
: Ayatollah Khamenei addressing cabinet, calling Muslim nations to boycott Israel | Shah Times
अयातुल्ला खामेनेई बोले- चुप्पी भी इजरायल के जुर्म में साझेदारी
मुस्लिम उम्मा को एकजुट होने का पैग़ाम, इजरायल से दूरी की अपील
खामेनेई ने मुस्लिम देशों से इजरायल संग सारे रिश्ते तोड़ने की अपील की, कहा- चुप्पी या खामोशी भी अपराध में साझेदारी है।
Tehran,(Shah Times) । मिडिल ईस्ट की सियासत एक बार फिर गरम है। ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई ने मुस्लिम बहुल मुल्क़ों को सीधा पैग़ाम देते हुए कहा है कि अब वक्त आ गया है जब ज़ायोनी हुकूमत के साथ हर किस्म का ताल्लुक़ — चाहे वो कमर्शियल हो या सियासी — पूरी तरह से ख़त्म कर दिया जाए। उनका कहना है कि “इसराईल के नापाक अपराध, इंसानी तालीमात और इंसाफ़ के खिलाफ़ जंग हैं। अगर दुनिया खामोश रही तो ये ख़ामोशी खुद एक जुर्म होगी।”
हालात और बयान की अहमियत
तेहरान में कैबिनेट और सदर मसूद पेजेश्कियान से मुलाक़ात के बाद खामेनेई ने अपने एक्स (Twitter) अकाउंट पर इस बयान को पब्लिक किया। उन्होंने साफ़ कहा कि “मुस्लिम उम्मा” को अब मुत्तहिद होकर इजरायल के ख़िलाफ़ न सिर्फ़ अल्फ़ाज़ बल्कि अमल से दबाव बनाना होगा।
उन्होंने कहा:
बिज़नेस और डिप्लोमैटिक रिलेशन काट देना पहली ज़रूरी क़दम है।
चुप रहना या बे-हिसी इजरायल के जुर्म में शरीक़ होना है।
अमेरिका की मदद से हो रही तबाही रुक नहीं सकती, लेकिन इसका मुक़ाबला अब भी मुमकिन है।
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Analysis
खामेनेई का ये बयान उस वक़्त आया है जब ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में हालात संगीन होते जा रहे हैं। इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स ग्रुप्स ने बार-बार रिपोर्ट किया कि इजरायल की फौज ने सैंकड़ों बेगुनाह फ़िलिस्तीनियों को निशाना बनाया। मगर वॉशिंगटन ने हमेशा इसराईल को बैकअप दिया।
ईरान, जो पहले ही अरब दुनिया में अपने रेवोल्यूशनरी नैरेटिव के लिए मशहूर है, अब इस बयान के ज़रिए पूरे मुस्लिम ब्लॉक को “Unity against Zionism” के एजेंडे पर लाने की कोशिश कर रहा है। सवाल ये है कि क्या सऊदी अरब, यूएई, मिस्र जैसे मुल्क़, जिन्होंने अब्राहम अकॉर्ड के बाद इजरायल से रिश्ते मज़बूत किए थे, वाक़ई इस अपील को मानेंगे?
काउंटरपॉइंट्स
अरब रियासतों की मज़बूरी: सऊदी और यूएई जैसे मुल्क़ इजरायल के साथ इकॉनॉमिक और टेक्नॉलॉजी डील्स से अरबों डॉलर कमा रहे हैं। ऐसे में उन्हें ईरान की कॉल मानना आसान नहीं।
जियोपॉलिटिकल बैलेंस: वॉशिंगटन और यूरोपियन यूनियन पहले से ही ईरान पर सैंक्शन लगाए हुए हैं। अगर कोई और मुल्क़ इजरायल से रिश्ता तोड़े तो उसे भी इंटरनेशनल प्रेशर झेलना होगा।
फ़िलिस्तीनी लीडरशिप में बिखराव: हमास और फतह के बीच गहरी खाई है। ऐसे में एक मज़बूत पॉलिटिकल ब्लॉक बनाना आसान नहीं।
अमेरिका की भूमिका
खामेनेई ने अपने बयान में साफ़ कहा: “अमेरिका की मदद से ज़ायोनी हुकूमत इंसानियत पर हमला कर रही है। लेकिन हमें याद रखना होगा कि किसी ताक़तवर का सपोर्ट किसी जालिम को हमेशा के लिए बचा नहीं सकता।”
ये बयान सिर्फ़ इजरायल के लिए नहीं बल्कि वॉशिंगटन के लिए भी सीधा चैलेंज है। दरअसल, ईरान और अमेरिका के रिश्ते पिछले चार दशकों से दुश्मनी और अविश्वास पर टिके हैं।
निष्कर्ष
खामेनेई की ये अपील एक तरह का डिप्लोमैटिक “Pressure Campaign” है। इसका असर तभी दिखेगा जब अरब दुनिया, खासकर खाड़ी मुल्क़, इस पर अमल करें। वर्ना ये बयान महज़ एक सियासी नारा बनकर रह जाएगा। मगर इतना तय है कि इसने डिबेट को फिर से जिंदा कर दिया है कि क्या मुस्लिम उम्मा वाक़ई एक प्लेटफ़ॉर्म पर इकट्ठा हो सकती है?