
American President Donald Trump and Israeli PM Benjamin Netanyahu seen amid rising global tension. | Shah Times Exclusive
नेतन्याहू का ‘शक्तिशाली जवाब’ — गाज़ा फिर जलने को तैयार
सीजफायर की आग में झुलसता अमन— नेतन्याहू का हुक्म, ट्रंप का इम्तिहान
📍यरूशलम / नई दिल्ली🗓️ 28 अक्टूबर 2025
✍️Asif Khan
हमास की गोलीबारी के बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गाज़ा पर भीषण हमले का आदेश दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता में चल रहा युद्धविराम अब संकट में है। गाज़ा एक बार फिर बारूद की महक में डूब रहा है, और शांति की उम्मीद धुएँ में बदलती दिख रही है।
युद्ध और शांति — दोनों इंसान की बनाई कहानियाँ हैं।
लेकिन जब बंदूकें बोलती हैं, तो राजनीति खामोश हो जाती है। इजरायल–गाज़ा सीमा पर आज वही खामोशी पसरी है। नेतन्याहू ने अपने सैनिकों को “शक्तिशाली हमले” का आदेश दिया है। यह फैसला हमास की फायरिंग के तुरंत बाद लिया गया — एक फायर जिसने सिर्फ सैनिकों को नहीं, बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता को भी झुलसा दिया है।
गाज़ा पर फिर से बम गिर रहे हैं। इजरायली टैंकों की आवाज़ें और आसमान में चमकती मिसाइलें मानो याद दिला रही हों कि इस ज़मीन ने कभी अमन को लंबा नहीं देखा। नेतन्याहू ने कहा है, “इजरायल किसी भी उकसावे को बर्दाश्त नहीं करेगा।”
यह बयान जितना सख्त है, उतना ही संदेशवाहक भी — इजरायल अब पीछे नहीं हटेगा।
हमास की गोलीबारी और नेतन्याहू की प्रतिक्रिया
इजरायली रक्षा बलों (IDF) ने पुष्टि की है कि हमास ने दक्षिणी गाज़ा के राफा क्षेत्र में उनके सैनिकों पर एंटी-टैंक मिसाइल से हमला किया। इसके बाद जवाबी कार्रवाई का सिलसिला शुरू हुआ।
सेना का कहना है कि यह हमला संघर्षविराम का उल्लंघन है और अब प्रतिक्रिया “पहले से कहीं अधिक गंभीर” होगी।
नेतन्याहू ने सेना को आदेश दिया — “गाज़ा में शक्तिशाली जवाब दो।”
यह आदेश सिर्फ़ युद्ध का नहीं, बल्कि राजनीति का भी संकेत था। क्योंकि जब गाज़ा जलता है, तो नेतन्याहू के घरेलू राजनीतिक समीकरण भी गर्म हो जाते हैं। इजरायल के भीतर युद्ध को लेकर मतभेद हैं — कुछ इसे ज़रूरी जवाब मानते हैं, तो कुछ इसे चुनावी स्टंट।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मध्यस्थता पर संकट
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल और हमास के बीच चल रहे युद्धविराम को अपनी “शांति कूटनीति” की सफलता बताया था। लेकिन नेतन्याहू का यह कदम उस शांति पर सीधा हमला माना जा रहा है।
व्हाइट हाउस से जारी बयान में कहा गया कि “हम गाज़ा में हिंसा की वृद्धि से गहरी चिंता में हैं।”
पर सवाल यह है — क्या ट्रंप सचमुच इस संघर्ष को नियंत्रित कर सकते हैं?
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप की प्राथमिकता इस वक्त अमेरिका की चुनावी राजनीति है। इजरायल में सख्ती दिखाने से उन्हें घरेलू यहूदी लॉबी में समर्थन मिल सकता है। लेकिन मध्य-पूर्व में यह सख्ती और खून बहा सकती है।
बंधकों का मसला और हमास की चाल
इजरायली सूत्रों के अनुसार, हमास अब भी कई बंधकों के शवों को लौटाने से इनकार कर रहा है। यह इजरायल के लिए भावनात्मक और राजनीतिक दोनों चुनौती है।
इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हमास को कुछ शवों के ठिकाने मालूम हैं, लेकिन वह “राजनीतिक दबाव बनाने” के लिए उन्हें रोक कर रखे हुए है।
इजरायल का कहना है — “जब तक हमारे लोग ज़िंदा या मृत वापस नहीं आते, शांति अधूरी है।”
हमास ने जवाब में कहा कि इजरायली हमलों ने “सभी वार्ताओं की नींव हिला दी है।”
यानी, एक बार फिर इंसान की लाशों पर राजनीति खड़ी हो रही है।
शांति की विफलता, राजनीति की जीत
हर बार की तरह इस बार भी युद्ध का सच यही है — दोनों पक्ष खुद को सही बताते हैं, और मरते सिर्फ़ निर्दोष लोग हैं। गाज़ा की सड़कों पर जो मलबा बिखरा है, वो सिर्फ़ इमारतों का नहीं, उम्मीदों का भी है।
नेतन्याहू की “शक्तिशाली कार्रवाई” उनके समर्थकों को मजबूत करेगी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर इजरायल फिर से कठघरे में है।
संयुक्त राष्ट्र ने इसे “युद्धविराम का असफल प्रयोग” बताया है। यूरोपीय संघ ने भी संयम बरतने की अपील की है, मगर नेतन्याहू के शब्दों में “संयम अब कमजोरी लगने लगा है।”
राजनीति, सैन्य रणनीति और मीडिया की लड़ाई
यह युद्ध सिर्फ़ गाज़ा की ज़मीन पर नहीं, बल्कि दुनिया के मीडिया में भी लड़ा जा रहा है।
नेतन्याहू जानते हैं कि तस्वीरें और बयान ही अंतरराष्ट्रीय जनमत बनाते हैं।
दूसरी ओर, हमास हर हमले को “प्रतिरोध” का प्रतीक बनाकर प्रचारित कर रहा है।
ट्रंप की भूमिका यहाँ और दिलचस्प है। वह खुद को “मध्यस्थ” कहते हैं, लेकिन उनकी भाषा कई बार नेतन्याहू की सख़्ती जैसी लगती है।
यानी, अमेरिकी राष्ट्रपति की “शांति पहल” कहीं न कहीं राजनीतिक लाभ का मैदान बन चुकी है।
जनता का दृष्टिकोण
यरूशलम की गलियों में लोग आज भी दो सवाल पूछ रहे हैं —
क्या यह आख़िरी लड़ाई है?
और क्या कभी शांति वाकई लौटेगी?
गाज़ा के शरणार्थी कैंपों में बच्चे अब भी “आसमान में रोशनी” देखकर डरते हैं, जबकि इजरायल के सीमावर्ती इलाकों में सायरन अब दिनचर्या बन चुका है।
युद्ध किसी के लिए जीत नहीं लाता, सिर्फ़ एक और हार छोड़ जाता है — इंसानियत की।
कौन जीतेगा, कौन हारेगा
इस पूरे संघर्ष में अगर कोई हारता है तो वो सिर्फ़ आम इंसान है। नेतन्याहू की राजनीति, ट्रंप की मध्यस्थता और हमास की जिद — तीनों के बीच शांति कहीं गुम हो गई है।
अगर यह आग यूँ ही जलती रही, तो इतिहास एक और बार यही लिखेगा —
“नेता जीते, जनता हारी।”




