
तीन करोड़ की रिश्वत लेकर ज़मीन दिलाने वाले एसडीएम सस्पेंड
मुज़फ्फरनगर ज़मीन घोटाला: हाईवे किनारे की ज़मीन पर खेल
मुज़फ्फरनगर में 3 करोड़ की रिश्वत लेकर 750 बीघा सरकारी जमीन भूमाफिया को दिलाने वाले एसडीएम जयेंद्र सिंह सस्पेंड, जांच में दोषी पाए गए।
रिपोर्ट~ नदीम सिद्दीकी
Muzaffarnagar,(Shah Times) । मुज़फ्फरनगर का यह मामला केवल भ्रष्टाचार की एक और कड़ी नहीं है, बल्कि ज़मीनी न्याय व्यवस्था, प्रशासनिक ईमानदारी और भूमाफियाओं की बढ़ती ताक़त पर गहरा सवाल खड़ा करता है। तीन करोड़ रुपये की रिश्वत लेकर 750 बीघा से ज़्यादा सरकारी और सोसायटी की ज़मीन भूमाफिया के नाम दर्ज करने का आरोप जब उजागर हुआ, तो ज़िलेभर में सनसनी फैल गई।
पृष्ठभूमि और घटना
गांव इसहाकवाला की ज़मीन 1962 में डेरावाल कोऑपरेटिव फार्मिंग सोसायटी के नाम दर्ज हुई थी। लगभग 743 हेक्टेयर (900 बीघा) ज़मीन लंबे समय से सोसायटी के दो धड़ों – गुलशन और हरबंस के वारिसों के बीच विवादित थी।
2018 में तहसील प्रशासन ने हाई कोर्ट को स्पष्ट किया था कि हरबंस का इस ज़मीन पर कोई हक़ नहीं है। इसके बावजूद, आरोप है कि जानसठ तहसील के एसडीएम जयेंद्र सिंह ने पुराने आदेशों और रिकॉर्ड को दरकिनार कर भूमाफिया के पक्ष में आदेश पारित किए।
जांच और प्रशासनिक कार्रवाई
जिलाधिकारी उमेश मिश्रा ने तीन एडीएम की जांच समिति गठित की। समिति ने सभी दस्तावेजों की जांच की और पाया कि एसडीएम ने न केवल हाई कोर्ट के आदेश की अनदेखी की बल्कि तहसील रिकॉर्ड को भी नज़रअंदाज़ कर दिया।
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रिपोर्ट में एसडीएम जयेंद्र सिंह को प्रथम दृष्टया दोषी ठहराया गया। डीएम ने पूरी रिपोर्ट शासन को भेजी। शनिवार को शासन ने तत्काल प्रभाव से जयेंद्र सिंह का निलंबन आदेश जारी कर दिया और विवादित आदेश भी वापस ले लिया गया।
भ्रष्टाचार और शक्ति के गठजोड़ से सरकारी ज़मीनें हड़पी जाती हैं
यह मामला बताता है कि किस तरह भ्रष्टाचार और शक्ति के गठजोड़ से सरकारी ज़मीनें हड़पी जाती हैं।
प्रशासन की कमजोरी: न्यायालय और सरकारी रिकॉर्ड होते हुए भी, अफसरशाही ने भूमाफिया के पक्ष में काम किया।
भूमाफियाओं की रणनीति: हाईवे के किनारे की ज़मीन अरबों रुपये की है। यही वजह है कि इसमें भूमाफिया और अधिकारी दोनों की मिलीभगत रही।
ग्रामीणों का आक्रोश: ग्रामीणों ने इसे प्रशासनिक धोखाधड़ी बताया और मांग की कि दोषियों पर सख़्त कार्रवाई हो।
एसडीएम ने दबाव या ग़लतफ़हमी में आदेश जारी किए हों
हालांकि कुछ जानकारों का तर्क है कि ज़मीन विवाद इतने पुराने और जटिल होते हैं कि कभी-कभी अधिकारियों को निर्णय लेने में कठिनाई होती है। संभव है कि एसडीएम ने दबाव या ग़लतफ़हमी में आदेश जारी किए हों। लेकिन रिश्वत के आरोप ने इस तर्क को कमजोर कर दिया है।
शासन ने सस्पेंशन कर अपनी जवाबदेही दिखाई
मुज़फ्फरनगर का यह मामला एक चेतावनी है कि अगर ज़मीनी स्तर पर भ्रष्टाचार पर सख़्ती से नकेल नहीं कसी गई, तो सरकारी संपत्तियाँ इसी तरह भूमाफियाओं की झोली में गिरती रहेंगी। शासन ने सस्पेंशन कर अपनी जवाबदेही दिखाई है, मगर असली चुनौती होगी – भूमाफियाओं की कमर तोड़ना और ग्रामीणों को न्याय दिलाना।