
IMF report showing India’s GDP growth overcoming US tariff impact
IMF रिपोर्ट: टैरिफ जंग के बावजूद भारतीय इकोनॉमी चमकी
भारत की रफ्तार बरकरार, IMF ने बढ़ाया ग्रोथ अनुमान
टैरिफ के झटके पर भारी पड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था
📍नई दिल्ली🗓️ Date: 25 अक्टूबर 2025✍️Asif Khan
IMF की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी टैरिफ के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपनी रफ्तार कायम रखी है। घरेलू मांग, मैन्युफैक्चरिंग और निवेश की मजबूती ने झटके को संतुलित कर दिया।
भारत की अर्थव्यवस्था इन दिनों एक दिलचस्प दौर से गुज़र रही है। एक तरफ़ वैश्विक बाज़ारों में मंदी का डर है, तो दूसरी तरफ़ भारत की GDP ग्रोथ उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन कर रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की नई वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट इस बात की गवाही देती है कि भारत अभी भी दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है।
IMF के मुताबिक़, वित्त वर्ष 2025–26 में भारत की GDP 6.6 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। रिपोर्ट साफ़ कहती है कि अमेरिका के टैरिफ वॉर का असर भारत पर उतना गहरा नहीं पड़ा जितना आशंका थी।
घरेलू मांग बनी सहारा
भारत की अर्थव्यवस्था की असली ताक़त हमेशा से उसकी घरेलू खपत रही है। इस बार भी वही हुआ।
जब अमेरिका ने चीन और भारत दोनों पर उच्च टैरिफ लगाए, तो दुनिया ने सोचा कि भारत की निर्यात निर्भरता को बड़ा झटका लगेगा। लेकिन हुआ उल्टा।
देश में मजबूत घरेलू डिमांड, प्रोडक्शन ग्रोथ, और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट ने झटके को संभाल लिया।
IMF ने रिपोर्ट में साफ़ लिखा —
“टैरिफ के प्रभाव उम्मीद से कम गंभीर रहे हैं, जिसका श्रेय भारत की लचीली घरेलू अर्थव्यवस्था और व्यापार विविधता को जाता है।”
यह बयान दरअसल भारत की बदलती आर्थिक नीति को दर्शाता है — जो अब निर्यात पर नहीं, बल्कि लोकल मार्केट और नवाचार आधारित ग्रोथ पर टिकी है।
चीन से आगे, आत्मविश्वास से भरा भारत
IMF ने अनुमान लगाया है कि भारत की विकास दर (6.6%), चीन (4.8%) से आगे रहेगी।
यह केवल आर्थिक जीत नहीं, बल्कि नीति-निर्माण की जीत है।
भारत ने बीते वर्षों में मैन्युफैक्चरिंग में सुधार, सेवा क्षेत्र के विस्तार और डिजिटल इकोनॉमी पर जो दांव लगाया, वो अब रंग ला रहा है।
उदाहरण के तौर पर, भारत का फिनटेक सेक्टर अब ग्लोबल इनोवेशन लीडर बन चुका है।
देश में डिजिटल पेमेंट और MSME सेक्टर की मज़बूती ने उपभोग को बढ़ावा दिया है।
IMF की रिपोर्ट यह भी कहती है कि आने वाले साल में भले ग्रोथ थोड़ी सुस्त (6.2%) हो, पर भारत स्टेबल और रेज़िलिएंट बना रहेगा।
दुनिया थमी, भारत बढ़ा
जहां ग्लोबल ग्रोथ 3.2% तक सीमित है, वहीं भारत का अनुमान इससे दोगुना है।
IMF का कहना है कि विकसित देश जैसे अमेरिका, यूरोप, जापान केवल 1.6% की दर से बढ़ेंगे, जबकि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएं (Emerging Economies) 4.2% से आगे रहेंगी।
भारत इस ग्रुप का लीडर है।
यानी, जबकि दुनिया आर्थिक सुस्ती से जूझ रही है, भारत एक सकारात्मक अपवाद (Positive Exception) बना हुआ है।
IMF रिपोर्ट का संकेत: भारत की नीति सही दिशा में
IMF का यह भरोसा सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है।
यह भारत के वित्तीय अनुशासन, सरकारी निवेश, और रिफॉर्म-ड्रिवन इकोनॉमिक अप्रोच की सफलता है।
‘मेक इन इंडिया’, ‘पीएलआई स्कीम’, और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे अभियानों ने आर्थिक ढांचे को मजबूत किया है।
IMF की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत ने टैरिफ शॉक को घरेलू रेज़िलिएंस से न्यूट्रलाइज़ किया है।
यानि, जब अमेरिका ने व्यापारिक दबाव बनाने की कोशिश की, तब भारत झुका नहीं — उसने अपना रास्ता खुद तय किया।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण: क्या यह स्थायी है?
लेकिन सवाल ये भी है — क्या यह ग्रोथ टिकाऊ है?
IMF ने ख़ुद चेताया है कि शुरुआती तेज़ी लंबे समय तक बनी नहीं रह सकती।
अगर वैश्विक मांग लगातार घटती रही, तो भारत के निर्यात सेक्टर पर दबाव बढ़ सकता है।
इसके अलावा, रोज़गार सृजन, कृषि उत्पादकता, और मिडिल-क्लास की क्रयशक्ति जैसे क्षेत्रों में सुधार की ज़रूरत अभी बाकी है।
अगर इन मोर्चों पर भारत ठोस कदम नहीं उठाता, तो ग्रोथ “सांख्यिकीय” रह जाएगी, “सामाजिक” नहीं।
यानी GDP बढ़ेगी, पर आम लोगों की जेब में उसका असर महसूस नहीं होगा।
IMF की रिपोर्ट भारत के लिए उत्साहजनक है, लेकिन यह आत्मसंतोष का कारण नहीं।
भारत को अब इस रफ्तार को टिकाए रखने के लिए स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स, स्किल डेवलपमेंट, और स्थानीय उद्योगों को वैश्विक सप्लाई चेन से जोड़ने पर ज़ोर देना होगा।
टैरिफ वार की आंच भले ही कम महसूस हुई हो, लेकिन यह कहानी हमें याद दिलाती है —
अर्थव्यवस्था केवल आंकड़ों से नहीं, भरोसे और नीतिगत दृढ़ता से चलती है।




