
After Qatar attack, fears rise that Israel may target Turkey, Saudi Arabia, and Iraq, sparking Muslim world unity calls.
मिडिल ईस्ट में नई जंग की आहट,क्या तुर्की बनेगा इज़रायल का अगला निशाना?
मुस्लिम वर्ल्ड में बढ़ता डर,कतर के बाद इस मुस्लिम देश को निशाना बना सकता है इज़रायल
कतर में हमास लीडर्स पर इज़रायली हमले के बाद अब तुर्की, इराक और सऊदी अरब पर संभावित खतरे की आशंका। मुस्लिम देशों ने संयुक्त इस्लामी सेना बनाने की अपील की।
मिडिल ईस्ट की पॉलिटिक्स एक बार फिर खौल रही है। कतर की राजधानी दोहा में हमास लीडर्स पर इज़रायली हमला न सिर्फ़ मुस्लिम उम्मा के लिए बल्कि पूरे इंटरनेशनल ऑर्डर के लिए एक खतरनाक सिग्नल बन चुका है। अब सवाल ये उठ रहा है कि इज़रायल का अगला टारगेट कौन होगा?
तुर्की, सऊदी अरब और इराक – ये तीनों मुल्क अब वॉच लिस्ट में बताए जा रहे हैं। अंकारा की टेंशन साफ़ झलक रही है, वहीं ईरान ने ओपनली अलर्ट जारी कर दिया है कि अगर मुस्लिम देश एकजुट न हुए तो हालात और बिगड़ जाएंगे।
तुर्की की बढ़ती बेचैनी
तुर्की डिफेंस मिनिस्ट्री के प्रवक्ता रियर एडमिरल जेकी अकतुर्क ने साफ़ शब्दों में कहा कि “इज़रायल सिर्फ़ कतर पर नहीं रुकेगा, बल्कि अपने हमलों को और आगे ले जाएगा।”
राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन पहले ही नेतन्याहू को हिटलर से तुलना कर चुके हैं।
तुर्की और इज़रायल के रिश्ते 2000 के दशक के बाद से लगातार गिरते गए हैं।
हमास के कई लीडर और कैडर तुर्की में पनाह लेते रहे हैं।
एर्दोगन की पॉलिसी हमेशा से फिलिस्तीन-फ्रेंडली रही है। यही वजह है कि अंकारा खुद को सीधे तौर पर इज़रायली वार प्लान का हिस्सा मान रहा है।
इज़रायल बनाम तुर्की: पार्टनरशिप से दुश्मनी तक
कभी दोनों मुल्क स्ट्रॉन्ग रीजनल पार्टनर थे – डिफेंस ट्रेड से लेकर स्ट्रेटेजिक कोऑपरेशन तक। लेकिन 7 अक्टूबर 2023 को गाज़ा वॉर की शुरुआत ने रिश्तों को एक नई तल्ख़ी दी।
सीरिया में इन्फ्लुएंस वार: बशर अल-असद के पतन के बाद दोनों देशों ने पड़ोसी सीरिया में प्रभाव के लिए कॉम्पिटिशन शुरू किया।
हमास का सपोर्ट: अंकारा हमास को सिर्फ़ पॉलिटिकल ही नहीं, बल्कि लॉजिस्टिकल सपोर्ट भी देता रहा।
नेतन्याहू पर एर्दोगन का वार: गाज़ा वॉर के दौरान एर्दोगन ने खुलेआम कहा – “नेतन्याहू हिटलर की तर्ज़ पर जेनोसाइड कर रहे हैं।”
इस बयान ने दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन को लगभग ठप कर दिया।
ईरान का अलार्म: “अब तुर्की, इराक और सऊदी टारगेट”
ईरानी जनरल मोहसिन रेज़ाई ने हाल ही में इंटरव्यू में दावा किया कि –
“इज़रायल सिर्फ़ कतर पर नहीं रुकेगा, अगला टारगेट तुर्की, इराक और सऊदी अरब हैं।”
रेज़ाई, जो पहले इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के चीफ़ रहे हैं, अब ईरान की सुस्ती काउंसिल के मेंबर हैं। उनका कहना है कि –
मुस्लिम देशों को तुरंत जॉइंट मिलिट्री एलायंस बनाना चाहिए।
OIC (Organization of Islamic Cooperation) की इमरजेंसी मीटिंग में सिर्फ़ डिप्लोमैटिक स्टेटमेंट से काम नहीं चलेगा।
अगर एकीकृत इस्लामिक आर्मी नहीं बनी तो आने वाले दिनों में कई और अरब कैपिटल्स तबाह हो सकती हैं।
इस्लामिक आर्मी का कॉन्सेप्ट
ईरान और उसके धार्मिक लीडर्स ने जोर दिया कि अब वक्त आ गया है कि एक यूनिफाइड इस्लामिक कमांड बनाई जाए।
जलाल रज़वी-मेहर, जो क़ोम के मशहूर शिया स्कॉलर हैं, उन्होंने कहा – “सिर्फ़ बयानबाज़ी से मसला हल नहीं होगा, हमें एक यूनिफाइड आर्मी की ज़रूरत है।”
इस अपील को सुन्नी और शिया दोनों कैंप्स में गंभीरता से सुना गया, लेकिन सवाल ये है कि क्या सऊदी अरब और तुर्की एक प्लेटफॉर्म पर बैठ पाएंगे?
मुस्लिम उम्मा में डिविज़न: यूनिटी कितनी मुमकिन?
इतिहास गवाह है कि मुस्लिम वर्ल्ड कई बार एकता की बात करता है, मगर जियो-पॉलिटिकल इंटरेस्ट्स आड़े आ जाते हैं।
सऊदी बनाम ईरान: शिया-सुन्नी राइवलरी अब भी गहरी है।
तुर्की का एजेंडा: अंकारा खुद को लीडर ऑफ मुस्लिम वर्ल्ड साबित करना चाहता है।
पाकिस्तान और मलेशिया जैसे देश कूटनीतिक बैलेंस बनाए रखते हैं।
इसलिए, एकीकृत इस्लामिक आर्मी की कल्पना ज़्यादा प्रैक्टिकल नहीं दिखती, मगर हालात इस दिशा में दबाव ज़रूर बना रहे हैं।
वॉशिंगटन और वेस्टर्न फैक्टर
अमेरिका और यूरोप की पॉलिसी हमेशा से इज़रायल-फ्रेंडली रही है।
वॉशिंगटन का साइलेंस मुस्लिम देशों में और गुस्सा पैदा कर रहा है।
नाटो मेंबर होने के बावजूद तुर्की की पोज़िशन कंफ्लिक्टेड है।
अमेरिका के लिए सऊदी अरब एनर्जी सिक्योरिटी पार्टनर है, मगर इज़रायल उसका सबसे बड़ा स्ट्रैटेजिक एलायंस।
इस बैलेंस के बीच मुस्लिम देशों के लिए जॉइंट मिलिट्री ब्लॉक बनाना और भी मुश्किल हो जाता है।
कतर से तुर्की तक – नया पावर शिफ्ट?
अगर इज़रायल तुर्की को सीधा टारगेट करता है, तो ये सिर्फ़ एक रीजनल वॉर नहीं होगा बल्कि NATO की सिक्योरिटी को भी चैलेंज करेगा।
कतर पहले ही हमले की जद में है।
तुर्की अगर टारगेट हुआ, तो यूरोपियन सेक्योरिटी भी खतरे में होगी।
सऊदी और इराक पर वार का मतलब है – एनर्जी सप्लाई लाइन्स पर सीधा अटैक।
ये सारे फैक्टर्स ग्लोबल इकॉनमी और जियो-पॉलिटिक्स को हिला देंगे।
आगे का रास्ता
इज़रायल का पावर प्रोजेक्शन फिलहाल बिना किसी इंटरनेशनल रेस्ट्रेन के जारी है।
मुस्लिम देशों की यूनिटी सिर्फ़ बयानों में दिख रही है, ग्राउंड पर नहीं।
अगर तुर्की सीधा टारगेट बना, तो NATO की पॉलिसी में बड़ी उथल-पुथल होगी।
ईरान का “इस्लामिक आर्मी” वाला बयान एक पॉलिटिकल प्रेशर टैक्टिक भी है।
नतीजा ये है कि आने वाले महीनों में मिडिल ईस्ट सिर्फ़ फिलिस्तीन-इज़रायल वॉर का मैदान नहीं रहेगा, बल्कि एक मल्टी-फ्रंट कॉन्फ्लिक्ट की तरफ़ बढ़ सकता हैं।




