
Scene of Kathmandu unrest and closed hotels, symbol of bureaucratic corruption
नेपाल संकट और भारतीय अफसर का काला धन
भारतीय अफसर के भ्रष्टाचार की पूंजी नेपाल की बर्बादी में डूबी
📍काठमांडू, 04 अक्टूबर 2025
|शाह टाइम्स ब्यूरो
नेपाल की सियासत हमेशा से नाज़ुक ताने-बाने पर टिकी रही है। कभी राजशाही, कभी लोकतंत्र और कभी गठबंधन की अस्थिरता—हर दौर में सत्ता की उठापटक वहां की जनता के लिए एक मुश्किल सवाल बन गई। मगर इस बार का संकट कुछ ज़्यादा गहरा है। वजह सिर्फ़ सरकार गिरने की आहट नहीं, बल्कि इस हलचल में सरहद पार के काले धन का डूबना भी शामिल है।
काठमांडू के होटल कारोबार और टूरिस्ट इंडस्ट्री में लगाए गए करोड़ों रुपयों के निवेश अब धुंधले पड़ चुके हैं। कहा जा रहा है कि इन पैसों का बड़ा हिस्सा भारत से गया था, और उसमें कुछ आला अफसरान का नाम भी जुड़ा है। चर्चाओं में उत्तराखंड के एक बड़े अफसर और उनकी डाक्टर पत्नी का ज़िक्र सबसे ज़्यादा है।
अफसरशाही और भ्रष्टाचार का गठजोड़
भारतीय अफसरशाही को आमतौर पर नीति और प्रशासन की रीढ़ कहा जाता है, मगर यही तंत्र कभी-कभी भ्रष्टाचार की सबसे मज़बूत दीवार भी बन जाता है। उत्तराखंड के इस अफसर की कहानी इसी की मिसाल है।
कभी खेती-पानी के महकमे में, कभी सेहत विभाग में और कभी बड़े प्रोजेक्ट्स में—हर जगह आरोप यही रहे कि इन्होंने अपने पद का इस्तेमाल निजी फ़ायदे के लिए किया। सरकारी धन की हेराफेरी और contractors से मिलीभगत ने इन्हें हमेशा विवादों में रखा।
इनकी पत्नी पेशे से डाक्टर हैं, मगर उन्होंने इलाज की राह छोड़कर NGO का रास्ता चुना। यह NGO अब एक ऐसे प्लेटफ़ॉर्म की तरह चर्चा में है जहां से allegedly अवैध धन का लेन-देन होता रहा। बताया जाता है कि यहीं से रुपयों को नेपाल के होटल और टूरिस्ट कारोबार में लगाया गया।
नेपाल का अस्थिर परिदृश्य और निवेश का डूबना
नेपाल की सियासत में instability कोई नई बात नहीं। बार-बार सरकार बदलना, गठबंधन टूटना और जनता का आक्रोश अब आम दृश्य हैं। लेकिन इस बार की हलचल ने निवेशकों के पाँव तले ज़मीन खिसका दी है।
होटल और टूरिस्ट कारोबार जो नेपाल की अर्थव्यवस्था की जान था, Gen Z आंदोलन और सियासी उठापटक में सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ। होटल खाली पड़े हैं, bookings रद्द हो चुकी हैं और विदेशी सैलानी अब नेपाल का रुख़ करने से बच रहे हैं।
इसी कारोबार में भारतीय अफसरों का कालाधन लगा हुआ था। भ्रष्टाचार से कमाया गया ये धन अब डूबने की कगार पर है। काठमांडू की महफ़िलों में ये चर्चाएँ तेज़ हैं कि “भारतीय अफसरान का सरमाया अब हाथ से निकल रहा है।”
सत्ता, निवेश और साज़िश
नेपाल का यह संकट एक और हक़ीक़त सामने लाता है—कि कैसे अफसरशाही का धन सरहदों को पार कर दूसरे मुल्कों में निवेश का रूप ले लेता है। टूरिज़्म और होटल इंडस्ट्री इसमें सबसे आसान रास्ता है।
cash आधारित कारोबार होने की वजह से monitoring कम होती है और यही loophole corruption के पैसों के लिए best option बन जाता है। यही वजह है कि अफसर ने अपने black money को इस sector में डाला।
मगर जब political crisis ने पूरे कारोबार को हिला दिया, तो यह network भी बिखर गया। अब वही अफसर और उनकी पत्नी अपने काठमांडू contacts के ज़रिए किसी तरह अपने investments को बचाने की जुगत लगा रहे हैं।
ईमानदार सरकार और अफसरशाही का बोझ
उत्तराखंड का मौजूदा मुख्यमंत्री एक साफ़ और ईमानदार छवि रखते हैं। उनकी सख़्ती और governance model की तारीफ़ होती रही है। मगर यह विडंबना है कि उनकी सरकार के तहत ऐसे अफसर न सिर्फ़ टिके हुए हैं, बल्कि उनके कृत्य पूरे सिस्टम की credibility पर सवाल उठा रहे हैं।
जनता का perception साफ़ है—अगर leadership honest है तो bureaucracy के भीतर ऐसे corrupt elements survive क्यों कर रहे हैं? experts मानते हैं कि यह administrative loopholes और systemic कमज़ोरियों का नतीजा है।
जन आंदोलनों की दस्तक
नेपाल का Gen Z आंदोलन corruption और unaccountable politics के ख़िलाफ़ उठा। छात्रों और नौजवानों ने demand की कि जनता के पैसे का हिसाब लिया जाए और सियासत की जवाबदेही तय हो।
यही आंदोलन hospitality sector को भी प्रभावित कर गया। bookings कैंसिल हुईं, होटल बंद हुए और foreign investment डूब गया। नतीजा यह निकला कि corruption से कमाया गया धन अब liability बन गया।
मीडिया की भूमिका
इस पूरे मामले में मीडिया का भी एक controversial किरदार सामने आया। कुछ पत्रकारों पर आरोप है कि उन्होंने अफसर और उनकी पत्नी के पक्ष में favourable coverage दी। रिपोर्ट्स कहती हैं कि यह सब एक quid pro quo arrangement था।
मगर independent journalists और social media ने इन कोशिशों को नाकाम कर दिया। आज narrative बदल चुका है और अब सवाल ज़्यादा तेज़ी से उठ रहे हैं।
बड़ा सबक
इस पूरे प्रकरण से एक बात साफ़ है: corruption का पैसा कभी सुरक्षित नहीं रहता। चाहे वो भारत में real estate में लगाया जाए या नेपाल के होटलों में, एक न एक दिन हालात उसे बेनक़ाब कर ही देते हैं।
उत्तराखंड के इस अफसर और उनकी पत्नी की कहानी सिर्फ़ एक व्यक्तिगत scandal नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की कमजोरी का आईना है।
निष्कर्ष
नेपाल का राजनीतिक संकट एक warning है—उन सबके लिए जिन्होंने corruption से empire खड़ा किया है। सत्ता के खेल और सरमाया के जुगाड़, दोनों ही स्थाई नहीं होते।
Bottom line यही है: ईमानदार सरकार की credibility तभी बचेगी जब ऐसे अफसर accountability के दायरे में लाए जाएंगे। वरना जनता का विश्वास टूटेगा और पड़ोसी मुल्कों तक उसकी गूंज सुनाई देगी।