
Muzaffarnagar Police busted a fake call centre and arrested two accused.
नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी, फर्जी कॉल सेंटर से दो युवक अरेस्ट
मुजफ्फरनगर में फर्जी कॉल सेंटर का भंडाफोड़, 2 आरोपी गिरफ्तार
मुजफ्फरनगर पुलिस ने फर्जी कॉल सेंटर का पर्दाफाश किया। नौकरी के नाम पर डेटा चोरी कर ठगी करने वाले गिरोह के दो शातिर गिरफ्तार।
,
Muzaffarnagar,( Shah Times)। मुजफ्फरनगर की खालापार पुलिस ने एक बड़े साइबर फ्रॉड रैकेट का पर्दाफाश किया है। यह गिरोह फर्जी कॉल सेंटर चला कर बेरोज़गार युवाओं से नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी कर रहा था। पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है और मौके से लैपटॉप, मोबाइल, सिम कार्ड, फर्जी दस्तावेज़ और क्यूआर कोड बरामद किए हैं। यह मामला न सिर्फ़ स्थानीय स्तर पर बल्कि देशभर में बढ़ते साइबर अपराधों की गंभीरता को उजागर करता है।
पुलिस की कार्रवाई
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संजय कुमार वर्मा और एएसपी सत्यनारायण प्रजापत के पर्यवेक्षण में थाना खालापार पुलिस ने 25 अगस्त 2025 को मेरठ रोड स्थित ZK कॉम्प्लेक्स बिल्डिंग में छापेमारी की। यहां Skyline नाम से कॉल सेंटर चल रहा था। पुलिस ने मौके से आहद और जुबैर नामक दो आरोपियों को गिरफ्तार किया।
बरामद सामग्री में शामिल हैं:
20 मोबाइल फ़ोन
3 लैपटॉप
15 जियो सिम पैक
एयरटेल और जियो की एक्टिव सिम
45 फर्जी विज़िटिंग कार्ड
17 कॉलिंग हिस्ट्री रजिस्टर
6 अलग-अलग मोहर
2 QR कोड
Recruitment Services के एग्रीमेंट दस्तावेज़
यह बरामदगी साफ़ दिखाती है कि गिरोह ने एक व्यवस्थित नेटवर्क बना रखा था, जो बेरोज़गार युवाओं की कमजोरी का फायदा उठाकर उन्हें नौकरी का झांसा देकर पैसे ऐंठता था।

आज का शाह टाइम्स ई-पेपर डाउनलोड करें और पढ़ें
अपराध की कार्यप्रणाली
पूछताछ में गिरफ्तार आरोपियों ने माना कि वे इंटरनेट से डाटा जुटाकर लोगों से संपर्क करते और फर्जी HR बनकर बात करते। आरोपी महिलाओं को 7-8 हज़ार रुपये मासिक वेतन देते थे और उनसे कहा जाता था कि वे अलग-अलग शहरों की कंपनियों की तरह कॉल करें।
उदाहरण के तौर पर, अगर पीड़ित पुणे से होता तो कॉल सेंटर कर्मचारी खुद को Pune-based recruiter बताकर बात करते। फिर उन्हें बताया जाता कि “आपकी इंटरव्यू कॉल लगी है और जल्द ही जॉइनिंग होगी।” इस बहाने पीड़ितों से रजिस्ट्रेशन, क्यूआर स्कैन और डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के नाम पर पैसे वसूले जाते।
सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू
साइबर फ्रॉड का यह मॉडल दिखाता है कि किस तरह बेरोज़गारी और डिजिटल भरोसा को ठग एक हथियार बना रहे हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं इस फर्जी सेंटर में काम कर रही थीं, जिन्हें सच्चाई की जानकारी नहीं थी। वे केवल रोज़गार और सैलरी के लालच में काम कर रही थीं।
यह प्रश्न उठता है कि जब पढ़े-लिखे युवा भी धोखाधड़ी के जाल में फँस रहे हैं, तो डिजिटल सुरक्षा और साइबर जागरूकता की स्थिति क्या है?
पुलिस का सराहनीय प्रयास
मुजफ्फरनगर पुलिस ने जिस तरह तेजी से मुखबिर की सूचना पर कार्रवाई की, वह कानून व्यवस्था और साइबर निगरानी की मजबूती को दर्शाता है। ADG मेरठ और DIG सहारनपुर के निर्देशन में पूरी कार्रवाई पेशेवर तरीके से की गई।
इस मामले में पुलिस ने न सिर्फ़ आरोपियों को पकड़ा बल्कि उन दस्तावेज़ों और डिवाइसों को भी जब्त किया, जिनसे आगे जांच में अन्य राज्यों तक कड़ी जुड़ सकती है।
प्रतिवाद और चुनौती
हालांकि, यह भी एक सच्चाई है कि फर्जी कॉल सेंटर आज भारत के कई हिस्सों में फैले हुए हैं। दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा और मुंबई जैसे शहरों में पुलिस बार-बार छापेमारी करती रही है, लेकिन हर बार कुछ ही हफ़्तों में नए नाम से सेंटर फिर शुरू हो जाता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक:
Data protection law कड़ाई से लागू नहीं होगा,
कॉल सेंटर और BPO के लाइसेंसिंग सिस्टम को मजबूत नहीं किया जाएगा,
इंटरनेट पर job fraud awareness campaigns नहीं चलाई जाएंगी,
तब तक इस तरह की घटनाओं पर पूरी तरह रोक लगाना मुश्किल है।
नतीजा
मुजफ्फरनगर की यह कार्रवाई एक मिसाल है कि स्थानीय पुलिस की तत्परता से बड़े-बड़े अपराध नेटवर्क का भंडाफोड़ किया जा सकता है। लेकिन यह भी जरूरी है कि आम नागरिक सावधान रहें और नौकरी के नाम पर आने वाले हर ऑफर की कंपनी की वैधता जांच लें।
फर्जी कॉल सेंटर से होने वाले फ्रॉड न सिर्फ़ आर्थिक नुकसान पहुँचाते हैं बल्कि डिजिटल भरोसे को भी कमजोर करते हैं। आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए तकनीकी निगरानी, कड़े कानून और नागरिक जागरूकता तीनों का एक साथ काम करना बेहद ज़रूरी है।