
~हफीज़ किदवई
शाहजहांपुर। अंग्रेजों ने एक मौलवी को फैज़ाबाद (Faizabad) की जेल में उम्रकैद में रखा। जब वह जेल की सलाखें तोड़के बाहर आ गए और अंग्रेज़ो के मंसूबों में पलीता लगाने लगे,तो उनके सर की क़ीमत रखी अंग्रेज़ो ने,मगर वह मौलवी तो फैज़ाबाद से चला और लखनऊ में बेगम से मिलकर अंग्रेज़ो के ख्वाब को चकनाचूर करने लगा । जब कुछ साथियों ने दगा दिया,तो वह शाहजहांपुर निकल गए,वहां दोस्त ने धोखा दिया और सर धड़ से अलग कर दिया।
अंग्रेजों ने उस मौलवी के जिस्म को जला डाला और सर वहीं शाहजहांपुर (Shahjahanpur) में दफना दिया। अंग्रेजों ने उनके सर को अपनी कोतवाली पर टांगा था महीनों,ताकि देश देखे,डरे, और हिम्मत न करे उनके ख़िलाफ़ खड़े होने की और फिर हमारे हिंदुस्तान का जिगरा देखिये,
उसी शाहजहांपुर (Shahjahanpur) में जहां मौलवी अहमद उल्ला शाह (Ahmed Ullah Shah) को शहीद किया गया था,जहां उनका सर टांग गा गया था,जहां खून बहाया गया था,वहां पैदा हो गए अशफाक उल्ला खान (Ashfaqulla Khan), उनकी भी ज़िन्दगी में फैज़ाबाद बहुत अहमियत रखता है।
उम्र तो थी सिर्फ़ 27 साल। पैदाइश शाहजहांपुर (Shahjahanpur) की, शहादत फैज़ाबाद (faizabad) में,नाम अशफाक उल्ला खान (Ashfaqulla Khan)था और काम मुल्क की आज़ादी के लिए सांसों को न्यौछावर करना था। है न कितना छोटा सा परिचय । मगर वह परम्परा थे मौलवी अहमद उल्ला शाह (Ahmed Ullah Shah) की शहादत के,जो आज भी जारी है…
फाँसी के फंदे पर जिनका बदन झूल गया हो,उनके परिचय के लिए कुछ और भी आवश्यक है। अरे वह एक नाम काफ़ी है जिसके सामने झुक जाना चाहिए। उस रोज़ जब फांसी का एलान हुआ तो, अशफाक की फांसी ने बिरतानिया के सामने सवाल खड़ा कर दिया कि अगर यह हिन्दू-मुसलमान मिलकर,यूहीं फांसी चढ़ते रहे,तो यह मुल्क उनकी मुट्ठी से सरक जाएगा। उन्होंने तरकीब निकाली की इन्हें तोड़ो,बिना इन्हें आपस मे तोड़े अपने मंसूबे कभी पूरे नही किये जा सकते और देखिये,आज तक इन दोनों को बिना तोड़े,इनके बीच बिना नफ़रत फैलाए कोई भी बिरतानिया का ग़ुलाम,यहाँ राज नही कर सका। अशफाक उल्ला खान (Ashfaqulla Khan) की शहादत हमारी पहचान है।
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आज उनका जन्मदिन है। उनके भी कुछ ख्वाब रहे होंगे, अक्टूबर की गुलाबी सर्दियों की पैदाइश नेउनके भी दिल मे झंकार भरी होगी ।उन्होंने भी ज़िन्दगी को लेकर कुछ ऊँचे ख्वाब सोचे होंगे मगर सब एक झटके में तोड़ दिए,अपनी ख्वाहिशों से मुँह मोड़ लिया और सिर्फ एक मकसद के लिए अपनी ज़िंदगी को कुर्बान कर दिया,वह थी आज़ादी।
अशफाक हमारी प्रेरणा हैं। जो बतलाते हैं कि बड़े मकसद के लिए, मुल्क की बेहतरी के लिए,मानवता की समृद्धि के लिए संवेदना रखकर त्याग को चुनना पड़ता है और यह त्याग जागीरों का होता है, दौलत का होता है, रिश्तों का होता है और आख़िर में सांसों का होता है।
अशफाक उल्ला खान (Ashfaqulla Khan) को खिराज ए अकीदत। नमन। सलाम और सैल्यूट की उन्होंने हमें आज भी वह ताबीज़ दे रखा है, जिसमें इस मुल्क की बेहतरी छिपी है, वह है प्रेम,भाईचारा और एकता,इनके बिना हम माटी के दोस्त नही हो सकते।