
भारत के समर्थन में ईरान का बड़ा बयान, अमेरिका पर लगाया आर्थिक हथियारों के इस्तेमाल का आरोप
अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ भारत-ईरान की रणनीतिक एकता, क्या बदल रही है वैश्विक व्यवस्था?
ईरान ने भारत के समर्थन में अमेरिका पर लगाया आर्थिक साम्राज्यवाद का आरोप, कहा- विकासशील देशों को संगठित होकर नई व्यवस्था बनानी होगी।
ईरान का भारत को समर्थन: क्या बन रही है नई वैश्विक आर्थिक व्यवस्था?
अमेरिका द्वारा भारत की छह कंपनियों पर ईरान के साथ व्यापार को लेकर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद ईरान खुलकर भारत के समर्थन में सामने आया है। यह घटनाक्रम वैश्विक आर्थिक कूटनीति में एक बड़ा संकेत माना जा रहा है। ईरान ने अमेरिका पर “आर्थिक साम्राज्यवाद” का आरोप लगाते हुए एक नई, बहुध्रुवीय और गैर-पश्चिमी वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
भारत और ईरान की एकजुटता
नई दिल्ली स्थित ईरानी दूतावास ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि अमेरिका लगातार अपनी अर्थव्यवस्था को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर स्वतंत्र देशों पर मनमानी थोपने की कोशिश कर रहा है। यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि वैश्विक दक्षिण (Global South) के लिए भी एक चेतावनी है।
ईरान ने भारत का खुलकर समर्थन करते हुए यह भी कहा कि यह समय है जब विकासशील और स्वतंत्र देश मिलकर एक नई, संतुलित वैश्विक व्यवस्था तैयार करें जो पश्चिमी वर्चस्व से मुक्त हो।
अमेरिकी प्रतिबंध और भारतीय कंपनियां
अमेरिका के विदेश विभाग ने 20 कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं, जिनमें से 6 भारतीय कंपनियां हैं। इन कंपनियों पर आरोप है कि इन्होंने ईरान से पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल उत्पाद खरीदे हैं, जो अमेरिका के एकतरफा प्रतिबंधों का उल्लंघन है।
हालांकि, भारत ने अमेरिकी द्वितीयक प्रतिबंधों को कभी भी अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत मान्यता नहीं दी है। फिर भी, इन प्रतिबंधों के जरिए अमेरिकी प्रशासन ने भारत की संप्रभुता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
ईरानी दूतावास का कड़ा बयान
नई दिल्ली स्थित ईरानी दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:
“संयुक्त राज्य अमेरिका लगातार अर्थव्यवस्था को हथियार बना रहा है और ईरान एवं भारत जैसे स्वतंत्र देशों पर अपनी इच्छा थोपने के लिए प्रतिबंधों का उपयोग कर रहा है।”
बयान में आगे कहा गया:
“ये बलपूर्वक और भेदभावपूर्ण कदम अंतरराष्ट्रीय कानून और राष्ट्रीय संप्रभुता का उल्लंघन करते हैं। यह आधुनिक आर्थिक साम्राज्यवाद है, और इसका विरोध करना आवश्यक है।”
पीएम मोदी और यूएई राष्ट्रपति की बातचीत
इधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नहयान से टेलीफोन पर बात की। दोनों नेताओं ने रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने पर जोर दिया और क्षेत्रीय सहयोग को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई।
यह संवाद ऐसे समय पर आया है जब भारत वैश्विक मंच पर एक संतुलनकारी भूमिका निभा रहा है और अमेरिका के दबाव से बाहर निकलने की कूटनीति अपना रहा है।
अमेरिका के प्रतिबंध: एकतरफा नीति या वैश्विक खतरा?
संयुक्त राज्य अमेरिका का यह रुख वैश्विक आर्थिक सहयोग की भावना के विपरीत माना जा रहा है। भारत और ईरान जैसे देश अब यह महसूस कर रहे हैं कि अमेरिका आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए वैश्विक राजनीति को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता और विकास बाधित हो रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका का यह रवैया अंतरराष्ट्रीय व्यापार और संप्रभुता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
गैर-पश्चिमी बहुपक्षीय व्यवस्था की आवश्यकता
ईरान की अपील स्पष्ट है – अब वक्त आ गया है कि ग्लोबल साउथ के देश संगठित होकर एक ऐसी प्रणाली विकसित करें जो पश्चिमी नियंत्रण और मनमानी नीतियों से मुक्त हो। ईरानी विदेश मंत्रालय ने भी अमेरिका की निंदा करते हुए कहा कि यह कदम केवल ईरानी सरकार नहीं, बल्कि ईरानी जनता के खिलाफ भी है।
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क्या बन रहा है एक नया वैश्विक आर्थिक मोर्चा?
ईरान द्वारा भारत को मिला यह समर्थन केवल एक द्विपक्षीय सहयोग नहीं, बल्कि एक व्यापक वैश्विक ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है। अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों के खिलाफ भारत और ईरान का साथ आना यह संकेत देता है कि अब गैर-पश्चिमी देशों का एक नया गठबंधन उभर रहा है।
आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या भारत इस मोर्चे को आगे बढ़ाता है या फिर संतुलन बनाए रखता है। लेकिन इतना तय है कि अमेरिका के आर्थिक हथियारों के जवाब में अब वैश्विक दक्षिण की आवाज बुलंद हो रही है।