिक प्रणोदन प्रणाली (IFEP): समुद्र से अंतरिक्ष तक शक्ति विस्तार
भारतीय नौसेना के लिए £250 मिलियन का इलेक्ट्रिक प्रणोदन समझौता भविष्य के युद्धपोतों की दिशा तय करेगा।
यह “Integrated Full Electric Propulsion (IFEP)” प्रणाली न सिर्फ Stealth (गोपनीयता) बढ़ाती है बल्कि जहाज की ऊर्जा दक्षता और उत्तरजीविता को भी कई गुना बढ़ा देती है।
यह वही तकनीक है जो ब्रिटिश नौसेना के Type 45 Destroyers में प्रयोग हो रही है।
भारतीय नौसेना इसे अपने Project 18 Heavy Destroyer कार्यक्रम में लागू करने की योजना बना रही है — जिससे भारत का Blue Water Navy सपना और करीब आ जाएगा।
इस सहयोग से BHEL और GE Power Conversion जैसी कंपनियों को भी उन्नत R&D अवसर मिलेंगे।
रणनीतिक और भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
भारत-यूके साझेदारी अब केवल द्विपक्षीय नहीं रही; यह इंडो-पैसिफिक स्थिरता के लिए सामरिक स्तंभ बन रही है।
ब्रिटेन ने हाल ही में Carrier Strike Group (CSG) को हिंद महासागर में भारतीय नौसेना के साथ अभ्यास के लिए भेजा था — यह केवल सैन्य प्रदर्शन नहीं, बल्कि साझा रणनीतिक संदेश था:
“इंडो-पैसिफिक में स्वतंत्रता, साझेदारी और शक्ति का संतुलन”।
चीन की बढ़ती समुद्री गतिविधियों के बीच यह साझेदारी A2/AD (Anti-Access/Area Denial) रणनीति का जवाब भी है।
LMM और IFEP दोनों ही भारत की सामरिक आत्मनिर्भरता और निवारक शक्ति को मजबूत करेंगे।
आर्थिक प्रभाव और नीतिगत संतुलन
यह सौदा केवल हथियार नहीं, बल्कि आर्थिक कूटनीति का भी हिस्सा है।
यूके के लिए यह “Post-CETA Dividend” है — जिसमें व्यापार समझौते के बाद रक्षा सौदों के ज़रिए राजनीतिक और आर्थिक लाभ सुरक्षित किए गए।
भारत के लिए यह एक मॉडल साझेदारी है, जो “Make in India” और “Export from India” दोनों उद्देश्यों को साथ लेकर चल सकती है।
नीतिगत स्तर पर भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि ToT केवल दस्तावेज़ी नहीं बल्कि वास्तविक तकनीकी हस्तांतरण में बदले, ताकि स्वदेशी उत्पादन का अनुपात 60% तक पहुँच सके।
यूके के लिए चुनौती होगी — अपनी IP (Intellectual Property) सुरक्षा और भारत की उत्पादन क्षमता के बीच सही संतुलन बनाए रखना।
भविष्य दृष्टिकोण
आगामी चरणों में भारत-यूके सहयोग लंबी दूरी की मिसाइल, नौसैनिक आयुध और रक्षा AI तकनीक तक जा सकता है।
अगर भारत ToT प्रक्रिया को समयबद्ध बनाए रखे और यूके राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करे, तो यह साझेदारी दोनों देशों को रक्षा–प्रौद्योगिकी सहयोग के वैश्विक केंद्र में बदल सकती है।





