
हाई-प्रोफाइल कानूनी लड़ाई: संजीव चतुर्वेदी बनाम भारत सरकार का टॉप ब्यूरोक्रेट
भ्रष्टाचार जांच से उठा तूफ़ान, अब अदालत में आमने-सामने होंगे दो बड़े अधिकारी
संजीव चतुर्वेदी ने कैबिनेट सचिव पर झूठे हलफनामे और मानहानि का आरोप लगाया। एम्स भ्रष्टाचार विवाद अब नैनीताल हाईकोर्ट में पहुँचा।
~ Shahnazar
Dehradun,(Shah Times)। देहरादून की फिजाओं में इन दिनों एक ऐसा मुक़दमा गूंज रहा है जिसने प्रशासन और न्यायपालिका दोनों के ढाँचे को हिला दिया है। मसला सिर्फ़ दो अफ़सरों की अदालती लड़ाई का नहीं बल्कि पूरी नौकरशाही की नैतिकता और पारदर्शिता पर सवाल खड़ा कर रहा है। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संजीव चतुर्वेदी और केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव टी.वी. सोमनाथन आमने-सामने हैं। आरोप यह कि देश के सबसे बड़े नौकरशाह ने अदालत में झूठा हलफ़नामा दाख़िल किया और मानहानिकारक टिप्पणियाँ दर्ज कीं। सवाल यह है कि जब व्यवस्था का शीर्ष ही इल्ज़ामों की ज़द में हो तो आम नागरिक का भरोसा कहाँ टिकेगा?
विवाद की पृष्ठभूमि
संजीव चतुर्वेदी का नाम ईमानदारी और बेबाकी के लिए मशहूर है। अख़िल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली में मुख्य सतर्कता अधिकारी रहते हुए उन्होंने कई बड़े भ्रष्टाचार मामलों की परतें खोलीं। इन मामलों ने न सिर्फ़ चिकित्सा तंत्र बल्कि उच्च नौकरशाही के गठजोड़ को भी उजागर किया।
फरवरी 2023 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) ने आदेश दिया था कि इन मामलों से जुड़े सभी दस्तावेज़ अदालत के सामने प्रस्तुत किए जाएँ। आदेश की अवहेलना हुई और हाल ही में कैट ने कैबिनेट सचिव तथा केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव के विरुद्ध अवमानना की कार्रवाई प्रारम्भ कर दी।
इसी पृष्ठभूमि में नैनीताल उच्च न्यायालय पहुँचे इस मुक़दमे में चतुर्वेदी ने स्पष्ट आरोप लगाया कि सोमनाथन ने न केवल तथ्यहीन शपथपत्र दायर किया बल्कि उनकी छवि को धूमिल करने वाली टिप्पणियाँ भी दर्ज कीं।
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यह विवाद दो व्यक्तियों तक सीमित नहीं है। यह सम्पूर्ण प्रशासनिक ढाँचे और लोकतांत्रिक व्यवस्था की विश्वसनीयता से जुड़ा हुआ है।
संस्थागत ईमानदारी बनाम अफ़सरशाही का दबदबा
 यदि देश के सर्वोच्च नौकरशाह पर ही झूठे बयान और भ्रामक हलफ़नामे का आरोप लगे तो निचले स्तर पर कार्यरत अधिकारियों तक यह संदेश कैसा पहुँचेगा? क्या यह संकेत है कि व्यवस्था में बचाव के लिए सत्य से अधिक चालाकी की अहमियत है?
सूचना देने वालों की सुरक्षा
 चतुर्वेदी पहले भी स्थानांतरण, प्रताड़ना और दबाव झेल चुके हैं। यदि अब यह साबित होता है कि उनकी आवाज़ को दबाने के लिए उनकी प्रतिष्ठा को निशाना बनाया गया, तो यह देश में सूचना उजागर करने वालों की वास्तविक सुरक्षा पर गंभीर प्रश्नचिह्न होगा।
प्रमाण बनाम आख्यान
 चतुर्वेदी ने 2014 की स्वास्थ्य मंत्रालय की नोटिंग प्रस्तुत की जिसमें उनके काम को “उत्कृष्ट” और उनकी निष्ठा को सराहनीय बताया गया था। वही तंत्र जिसने पहले ईमानदारी की प्रशंसा की, अब उसी पर प्रश्नचिह्न लगाने लगा है।
कानूनी पेच
नैनीताल उच्च न्यायालय ने 16 सितम्बर को सुनवाई की तिथि निश्चित की है। अदालत के सामने तीन मूल प्रश्न होंगे –
क्या वास्तव में कैबिनेट सचिव द्वारा झूठा और भ्रामक हलफ़नामा दायर किया गया?
क्या उसमें संजीव चतुर्वेदी की व्यक्तिगत छवि को धूमिल करने वाले अंश मौजूद हैं?
यदि आरोप सिद्ध होते हैं तो सरकार शीर्ष स्तर पर आपराधिक कार्रवाई की अनुमति देगी या नहीं?
यह मुक़दमा केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं बल्कि प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही की कसौटी है।
प्रतिवाद और तर्क
दूसरी ओर कुछ पर्यवेक्षक यह मानते हैं कि चतुर्वेदी लगातार स्वयं को एक व्हिसलब्लोअर की छवि में बनाए रखना चाहते हैं ताकि जनसहानुभूति उनके साथ रहे। सरकार यह भी तर्क रख सकती है कि शपथपत्र की भाषा या समय पर प्रस्तुत करने में हुई त्रुटि को गलत मंशा से जोड़ना उचित नहीं।
इसीलिए अदालत को यह तय करना होगा कि यह पूरा विवाद केवल व्यक्तिगत वैमनस्य है या वास्तव में इसमें व्यवस्था की सच्चाई उजागर हो रही है।
व्यापक असर
इस मुक़दमे के परिणाम दूरगामी होंगे।
प्रशासनिक नैतिकता: यदि शीर्ष स्तर पर ही झूठ और भ्रामक हलफ़नामे का आरोप सही पाया गया तो समूची नौकरशाही की विश्वसनीयता हिल जाएगी।
न्यायिक निगरानी: अदालतों की निगरानी और अवमानना शक्तियों की भूमिका और अहम हो जाएगी।
राजनीतिक असर: सरकार को पारदर्शिता और भ्रष्टाचार-विरोधी छवि पर भारी दबाव झेलना पड़ सकता है।
सूचना देने वालों की सुरक्षा: यदि चतुर्वेदी को न्याय मिलता है तो यह भविष्य के व्हिसलब्लोअर्स के लिए मिसाल साबित होगा।
संजीव चतुर्वेदी और कैबिनेट सचिव के बीच यह मुक़दमा केवल दो व्यक्तियों का संघर्ष नहीं है। यह भारतीय नौकरशाही की नैतिकता, प्रशासन की पारदर्शिता और लोकतंत्र की जवाबदेही का सवाल है।
१६ सितम्बर की सुनवाई केवल एक तारीख़ नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ है। यदि अदालत चतुर्वेदी के पक्ष में जाती है तो यह सम्पूर्ण तंत्र के लिए चेतावनी होगी कि अब झूठ और दबाव से सच को दबाया नहीं जा सकेगा। वहीं यदि आरोप असत्य पाए जाते हैं तो यह सूचना उजागर करने वालों की विश्वसनीयता पर गहरी चोट होगी।
अंततः यह मुक़दमा भारतीय लोकतंत्र के लिए एक दर्पण है — जिसमें या तो सत्ता की चालाकी दिखाई देगी या फिर ईमानदारी की जीत।

 
                         
 




