
Anil Ambani under ED scanner in multi-crore loan fraud case, summoned on August 5 for questioning.
अनिल अंबानी पर 17,000 करोड़ का घोटाला, साजिश या सच?
अनिल अंबानी और 17,000 करोड़ का लोन घोटाला: क्या अब बर्बादी की कगार पर है रिलायंस ग्रुप?
ED ने अनिल अंबानी को 5 अगस्त को पूछताछ के लिए बुलाया है। 17,000 करोड़ के लोन फ्रॉड मामले में रेड, दस्तावेज जब्ती और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच से रिलायंस ग्रुप पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
अनिल अंबानी के बढ़ते आर्थिक संकट: 17,000 करोड़ के लोन फ्रॉड मामले में क्या डूब रहा है रिलायंस ग्रुप?
भारत के कारोबारी इतिहास में कई बड़े उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं, लेकिन कभी देश के सबसे अमीर व्यक्तियों में शुमार रहे अनिल अंबानी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा की गई कार्रवाई ने एक बार फिर उस सवाल को जन्म दिया है—क्या भारत की कॉरपोरेट व्यवस्था में लोन फ्रॉड अब एक सुनियोजित आर्थिक मॉडल बन गया है?
ईडी की पूछताछ: केवल औपचारिकता या असली संकट?
अनिल अंबानी को 5 अगस्त को दिल्ली स्थित ईडी दफ्तर में पूछताछ के लिए बुलाया गया है। यह समन 17,000 करोड़ रुपये के कथित लोन फ्रॉड मामले की जांच के सिलसिले में भेजा गया है। इससे पहले ईडी की टीमों ने 24 जुलाई को रिलायंस ग्रुप की कंपनियों और उनसे जुड़ी 50 जगहों पर छापेमारी की थी, जिसमें भारी मात्रा में दस्तावेज और डिजिटल डेटा जब्त किए गए थे।
इस कार्रवाई को केवल एक औपचारिक प्रक्रिया मान लेना शायद जल्दबाज़ी होगी। सूत्रों के अनुसार, ईडी को जो प्रमाण मिले हैं, वे केवल किसी एक कंपनी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह संदेह जताया जा रहा है कि यह एक कॉरपोरेट नेटवर्किंग के ज़रिए की गई पूर्व-नियोजित धोखाधड़ी है।
कौन-कौन से सवालों का सामना करेंगे अनिल अंबानी?
पूछताछ के दौरान ईडी उन तमाम लेन-देन की जानकारी मांगेगी, जो 2017 से 2019 के बीच हुई थीं, खासकर यस बैंक से मिले लोन के संदर्भ में। आरोप है कि इन लोन का गैर-लाभकारी और संदिग्ध कंपनियों में डायवर्जन हुआ। ईडी की जांच में यह भी सामने आया है कि लोन देने से पहले यस बैंक के प्रमोटर्स को अंबानी समूह के कारोबार में हिस्सेदारी दी गई या मोटा पैसा ट्रांसफर हुआ।
यह मामला अब केवल एक बैंकरप्सी या आर्थिक गिरावट का नहीं, बल्कि कॉरपोरेट नैतिकता और बैंकिंग सिस्टम की पारदर्शिता का भी है।
यस बैंक कनेक्शन: एक और बड़ा बैंकिंग घोटाला?
यस बैंक का नाम पहले से ही आर्थिक घोटालों से जुड़ता रहा है। अब यह लोन फ्रॉड केस एक बार फिर बैंकिंग प्रणाली की खामियों को उजागर करता है। जिस तरह से कमजोर कंपनियों को बिना पर्याप्त जांच के लोन दिए गए, उसी तरह कर्ज की राशि का उपयोग निजी और शेल कंपनियों में किया गया, जिससे यह मामला सीधे तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग के तहत आता है।
ईडी के अनुसार, कई कंपनियों के पते एक जैसे हैं, निदेशक एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और जिन संस्थाओं को लोन मिला, उनकी वित्तीय स्थिति पहले से ही संदिग्ध थी। ये संकेत स्पष्ट करते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया में जानबूझकर नियमों की अनदेखी की गई।
क्या यह केवल अनिल अंबानी का मामला है?
इस घोटाले के केंद्र में अनिल अंबानी और उनका ग्रुप जरूर है, लेकिन इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या भारतीय कॉरपोरेट सिस्टम में लोन लेना और डिफॉल्ट करना एक सिस्टमेटिक पैटर्न बन चुका है? अगर देश के बड़े बिजनेसमैन इस तरह के आरोपों से घिरे हैं, तो आम जनता की जमा पूंजी कितनी सुरक्षित है?
साथ ही, सवाल यह भी उठता है कि बैंकों, सेबी, एनएफआरए और राष्ट्रीय आवास बैंक जैसी संस्थाओं ने समय रहते इन संकेतों को क्यों नहीं पकड़ा? क्या इन एजेंसियों की भूमिका भी महज पोस्ट-फैक्टो कार्रवाई तक सीमित है?
क्या अनिल अंबानी के लिए वापसी की कोई राह है?
एक समय था जब अनिल अंबानी का नाम भारत के सबसे शक्तिशाली उद्योगपतियों में गिना जाता था। लेकिन पिछले एक दशक में उनकी कंपनियों पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया और एक के बाद एक कारोबार डूबते गए। 2020 में उन्होंने अदालत में खुद को “कर्ज में डूबा हुआ” बताया था।
अब जबकि उन पर इतने बड़े आर्थिक घोटाले का आरोप है, तो यह सवाल लाजमी है—क्या रिलायंस ग्रुप का यह धड़ा अब वाकई समाप्ति की ओर है? क्या कोई वित्तीय या कानूनी उपाय उनके लिए बचा है? और सबसे अहम, क्या भारतीय कॉरपोरेट सिस्टम में इतनी पारदर्शिता और जवाबदेही है कि इससे सही तरीके से निपटा जा सके?
निष्कर्ष: मामला केवल एक कारोबारी का नहीं, व्यवस्था की साख का है
अनिल अंबानी पर लगा यह 17,000 करोड़ रुपये का आरोप केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं है। यह उस पूरे इकोनॉमिक इकोसिस्टम की साख और संरचना पर सवाल खड़े करता है जिसमें लोन दिए जाते हैं, कर्ज डिफॉल्ट होता है और फिर सालों बाद एजेंसियां हरकत में आती हैं।
अब देखना यह होगा कि 5 अगस्त को अनिल अंबानी ईडी के सामने पेश होते हैं या नहीं। और अगर होते हैं तो क्या उनके जवाब इस घोटाले की गहराइयों को उजागर कर पाएंगे या फिर यह भी एक और अधूरा केस बनकर रह जाएगा?