
PM Modi lays the foundation stone of multiple development projects worth over Rs 7,300 crore at Churachandpur, Manipur
मोदी ने मणिपुर से कहा—हिंसा छोड़ें, विकास को अपनाएँ
मणिपुर में मोदी की बड़ी घोषणाएँ: 7300 करोड़ की योजनाएँ
पीएम मोदी ने मणिपुर में विकास पैकेज की घोषणा की, शांति का आह्वान किया। लेकिन क्या यह राजनीतिक रणनीति है या वास्तविक समाधान?
Chudachandpur, (Shah Times)। चुड़ाचांदपुर के पीस ग्राउंड पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति और विकास का बड़ा संदेश दिया। 7300 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास, जनजातीय समाज के लिए पैकेज और रेल-कनेक्टिविटी का वादा—सभी ने मणिपुर को सुर्खियों में ला दिया। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह वादे हिंसा और अविश्वास से जूझते राज्य के लिए पर्याप्त हैं? क्या यह दौरा चुनावी राजनीति की रणनीति भर है या एक वास्तविक समाधान की शुरुआत?
विकास का वादा और राजनीतिक अर्थ
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में ज़ोर देकर कहा कि मणिपुर भारत की “मणि” है, और पूर्वोत्तर की चमक को आगे बढ़ाने वाला है। रेलवे लाइन, राष्ट्रीय राजमार्ग, जल योजनाएँ, स्वास्थ्य और शिक्षा—इन सबके ज़रिए केंद्र सरकार ने राज्य की विकास यात्रा को तेज़ करने का दावा किया।
7300 करोड़ की परियोजनाएँ
7000 नए घर विस्थापितों के लिए
3000 करोड़ का विशेष विकास पैकेज
500 करोड़ का राहत पैकेज
सतही तौर पर यह संकल्प मज़बूत लगता है। लेकिन गहराई से देखें तो यह “डवलपमेंट डिस्कोर्स” ज़्यादा एक राजनीतिक नैरेटिव बनकर उभरता है, जिसमें शांति और सद्भाव की गारंटी अब भी अधूरी है।
जातीय हिंसा की छाया
मणिपुर पिछले डेढ़ साल से जातीय हिंसा के साये में जी रहा है। मेइती और कुकी समुदायों के बीच की खाई इतनी गहरी है कि सरकार के विकास पैकेज केवल आंशिक मरहम जैसे प्रतीत होते हैं।
लोगों का तर्क है कि:
सड़क और रेल से पहले विश्वास की पुनर्निर्मिति जरूरी है।
विस्थापितों के कैंप में जीवन अभी भी अस्थायी और कठिन है।
जनजातीय समुदाय की असुरक्षा विकास की रफ्तार को कमजोर करती है।
इसलिए आलोचक कहते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर तभी टिकाऊ होगा जब सामाजिक ढाँचा मज़बूत होगा।
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विपक्षी सवाल और काउंटरपॉइंट्स
कांग्रेस, वामदलों और स्थानीय संगठनों का आरोप है कि केंद्र सरकार का दौरा “पोस्ट-फैक्टो पॉलिटिक्स” है। जब राज्य महीनों जल रहा था, तब प्रधानमंत्री चुप क्यों रहे?
विपक्ष कहता है कि यह पैकेज ज़्यादा इलेक्शन मैनेजमेंट टूल है।
मीडिया नैरेटिव शिफ्ट करने का प्रयास है, ताकि हिंसा की चर्चा से ध्यान हटकर “विकास” पर आ जाए।
आलोचक मानते हैं कि शांति अपील तभी सार्थक होगी जब न्याय और जवाबदेही की प्रक्रिया शुरू होगी।
लेकिन समर्थक जवाब देते हैं कि:
प्रधानमंत्री का दौरा कान्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र है।
बिना केंद्र सरकार की सीधी भागीदारी, राज्य का समाधान असंभव है।
पैकेज से बुनियादी ढांचा सुधरेगा, जिससे आर्थिक अवसर बढ़ेंगे और तनाव घटेगा।
भू-राजनीतिक संदर्भ
मणिपुर की सीमाएँ म्यांमार से लगती हैं। हाल की अशांति और म्यांमार संकट ने यहाँ सुरक्षा और कनेक्टिविटी को बड़ा मुद्दा बना दिया है। मोदी सरकार का फोकस है:
एक्ट ईस्ट पॉलिसी को गति देना।
क्रॉस-बॉर्डर ट्रेड और सिक्योरिटी को मज़बूत करना।
मणिपुर को भारत–म्यांमार–थाईलैंड हाईवे नेटवर्क से जोड़ना।
यह भू-रणनीतिक दृष्टिकोण दिखाता है कि मणिपुर केवल एक राज्य नहीं बल्कि भारत की पूर्वी खिड़की है।
सामाजिक और सांस्कृतिक विमर्श
मणिपुर की विविधता ही उसकी ताक़त है, लेकिन यही विविधता राजनीति के कारण टूटती रही है। प्रधानमंत्री का “महिलाओं के नेतृत्व में विकास” का बयान सराहनीय है, क्योंकि मणिपुर की सामाजिक संरचना में महिलाओं का योगदान ऐतिहासिक रहा है—इमा कैथल (मदर्स मार्केट) इसका प्रतीक है।
लेकिन आलोचना यह भी है कि:
महिलाओं ने हिंसा का सबसे ज़्यादा बोझ झेला है।
विस्थापन और शिविर जीवन ने उनके सामाजिक ताने-बाने को तोड़ा है।
केवल बयान नहीं, बल्कि जेंडर-सेंसिटिव पॉलिसीज़ की सख़्त ज़रूरत है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी का मणिपुर दौरा विकास और शांति का संदेश लेकर आया, लेकिन असल चुनौती यही है कि सियासी भाषण को ज़मीनी हकीकत में कैसे बदला जाए।
विकास पैकेज तभी असरदार होंगे जब विश्वास बहाली और न्यायिक प्रक्रिया साथ-साथ चले।
शांति की अपील तभी कामयाब होगी जब दोनों समुदायों को समान भागीदारी और सुरक्षा मिले।
मणिपुर का भविष्य केवल सड़कों और रेलवे से नहीं बल्कि सामाजिक मेलजोल और भरोसे से तय होगा।
मणिपुर के लिए अगला दशक निर्णायक होगा। यदि केंद्र और राज्य मिलकर सुरक्षा–संवाद–विकास का त्रिकोण मज़बूत करें तो सचमुच यह “भारत की मणि” बन सकता है।




