
Dr. S. Jaishankar meets Chinese Vice President Han Zheng in Beijing; Tibet issue and Galwan clash overshadow diplomatic thaw. | Shah Times
जयशंकर की चीन दौरा: क्या रिश्तों में आ रही है नई गर्माहट या छिपा है कोई तूफान?
गलवान से तिब्बत तक: भारत-चीन संबंधों की नई कहानी लिख रहा है जयशंकर का चीन दौरा
विदेश मंत्री जयशंकर का चीन दौरा, गलवान के बाद पहली मुलाकात, तिब्बत और दलाई लामा पर भारत-चीन के बीच बढ़ता तनाव। भारत की कूटनीति में नया संकेत।
🔴 भारत-चीन संबंधों की बर्फ पिघल रही है या नया भूचाल आने वाला है?
विदेश मंत्री एस. जयशंकर की पांच वर्षों बाद हुई चीन यात्रा सिर्फ औपचारिक मुलाकात नहीं बल्कि नई कूटनीतिक रणनीति का संकेत है। 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में जो खटास आई थी, उसे खत्म करने की कोशिश इस यात्रा में झलक रही है। लेकिन इसी दौरान तिब्बत और दलाई लामा से जुड़ी नई घटनाओं ने एक और विवाद को जन्म दे दिया है।
🇮🇳 बीजिंग में जयशंकर की मुलाकातें: आशावादी संकेत
जयशंकर ने चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात कर SCO अध्यक्षता में भारत के समर्थन की बात की। उन्होंने कहा कि “हमारे रिश्तों में सुधार हुआ है और मुझे उम्मीद है कि यह यात्रा और भी सकारात्मक दिशा देगी।”
उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली की सराहना करते हुए इसे दो देशों के बीच विश्वास बहाली का प्रतीक बताया।
❄️ गलवान संघर्ष के बाद रिश्तों की ठंडी परत
2020 में गलवान में हुई झड़प ने भारत-चीन रिश्तों को नया मोड़ दे दिया था। 20 भारतीय सैनिकों की शहादत और चीन को हुए अघोषित नुकसान ने दोनों देशों को सैन्य और कूटनीतिक मोर्चों पर कठोर रुख अपनाने को मजबूर किया।
अब जयशंकर की बीजिंग यात्रा और सितंबर में संभावित मोदी-शी बैठक संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है।
🔵 तिब्बत और दलाई लामा: नई कूटनीतिक दरार
भारत में दलाई लामा को लेकर चीन की प्रतिक्रिया अत्यंत तीखी रही है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जन्मदिन की बधाई और केंद्रीय मंत्री किरें रिजिजू के पुनर्जन्म पर दिए बयान ने चीन को असहज कर दिया। अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू का यह बयान कि “भारत की सीमा तिब्बत से लगती है, न कि चीन से” – कूटनीतिक आक्रामकता का नया संकेत है।
🔴 दलाई लामा की विरासत और चीन की असहजता
दलाई लामा ने कहा कि उनके उत्तराधिकारी का फैसला केवल तिब्बती समुदाय करेगा, चीन का इससे कोई लेना-देना नहीं। यह चीन के उस दावे को सीधी चुनौती है जिसमें वह खुद को दलाई लामा का आधिकारिक उत्तराधिकारी चयनकर्ता मानता है।
भारत की तरफ से इन बयानों का आधिकारिक समर्थन नहीं दिया गया है, लेकिन राजनैतिक संकेत और सामाजिक माहौल एक बदले हुए रुख की ओर इशारा करते हैं।
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🕊️ लोकतंत्र बनाम तानाशाही का वैचारिक टकराव
दलाई लामा का भारत को ‘आर्य भूमि’ कहना और भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं की तारीफ करना सिर्फ भावनात्मक कृतज्ञता नहीं, बल्कि चीन के सत्तावादी मॉडल के मुकाबले भारत के लोकतांत्रिक मॉडल को समर्थन देना है। यह संदेश भारत के उस वर्ग को आकर्षित कर रहा है जो चीन के आक्रामक रवैये के खिलाफ तिब्बत नीति में बदलाव चाहता है।
🌐 कूटनीति के नए संकेत: संतुलन या साहस?
भारत अभी भी तिब्बत को लेकर कोई आधिकारिक नीति बदलाव नहीं कर रहा है, लेकिन “स्ट्रैटेजिक एम्बिग्युटी” (रणनीतिक अस्पष्टता) के माध्यम से वह चीन को संदेश दे रहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो भारत भी कूटनीतिक विकल्पों का उपयोग कर सकता है।
- चीन की रेयर अर्थ एक्सपोर्ट पॉलिसी को चुनौती देने के लिए भारत वैकल्पिक सप्लाई चैन विकसित कर रहा है।
- क्वाड (QUAD) के जरिए भारत समुद्री सुरक्षा में चीन को बैलेंस करने की रणनीति अपना रहा है।
- चीनी ऐप्स पर बैन और निवेश नियमों में बदलाव भी उसी रणनीति का हिस्सा है।
🇨🇳 चीन की तीखी प्रतिक्रिया: क्यों इतनी बेचैनी?
बीजिंग में भारतीय दूतावास को चेतावनी देते हुए चीनी प्रवक्ता ने कहा कि “तिब्बत कार्ड खेलना भारत के लिए आत्मघाती है।”
यह तीखी प्रतिक्रिया बताती है कि तिब्बत मुद्दा चीन की आंतरिक असुरक्षाओं को उजागर करता है।
🤔 निष्कर्ष: बदलते समीकरणों में भारत की भूमिका
विदेश मंत्री जयशंकर की यह यात्रा चीन को यह स्पष्ट संदेश दे रही है कि भारत अब बैकफुट पर नहीं है।
वह संतुलन बनाए रखते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को सुरक्षित रखना चाहता है। तिब्बत मुद्दा जो अब तक छाया में था, वह धीरे-धीरे मुख्यधारा में आ रहा है — और यह भारत के बदलते कूटनीतिक दृष्टिकोण का प्रमाण है।