
भारत का EU को सख्त संदेश: प्रतिबंध मंजूर नहीं, ऊर्जा प्राथमिकता है
EU के ताज़ा प्रतिबंधों से भारत-यूरोप संबंधों में खिंचाव, भारत ने दोहराया- ऊर्जा सुरक्षा से कोई समझौता नहीं
Shah Times Editorial
भारत ने EU के प्रतिबंधों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि ऊर्जा सुरक्षा सर्वोच्च है। गुजरात की नायरा एनर्जी रिफाइनरी पर EU की कार्रवाई से भारत-यूरोप संबंधों में तनाव बढ़ा।
प्रतिबंधों की आड़ में रणनीतिक द्वंद्व
16 जुलाई 2025 को यूरोपीय संघ (EU) द्वारा रूस के खिलाफ घोषित 18वें प्रतिबंध पैकेज ने वैश्विक ऊर्जा बाजार के साथ-साथ भारत और यूरोप के रिश्तों में नया तनाव पैदा कर दिया है। इन प्रतिबंधों की चपेट में भारत की गुजरात स्थित वडीनार रिफाइनरी भी आ गई है, जिसे नायरा एनर्जी संचालित करती है। भारत सरकार ने EU के इस कदम की तीव्र आलोचना की है, जिसे वह न केवल एकतरफा, बल्कि दोहरे मानकों से प्रेरित मानती है। इस संपादकीय में हम भारत की प्रतिक्रिया, इसके रणनीतिक संकेत और वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था पर संभावित प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।
प्रतिबंधों की बुनियाद और नायरा एनर्जी का विवाद
EU का नया प्रतिबंध पैकेज खासतौर पर रूसी तेल कारोबार को चोट पहुंचाने के इरादे से तैयार किया गया है। इसमें रूसी कच्चे तेल की अधिकतम कीमत को घटाकर 47.6 डॉलर प्रति बैरल कर दिया गया है, साथ ही ‘शैडो फ्लीट’ और नायरा एनर्जी जैसी कंपनियों को प्रतिबंध सूची में डाला गया है।
गौरतलब है कि नायरा एनर्जी की 49.13% हिस्सेदारी रूस की सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट के पास है। यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी रिफाइनरी है, जो गुजरात के वडीनार में स्थित है और हर साल करीब 2 करोड़ टन कच्चे तेल का परिष्करण करती है। EU का आरोप है कि यह कंपनी रूसी कच्चे तेल से तैयार पेट्रोल-डीजल यूरोपीय बाजार में भेज रही है, जिससे रूस को अप्रत्यक्ष लाभ हो रहा है।
भारत की प्रतिक्रिया: ऊर्जा सुरक्षा सर्वोपरि
भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह किसी भी ऐसे प्रतिबंध को नहीं मानता जो संयुक्त राष्ट्र के अनुमोदन के दायरे से बाहर हों। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस संबंध में दो टूक कहा:
“हम जिम्मेदार राष्ट्र हैं और अपने कानूनी दायित्वों का पूर्ण पालन करते हैं। लेकिन ऊर्जा सुरक्षा हमारे नागरिकों की बुनियादी आवश्यकता है, और इसमें कोई दोहरा मापदंड स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
भारत की यह प्रतिक्रिया केवल कूटनीतिक विरोध भर नहीं है, बल्कि यह उसकी दीर्घकालिक नीति की अभिव्यक्ति है, जिसमें ऊर्जा आपूर्ति को सुरक्षित करना सर्वोच्च प्राथमिकता है।
यूरोपीय संघ की मंशा और उसकी विसंगतियां
यूरोपीय संघ के अनुसार, इन प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस की राजस्व क्षमता को कम करना और वैश्विक स्तर पर अवैध तेल व्यापार को रोकना है। EU की विदेश नीति प्रमुख काजा कलास ने कहा:
“यह पहली बार है जब हम भारत स्थित रोसनेफ्ट-संबद्ध रिफाइनरी को निशाना बना रहे हैं।”
हालांकि, EU की यह नीति आलोचनात्मक नजर से देखी जा रही है क्योंकि यह ऊर्जा व्यापार के मूल सिद्धांतों — निष्पक्षता और वैश्विक निर्भरता — के विपरीत प्रतीत होती है। भारत जैसे विकासशील देश, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए वैश्विक स्रोतों पर निर्भर हैं, उनके लिए ये कदम असंतुलन पैदा करते हैं।
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रूस-भारत रणनीतिक संबंध और प्रतिबंधों की वैधता
भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रणनीतिक संबंध हैं, जिनमें रक्षा, ऊर्जा, और तकनीकी सहयोग शामिल है। भारत बार-बार यह स्पष्ट कर चुका है कि वह केवल संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुमोदित प्रतिबंधों का पालन करता है। EU के प्रतिबंध, जिनका कोई अंतरराष्ट्रीय कानूनी आधार नहीं है, भारत के लिए बाध्यकारी नहीं माने जाते।
रूस ने भी EU के कदम को “अवैध और राजनीतिक प्रतिशोध” बताया है। ऐसे में भारत की स्थिति और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि वह वैश्विक दक्षिण के लिए नेतृत्व का प्रतीक बनता जा रहा है — ऐसा राष्ट्र जो पश्चिमी दबावों के बजाय स्वतंत्र विदेश नीति पर आधारित निर्णय करता है।
नायरा एनर्जी पर असर और भविष्य की दिशा
EU के प्रतिबंधों के तहत अब नायरा एनर्जी यूरोप को ईंधन उत्पादों का निर्यात नहीं कर पाएगी। इससे भारत की विदेश व्यापार नीति पर भी असर पड़ सकता है। हालांकि, इसके पीछे EU की यह सोच है कि रूसी तेल पर आधारित उत्पादों के प्रसार को रोका जाए, परंतु यह सवाल उठता है कि क्या यह रणनीति व्यावहारिक है?
भारत के लिए इससे एक अवसर भी पैदा होता है — घरेलू उपभोग के लिए सस्ती ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करना और रूस जैसे साझेदार देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को और मज़बूत करना।
दोहरे मापदंड की राजनीति
भारत की ओर से “दोहरे मापदंड” शब्द का प्रयोग केवल EU की नीति पर प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था की एक सच्चाई को उजागर करने के लिए किया गया है। जब यूरोपीय देश स्वयं ऊर्जा संकट से जूझ रहे थे, तो उन्होंने विभिन्न गैर-पारंपरिक स्रोतों से तेल-गैस लेने में संकोच नहीं किया। लेकिन जब यही कदम भारत उठाता है, तो उसे वैश्विक नियमों की दुहाई दी जाती है।
यही वजह है कि भारत ने इस नीति को अस्वीकार किया है और यह संदेश दिया है कि वह अपनी ऊर्जा नीतियों को किसी के दबाव में नहीं बदलेगा।
भारत-यूरोप संबंधों पर प्रभाव
भारत और यूरोप के बीच रणनीतिक सहयोग, व्यापार और तकनीकी समझौते वर्षों से बढ़ रहे हैं। लेकिन इस प्रकार के प्रतिबंध आपसी विश्वास और साझेदारी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। विशेष रूप से जब भारत यूरोपीय देशों को रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में संभावित साझेदार मानता है, तब इस प्रकार के कदम उस भरोसे को कमजोर करते हैं।
वैकल्पिक रास्ते और भारत की ऊर्जा कूटनीति
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी ऊर्जा रणनीति को बहुस्तरीय बनाया है। सऊदी अरब, ईरान, रूस, अमेरिका और अफ्रीकी देशों से कच्चे तेल और गैस आयात के विकल्पों को विकसित किया गया है। भारत के पास अब LNG टर्मिनलों, क्रूड रिजर्व और रिफाइनिंग क्षमताओं की अच्छी खासी व्यवस्था है।
इस परिस्थिति में भारत EU पर निर्भरता घटाकर नए व्यापारिक अवसरों की ओर रुख कर सकता है। विशेष रूप से एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में ऊर्जा साझेदारियां बढ़ाने की संभावना है।
निष्कर्ष: क्या यह टकराव वैश्विक बदलाव का संकेत है?
EU और भारत के बीच यह टकराव केवल एक रिफाइनरी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था में शक्ति संतुलन की नई व्याख्या भी है। भारत का सख्त और स्पष्ट रुख यह दिखाता है कि वह अब ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों की रक्षा करने वाला सशक्त राष्ट्र है, जो पश्चिमी आदेशों पर नहीं बल्कि पारस्परिक सम्मान और संतुलन पर आधारित वैश्विक साझेदारी में विश्वास करता है।
यह टकराव एक संदेश भी है कि ऊर्जा जैसे बुनियादी क्षेत्र को भू-राजनीतिक हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए। भारत की नीति, जिसमें ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता प्राथमिक हैं, आने वाले वर्षों में वैश्विक राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभा सकती है।