
Former US President Donald Trump with stern expression as Indian PM Narendra Modi shakes hands with Russian President Vladimir Putin alongside Chinese President Xi Jinping at the SCO summit — reflecting shifting global equations.
ट्रंप के टैरिफ़ के दरमियान US-India रिश्तों पर भरोसा
टैरिफ़ और तेल विवाद के बीच India-US रिश्तों का इम्तिहान
भारत-अमेरिका रिश्तों में तनाव बढ़ा, पर US ट्रेज़री सचिव बोले– “दो महान देश इसे सुलझा लेंगे।” रूस तेल सौदे और टैरिफ़ विवाद केंद्र में।
भारत और अमेरिका के रिश्ते इस वक्त एक पैचीदा मोड़ पर खड़े हैं। एक ओर दोनों देश लोकतांत्रिक मूल्यों और रणनीतिक साझेदारी की मजबूत नींव पर खड़े हैं, वहीं दूसरी ओर ट्रेड टैरिफ़, ऊर्जा सुरक्षा और रूस से भारत के गहरे संबंध इस साझेदारी को चुनौती दे रहे हैं। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिकी ट्रेज़री सचिव स्कॉट बेसेंट के बयानों ने इस तनाव को और उजागर कर दिया है।
अमेरिका का सख़्त पैग़ाम
अमेरिकी ट्रेज़री सचिव स्कॉट बेसेंट ने एक इंटरव्यू में कहा कि “दो महान देश किसी भी मतभेद को सुलझा सकते हैं।” लेकिन साथ ही उन्होंने रूस से भारत के तेल आयात को यूक्रेन युद्ध में अप्रत्यक्ष सहयोग करार दिया। बेसेंट का यह बयान साफ़ दिखाता है कि वॉशिंगटन दिल्ली पर दबाव बढ़ा रहा है।
ट्रंप का टैरिफ़ दांव: भारत पर 50% तक टैरिफ़ बढ़ाने का फ़ैसला केवल व्यापार वार्ता की विफलता का परिणाम नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी था।
ऊर्जा समीकरण: रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अहम है, लेकिन अमेरिका इसे अपने भू-राजनीतिक हितों के ख़िलाफ़ मानता है।
भारतीय नजरिया और मजबूरियां
भारत का पक्ष साफ़ है—ऊर्जा की मांग और किफ़ायती स्रोतों तक पहुंच उसके लिए प्राथमिकता है।
रूस से तेल खरीद भारत को energy diversification देता है।
अमेरिका का LNG महंगा है और लॉजिस्टिक चुनौतियाँ अधिक हैं।
भारत का दावा है कि वह “किसी भी पक्ष का मोहरा नहीं” बल्कि strategic autonomy को प्राथमिकता देता है।
ट्रंप की एकतरफ़ा शिकायतें
ट्रंप ने कहा कि “भारत हमें बहुत कम खरीदता है, जबकि हमें बहुत ज़्यादा बेचता है।”
यह बयान वॉशिंगटन की उस trade deficit चिंता को उजागर करता है, जो दशकों से अमेरिका की नीति-निर्माण में केंद्रीय रही है।
हालांकि, अमेरिकी विश्लेषकों का मानना है कि:
ट्रंप के tariff-heavy approach ने भारत को रूस और चीन के क़रीब धकेला।
अमेरिका को चाहिए था कि वह multilateral coalition building पर ध्यान देता, न कि केवल transactional रिश्तों पर।
एससीओ शिखर सम्मेलन और प्रतीकात्मक संदेश
दिल्ली, मॉस्को और बीजिंग के नेताओं की तस्वीरें अमेरिकी मीडिया में सुर्खियाँ बनीं। मोदी-पुतिन-जिनपिंग का हाथ मिलाना और गले लगना सिर्फ़ औपचारिक कूटनीति नहीं, बल्कि वॉशिंगटन को संदेश था कि एशिया में नए समीकरण बन रहे हैं।
एनबीसी न्यूज: “यह गले मिलना वॉशिंगटन के लिए चेतावनी था।”
वाशिंगटन पोस्ट: “ट्रंप बहुपक्षीय रणनीति छोड़कर केवल व्यक्तिगत सौदों पर अटके।”
लेकिन सवाल यह भी है कि क्या भारत सचमुच अमेरिका से दूर हो सकता है?
आर्थिक जुड़ाव: अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
टेक्नोलॉजी और डिफेंस: क्वाड, 5G, और रक्षा समझौते भारत-अमेरिका रिश्तों की बुनियाद हैं।
लोकतांत्रिक मूल्य: रूस और चीन की तुलना में भारत और अमेरिका के बीच वैचारिक नज़दीकी कहीं ज़्यादा है।
नतीजा
भारत और अमेरिका के बीच तनाव नया नहीं है, लेकिन मौजूदा टकराव यह संकेत देता है कि आने वाले वर्षों में energy security, trade balance और multipolar diplomacy ही इन संबंधों की दिशा तय करेंगे। वॉशिंगटन को चाहिए कि वह भारत की मजबूरियों को समझे और नई दिल्ली को चाहिए कि वह अपने रणनीतिक संतुलन को और सूझ-बूझ से साधे।