
Donald Trump, Ali Khamenei, and Benjamin Netanyahu with war background showing Iran-Israel conflict tension – Shah Times
ईरान और इजरायल के बीच चल रहे न्यूक्लियर संघर्ष पर गहराई से संपादकीय विश्लेषण। फोर्दो प्लांट, ऑपरेशन राइजिंग लॉयन, ट्रंप की प्रतिक्रिया और वैश्विक कूटनीति की भूमिका को शामिल करते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट, सिर्फ Shah Times पर।
एक असाधारण युद्ध की शुरुआत
21वीं सदी में वैश्विक युद्ध की जो तस्वीरें हम इतिहास की किताबों में पढ़ते आए हैं, अब वही भयावहता इजरायल और ईरान के बीच हो रहे युद्ध में साकार होती दिख रही है। यह केवल दो देशों की भिड़ंत नहीं, बल्कि यह एक ऐसी आग है जिसमें पूरा पश्चिम एशिया झुलस सकता है और जिसकी लपटें दुनिया की आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक स्थिरता को भी भस्म कर सकती हैं।
12 जून को इजरायल द्वारा ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ के तहत ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर किए गए हमले ने जिस ज्वालामुखी को सक्रिय किया, वह अब दिन-ब-दिन और भीषण होता जा रहा है। इसका ताजा प्रमाण है – ईरान की राजधानी तेहरान से लेकर इजरायल के यरूशलेम तक मिसाइलों की गूंज, मलबों के ढेर, और वैश्विक राजनयिकों की बेचैनी।
ऑपरेशन राइजिंग लॉयन: क्या था इजरायल का मकसद?
इजरायल ने 12 जून को जो हमला किया, वह एक सोची-समझी रणनीति के तहत था। इसका मुख्य उद्देश्य था – ईरान के उन न्यूक्लियर प्रतिष्ठानों को नष्ट करना, जिनके ज़रिए तेहरान परमाणु बम की दिशा में बढ़ रहा था।
विशेषज्ञों के अनुसार, इजरायल की खुफिया एजेंसियों को जानकारी थी कि ईरान फोर्दो (Fordow), नतांज़ और अराक़ जैसे ठिकानों पर युरेनियम संवर्धन की प्रक्रिया को अत्यंत तीव्रता से चला रहा था।
इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा था –
“अगर आज हमने कदम नहीं उठाया, तो कल बहुत देर हो जाएगी। ईरान न्यूक्लियर बम से सिर्फ पश्चिम एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया को डरा देगा।”
ईरानी प्रतिघात: मिसाइलों की बौछार और छाया युद्ध
इजरायल के हमले के ठीक बाद ईरान ने अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन करते हुए एक ही रात में दर्जनों मिसाइलें तेल अवीव, हाइफा और यरूशलेम पर दागीं। सिर्फ यही नहीं, उसने 15 यूएवी (ड्रोन) भी इजरायल की तरफ भेजे, जिन्हें IDF (Israeli Defense Force) ने हवा में ही नष्ट कर दिया।
ईरान का कहना है कि उसका जवाब “आत्मरक्षा” के तहत है, लेकिन उसकी कार्रवाई ने इस युद्ध को और भी जटिल बना दिया है। यह सिर्फ मिसाइल युद्ध नहीं रहा, यह अब ‘छाया युद्ध’ बन चुका है – साइबर अटैक, ड्रोन हमले, सैटेलाइट विघटन और कमांडरों के टारगेटेड किलिंग तक इस जंग का दायरा फैल चुका है।
FORDOW प्लांट का रहस्य और ट्रंप की चेतावनी
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में बड़ा बयान देकर हलचल मचा दी। उन्होंने कहा:
“इजरायल फोर्दो न्यूक्लियर प्लांट को अपने दम पर नष्ट नहीं कर सकता। अमेरिका अंतिम विकल्प के तौर पर सैन्य सहयोग दे सकता है।”
Fordow प्लांट, जो ईरान की सबसे गुप्त और सुरक्षित परमाणु सुविधा मानी जाती है, को नष्ट करना वास्तव में एक कठिन सैन्य लक्ष्य है। यह ठिकाना पहाड़ों के भीतर स्थित है, जिसे बंकर बस्टर मिसाइलों से भी नुकसान पहुंचाना चुनौतीपूर्ण है।
अमेरिका की दोराहे पर कूटनीति: समर्थन या दूरी?
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने कहा कि ईरान के पास न्यूक्लियर बम बनाने के सभी जरूरी संसाधन मौजूद हैं और वह कुछ ही हफ्तों में बम बना सकता है। लेकिन अमेरिका सीधे युद्ध में उतरने से कतरा रहा है।
बाइडेन प्रशासन का मानना है कि युद्ध की स्थिति में अमेरिका की दखल ‘अंतिम विकल्प’ होगी, ताकि वह अपने वैश्विक सैन्य मोर्चों को भी संभाले रख सके।
यह स्थिति अमेरिका के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि एक ओर वह इजरायल का पारंपरिक सहयोगी है, वहीं दूसरी ओर उसे वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति, रूस-चीन गठबंधन और यूरोप की अस्थिरता का भी ख्याल रखना है।
भारत की स्थिति और ऑपरेशन सिंधु
भारत, जो पारंपरिक रूप से दोनों देशों के साथ संबंध बनाए रखता है, इस युद्ध से सीधा तो नहीं जुड़ा है, लेकिन अप्रत्यक्ष असर जरूर पड़ा है। युद्ध के बीच ईरान ने भारत के लिए एयरस्पेस खोला, और ‘ऑपरेशन सिंधु’ के तहत वहां फंसे भारतीयों को सुरक्षित लाया गया।
अब तक 400 से ज्यादा भारतीय नागरिक स्वदेश लौट चुके हैं, और अगले दो दिनों में यह संख्या 1000 तक पहुंचने की उम्मीद है।
इजरायली सेना का जवाबी हमला और ईरानी कमांडर की मौत
IDF ने दावा किया कि उसने ईरानी मिसाइल लांचर्स और यूएवी बेस को तबाह किया है। साथ ही, एक आईआरजीसी कमांडर की पहचान की गई और उसे ड्रोन से निशाना बनाकर मार गिराया गया।
यह रणनीतिक बढ़त इजरायल के लिए मनोबल बढ़ाने वाला कदम है, लेकिन इससे ईरान और भी बौखला सकता है।
युद्ध के चार प्रमुख आयाम: इजरायल का विश्लेषण
इजरायल ने एक वीडियो जारी कर बताया कि ईरान को क्यों हल्के में नहीं लिया जा सकता:
- 28,000 बैलिस्टिक मिसाइलें – ईरान के पास बड़ी मात्रा में मिसाइलें हैं जो पूरे पश्चिम एशिया को तबाह कर सकती हैं।
- साइबर युद्ध क्षमता – ईरान के पास अत्याधुनिक साइबर तकनीक है जिससे वह इजरायल की रक्षा प्रणाली को पंगु बना सकता है।
- प्रॉक्सी नेटवर्क – हिजबुल्ला, हौथी और हशद-अल-शाबी जैसे संगठन उसके लिए लड़ने को तैयार हैं।
- परमाणु क्षमता – कुछ ही हफ्तों में बम बनाने की क्षमता, दुनिया के लिए बड़ा खतरा।
राजनयिक हलचल: जिनेवा में बुलाई गई बैठक
जैसे-जैसे जंग का स्वरूप व्यापक होता जा रहा है, यूरोपीय देशों की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के विदेश मंत्रियों ने ईरान के प्रतिनिधि से जिनेवा में मुलाकात की। मकसद स्पष्ट था – तनाव कम करना और परमाणु वार्ता को पुनर्जीवित करना।
लेकिन ईरान अब किसी भी वार्ता में शामिल होने से इनकार कर रहा है। उसका दावा है कि उसके खिलाफ युद्ध को पहले रोका जाए, तभी कोई बातचीत संभव है।
क्या यह युद्ध क्षेत्रीय रहेगा या वैश्विक बनेगा?
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या यह युद्ध केवल इजरायल और ईरान के बीच रहेगा, या इसमें अमेरिका, रूस, चीन और अरब राष्ट्र भी कूदेंगे?
विश्लेषक मानते हैं कि अगर युद्ध लंबा चला, तो न केवल अमेरिका बल्कि सऊदी अरब, तुर्की और कतर जैसे देश भी इसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सकते हैं। इससे पूरा मध्य-पूर्व युद्ध का अखाड़ा बन जाएगा।
विश्व शांति के लिए खतरा
संयुक्त राष्ट्र ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है, लेकिन जमीन पर हालात दिन-ब-दिन और बिगड़ते जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार, क्रूड ऑयल कीमतें, वैश्विक आपूर्ति शृंखला और कूटनीतिक रिश्ते – सब इस युद्ध की लपटों में घिर चुके हैं।
निष्कर्ष: क्या समाधान है?
इजरायल और ईरान के बीच चल रहा यह युद्ध केवल सैन्य शक्ति का मुकाबला नहीं, बल्कि यह कूटनीति, रणनीति और वैश्विक नेतृत्व की परीक्षा भी है। यदि तत्काल कोई समाधान नहीं निकाला गया, तो यह युद्ध पूरी मानवता के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।
भारत जैसी लोकतांत्रिक और शांतिप्रिय शक्तियों को अब अपने स्तर पर शांति की पहल करनी चाहिए – चाहे वह यूएन के मंच पर हो या जी20 जैसे प्लेटफॉर्म्स पर।
✍️ Shah Times संपादकीय टिप्पणी:
“जब मिसाइलें उड़ रही हों और बच्चों के स्कूल मलबे में बदल रहे हों, तो यह युद्ध नहीं – यह मानवता की हार है। युद्ध का जवाब युद्ध नहीं, समझदारी और संवाद है।”
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