
The Old London House fire in Nainital took away the livelihood of many families.
नैनीताल आग त्रासदी: दुकानदारों की रोज़ी-रोटी राख में तब्दील
ओल्ड लंदन हाउस नैनीताल: भीषण आग ने उजाड़े कई घर-परिवार
नैनीताल के ओल्ड लंदन हाउस अग्निकांड ने कई परिवारों का सहारा छीन लिया। छोटे व्यवसायी भारी नुकसान में, पुनर्वास की उम्मीदें प्रशासन से।
~अफजल हुसैन फौजी
Nainital,( Shah Times)। उत्तराखंड का नैनीताल, जिसे “लेक सिटी” कहा जाता है, बीते दिनों एक भयावह अग्निकांड का गवाह बना। मल्लीताल स्थित ओल्ड लंदन हाउस इमारत में भड़की आग ने न सिर्फ दुकानों और सामान को राख कर दिया, बल्कि कई परिवारों की आजीविका छीन ली। यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं बल्कि एक ऐसा सामाजिक प्रश्न है जो छोटे व्यवसायियों की असुरक्षा और आपदा प्रबंधन की कमजोरियों को उजागर करता है।
आग और उसका तांडव
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आग इतनी तेजी से फैली कि कुछ ही मिनटों में पूरी बहुमंजिला इमारत धुएँ और लपटों में घिर गई। अग्निशमन विभाग ने कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया, लेकिन तब तक नुकसान असीमित हो चुका था।
गायत्री खाती का ब्यूटी पार्लर जलकर राख हो गया।
नकदी और लाखों का सामान स्वाहा हो गया।
शादी सीजन की बुकिंग अधर में लटक गई।
उनके साथ काम करने वाली महिलाएँ भी बेरोज़गार हो गईं।
गायत्री का दर्द इस त्रासदी का मानवीय चेहरा है। उन्होंने कहा –
“सपने, रोज़गार और भरोसा सब एक साथ जल गए। अब सरकार और समाज ही सहारा हैं।”
अन्य पीड़ितों की कहानियाँ
यह सिर्फ गायत्री की नहीं, कई परिवारों की त्रासदी है।
नरेंद्र सिंह करायत: उनका पूरा व्यवसाय इसी इमारत से चलता था। अब वे पानी और राख से नुकसान झेलते हुए खाली हाथ खड़े हैं।
मो. इमरान: कपड़ों की दुकान जलने से लाखों का नुकसान हुआ। आग बुझाने के पानी ने भी उनके सामान को पूरी तरह खराब कर दिया।
गोविन्द कनौजिया: फर्नीचर, गद्दे, अलमारी सब खाक हो गए। अनुमानित नुकसान 7–8 लाख रुपये का है।
यह नुकसान महज़ आर्थिक नहीं, बल्कि जीवन की बुनियाद हिलाने वाला है।
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प्रशासन और राजनीति की भूमिका
स्थानीय सांसद अजय भट्ट ने पीड़ितों को मदद का आश्वासन दिया है, लेकिन अब तक ठोस पुनर्वास योजना सामने नहीं आई। सवाल यह है कि—
क्या प्रशासन छोटे व्यवसायियों के लिए आपदा राहत को प्राथमिकता देगा?
क्या प्रभावित लोगों को अस्थायी जगह या आर्थिक सहायता उपलब्ध होगी?
या यह त्रासदी भी फाइलों में दब जाएगी?
राजनीतिक स्तर पर सहानुभूति दिखाना आसान है, लेकिन पुनर्निर्माण और आजीविका बहाली असली चुनौती है।
आपदा प्रबंधन की कमजोरी
भारत में आगजनी की घटनाएँ आम हैं। लेकिन हर बार यह सवाल उठता है कि—
क्या इमारतों में पर्याप्त फायर सेफ़्टी इंतज़ाम हैं?
क्या छोटे दुकानदारों के पास बीमा कवर होता है?
क्या प्रशासन आपदा के बाद त्वरित राहत प्रदान कर पाता है?
नैनीताल की यह घटना दिखाती है कि आज भी कई शहरों में आपदा प्रबंधन सिर्फ कागज़ों में मौजूद है।
प्रतिवाद और विकल्प
कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसी घटनाएँ आकस्मिक होती हैं, सरकार हर जगह मौजूद नहीं हो सकती। यह तर्क आंशिक रूप से सही है, लेकिन—
अगर फायर अलार्म और सेफ़्टी सिस्टम अनिवार्य होते, तो नुकसान कम होता।
अगर छोटे दुकानदारों के लिए माइक्रो-इंश्योरेंस पॉलिसी सुलभ होती, तो वे कम से कम आर्थिक रूप से संभल सकते।
अगर प्रशासन के पास इमरजेंसी पुनर्वास प्लान होता, तो पीड़ितों को खुले आसमान के नीचे इंतज़ार नहीं करना पड़ता।
इसलिए यह त्रासदी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि नुकसान को कम कैसे किया जाए, क्योंकि आग जैसे हादसे कभी पूरी तरह टाले नहीं जा सकते।
नैनीताल का ओल्ड लंदन हाउस अग्निकांड केवल एक स्थानीय खबर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतावनी है। यह उन सपनों की कहानी है जो राख में बदल गए और उन सवालों की गवाही है जो अभी जवाब तलाश रहे हैं।
गायत्री खाती जैसी महिलाएँ और अन्य व्यापारी इस बात का प्रतीक हैं कि आपदा सिर्फ इमारतें नहीं जलाती, बल्कि पूरे जीवन को जला डालती है।
सरकार और समाज के लिए यह वक़्त है कि वे सिर्फ संवेदनाएँ व्यक्त न करें, बल्कि ठोस कदम उठाएँ—
आर्थिक सहायता
पुनर्वास योजना
बीमा और सुरक्षा नियमों का सख़्ती से पालन
तभी यह सुनिश्चित हो सकेगा कि अग्निकांड जैसी घटनाएँ लोगों का जीवन तबाह न करें, बल्कि वे फिर से अपने पैरों पर खड़े हो सकें।