
ओली की विदाई के बाद नेपाल की कमान सुशीला कार्की के हाथों में
संसद भंग और हिंसा के बीच नेपाल में नई अंतरिम सरकार का गठन,क्या खत्म होगा नेपाल संकट?
नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की ने अंतरिम प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। राजनीतिक संकट में ये नियुक्ति स्थिरता की उम्मीद है।
हिमालयी राष्ट्र नेपाल इस समय गहरे राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। देश में भारी जनाक्रोश, हिंसक प्रदर्शनों और संसद भंग करने जैसे विवादित फैसलों के बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की ने अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ है, जहाँ जनता और ख़ासकर Gen Z आंदोलन ने सीधे तौर पर सत्ता के ढाँचे को चुनौती दी है। सवाल है—क्या यह नियुक्ति नेपाल में स्थिरता ला पाएगी या यह केवल राजनीतिक समीकरणों का एक अस्थायी समाधान है?
नेपाल का मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य
हालिया विरोध प्रदर्शनों में 51 मौतें और 1500 से अधिक लोग घायल हुए।
पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारी दबाव के बाद इस्तीफा दिया।
राजधानी काठमांडू और अन्य शहरों में सेना की तैनाती और कर्फ़्यू लागू किया गया।
संसद भंग करने के फैसले पर राजनीतिक दलों में गहरी फूट दिखी।
नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता कोई नई बात नहीं। पिछले दो दशकों में वहाँ लोकतंत्र, राजतंत्र, माओवादी आंदोलन और संविधान निर्माण जैसे उथल-पुथल भरे अध्याय सामने आए। लेकिन इस बार स्थिति अलग है—क्योंकि युवाओं ने आंदोलन की बागडोर संभाली है और पारंपरिक दलों को किनारे कर दिया है।
सुशीला कार्की की नियुक्ति का महत्व
सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं। उनकी पहचान एक ईमानदार, पारदर्शी और निडर न्यायविद के रूप में है। न्यायपालिका में रहते हुए उन्होंने कई बार सत्ता और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया। यही कारण है कि आज जब देश अस्थिरता से गुजर रहा है, तो जनता और विशेष रूप से युवा वर्ग उन्हें एक भरोसेमंद चेहरा मान रहा है।
उनकी नियुक्ति के बाद तीन मुख्य सवाल खड़े होते हैं:
क्या कार्की राजनीतिक दलों की खींचतान से बच पाएँगी?
क्या छह महीने में चुनाव कराना व्यावहारिक होगा?
क्या वे सेना और आंदोलनरत युवाओं के बीच संतुलन बना पाएँगी?
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जेन-ज़ी आंदोलन की भूमिका
नेपाल के मौजूदा संकट का केंद्र Gen Z है।
ये वही युवा हैं जिन्होंने सोशल मीडिया और सड़क आंदोलनों के ज़रिए सत्ता को चुनौती दी।
उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वे अंतरिम सरकार में शामिल नहीं होंगे, बल्कि प्रहरी (watchdog) की भूमिका निभाएँगे।
उनका दबाव ही था जिसने ओली सरकार को झुकने पर मजबूर किया।
यह पहली बार है कि नेपाल में युवा शक्ति इतनी संगठित और निर्णायक रूप से सामने आई है। यह एक नई राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत हो सकती है।
आर्थिक असर: पर्यटन और निवेश पर संकट
नेपाल की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा सहारा पर्यटन है। लेकिन हालिया प्रदर्शनों ने इस क्षेत्र को बुरी तरह चोट पहुंचाई है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक होटल इंडस्ट्री को 16 अरब रुपए का नुकसान हुआ।
25 से अधिक होटलों में आगजनी और तोड़फोड़ हुई।
विदेशी निवेशक सतर्क हो गए हैं और नेपाल की क्रेडिट रेटिंग पर भी असर पड़ सकता है।
अगर आने वाले महीनों में स्थिरता नहीं लौटती तो नेपाल की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था को गहरी चोट लग सकती है।
विश्लेषण: संभावनाएँ और चुनौतियाँ
सकारात्मक पक्ष
कार्की की नियुक्ति से ईमानदारी और पारदर्शिता का संदेश गया है।
युवाओं की भागीदारी से लोकतंत्र मजबूत हो सकता है।
छह महीने में चुनाव का ऐलान राजनीतिक अस्थिरता को सीमित करने का प्रयास है।
नकारात्मक पक्ष
राजनीतिक दल इस फैसले से खुश नहीं हैं, खासकर ओली गुट।
संसद भंग करने पर संवैधानिक विवाद गहराया है।
सेना और राष्ट्रपति के बीच खींचतान के संकेत हैं।
प्रतिवाद और वैकल्पिक दृष्टिकोण
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि—
यह पूरी प्रक्रिया असंवैधानिक है क्योंकि संसद को मनमाने तरीके से भंग किया गया।
कार्की भले ही ईमानदार हों, लेकिन उनके पास राजनीतिक अनुभव की कमी है।
अगर Gen Z लगातार दबाव बनाए रखेगा, तो सरकार के लिए काम करना कठिन होगा।
वहीं दूसरी ओर, समर्थकों का कहना है कि यह युवाओं द्वारा लाया गया वास्तविक परिवर्तन है। यदि इसे सही दिशा में मोड़ा गया तो नेपाल एक नए लोकतांत्रिक अध्याय की ओर बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
नेपाल एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। सुशीला कार्की की नियुक्ति आशा की किरण है, लेकिन चुनौतियाँ भी उतनी ही बड़ी हैं। अगर वे पारदर्शी प्रशासन, निष्पक्ष चुनाव और जनता के विश्वास को कायम रखने में सफल होती हैं, तो यह नेपाल की राजनीति में एक ऐतिहासिक बदलाव साबित होगा। लेकिन अगर राजनीतिक दल और आंदोलनरत युवा आमने-सामने आए, तो संकट और गहरा सकता है।
नेपाल की कहानी सिर्फ नेपाल तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए सबक है—जहाँ जनता और खासकर युवा शक्ति अब पारंपरिक सत्ता संरचनाओं को चुनौती देने लगी है।
Asif Khan
Sub Editor
Shah Times Digital






