
Uttarakhand athlete Mansi Negi receiving appointment letter from CM Pushkar Dhami
उत्तराखंड की मानसी नेगी बनीं असिस्टेंट कोच, संघर्ष से सफलता तक
पहाड़ की बेटी मानसी नेगी ने एथलेटिक्स में रचा इतिहास
~ रणबीर नेगी
उत्तराखंड की मानसी नेगी ने गरीबी और कठिनाइयों के बावजूद राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स में गोल्ड जीता और अब असिस्टेंट कोच बनीं।
Chamoli,(Shah Times) । उत्तराखण्ड की पहाड़ियों से निकली एक बेटी, जिसने अपने संघर्षों को जीत में तब्दील किया और अपने छोटे से गाँव से निकलकर राष्ट्रीय और अब वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई। यह कहानी है चमोली जनपद के मजोठी गाँव की मानसी नेगी की, जिसने कठिन हालात और आर्थिक तंगी के बावजूद एथलेटिक्स की दुनिया में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कराया। आज वह सिर्फ़ एक खिलाड़ी ही नहीं बल्कि लाखों बेटियों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।
संघर्ष की शुरुआत
मानसी का जीवन वर्ष 2016 में तब अचानक बदल गया जब उनके पिता का देहांत हो गया। उस समय परिवार ग़रीबी की मार झेल रहा था। उनकी माँ शकुंतला देवी दूध बेचकर घर चलाती थीं। बावजूद इसके, उन्होंने बेटी के सपनों को ज़िंदा रखा। मानसी बताती हैं कि उनकी माँ ने हमेशा कहा – “बेटी, हालात चाहे जैसे हों, सपनों को कभी मरने मत देना।”
यहीं से मानसी का सफ़र शुरू हुआ। आर्थिक तंगी के बावजूद पढ़ाई और खेल दोनों में आगे बढ़ने का उनका हौसला टूटा नहीं।
पहली बड़ी उड़ान
वर्ष 2018 में “खेलो इंडिया खेलो” प्रतियोगिता में मानसी ने “रेस वॉक” में गोल्ड मेडल जीता। यह जीत सिर्फ़ एक पदक नहीं थी, बल्कि उनके लिए आत्मविश्वास की पहली उड़ान थी।
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इसके बाद 2021 में राष्ट्रीय खेलों में सिल्वर मेडल, 2022 में नेशनल जूनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल और रिकॉर्ड प्रदर्शन के साथ उन्होंने एक के बाद एक कीर्तिमान स्थापित किए।
विश्लेषण: क्यों खास है मानसी की उपलब्धि
मानसी ने जिस खेल को चुना, यानी “रेस वॉक”, वह भारत में अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय है। इस इवेंट में अनुशासन, धैर्य और अदम्य साहस की आवश्यकता होती है।
विश्लेषकों का मानना है कि मानसी का यह संघर्ष भारत में महिला खिलाड़ियों की स्थिति और अवसरों पर भी एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। यह दिखाता है कि सही मार्गदर्शन और आत्मविश्वास से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है।
मानसी और उनकी माँ: संघर्ष की साझी कहानी
किसी भी खिलाड़ी के पीछे परिवार की भूमिका सबसे अहम होती है। मानसी की माँ शकुंतला देवी ने दूध बेचकर बेटी के सपनों को सहारा दिया। कई बार घर का खर्च चलाना मुश्किल हुआ, लेकिन उन्होंने मानसी को कभी हारने नहीं दिया।
गाँव की तंग गलियों से लेकर राष्ट्रीय स्टेडियम तक, मानसी की जीत दरअसल उनकी माँ के धैर्य और विश्वास की भी जीत है।
सम्मान और पहचान
मानसी की उपलब्धियों को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने उन्हें खेल दिवस 2025 पर असिस्टेंट कोच के पद पर नियुक्त किया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वयं मानसी को नियुक्ति पत्र सौंपा।
हालाँकि यह मंज़िल नहीं, बल्कि उनकी लंबी यात्रा का एक पड़ाव है। लेकिन यह नियुक्ति मानसी जैसी बेटियों के लिए एक बड़ा संदेश है कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।
वैकल्पिक दृष्टिकोण: चुनौतियाँ अब भी बाकी
जहाँ मानसी की कहानी प्रेरक है, वहीं यह सवाल भी उठता है कि क्या हमारे देश की खेल नीतियाँ पर्याप्त हैं।
क्या ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले खिलाड़ियों को शुरुआती स्तर पर पर्याप्त सुविधाएँ मिल रही हैं
क्या महिला खिलाड़ियों को सुरक्षा, ट्रेनिंग और स्पॉन्सरशिप में बराबरी मिल पा रही है
क्या सिर्फ़ कुछ मेडल जीतने के बाद ही खिलाड़ियों को सम्मान मिलता है या शुरुआती चरण से उन्हें सहारा मिलना चाहिए
ये सवाल हमारे खेल तंत्र की गहराई को समझने के लिए अहम हैं।
भविष्य की राह
मानसी ने यह साबित किया है कि पहाड़ की बेटियाँ भी किसी से कम नहीं। अब उनका लक्ष्य एशियन और ओलंपिक स्तर पर भारत को गौरव दिलाना है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर मानसी को उचित ट्रेनिंग, सपोर्ट और संसाधन मिले, तो वह विश्व स्तर पर भारत का झंडा बुलंद कर सकती हैं।
नतीजा
मानसी नेगी की कहानी सिर्फ़ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन तमाम बेटियों के संघर्ष और सपनों की दास्तान है जो कठिन परिस्थितियों में भी हार मानने से इंकार करती हैं।
उनकी माँ के संघर्ष, खुद की मेहनत और समाज से मिले सहयोग ने यह सिद्ध कर दिया कि कोई भी कठिनाई इंसान की मंज़िल को रोक नहीं सकती।
आज मानसी की उपलब्धियाँ भारत की खेल यात्रा में एक प्रेरक अध्याय बन चुकी हैं। और यह सिलसिला अभी जारी है।




