
सुभारती विश्वविद्यालय में साइबर अनुपालन पर नई दिशा
डिजिटल युग में कानूनी शिक्षा को दिशा दे रहा सुभारती विश्वविद्यालय
सुभारती विश्वविद्यालय में आयोजित ‘साइबर अनुपालन और विधिक अभ्यास’ विषयक व्याख्यान ने डिजिटल युग में कानूनी शिक्षा के बदलते स्वरूप और तकनीकी नैतिकता की दिशा को नया दृष्टिकोण दिया।
📍मेरठ 🗓️ 28 अक्तूबर 2025✍️आसिफ़ ख़ान
डिजिटल युग में शिक्षा का चेहरा बदल रहा है। आज विश्वविद्यालय केवल किताबें नहीं पढ़ाते, बल्कि समाज को नई सोच देना सीख रहे हैं। मेरठ स्थित स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय में मंगलवार को यही देखने को मिला, जब सरदार पटेल सुभारती विधि महाविद्यालय में “साइबर अनुपालन और विधिक अभ्यास” विषय पर एक विशिष्ट व्याख्यान आयोजित हुआ।
इस कार्यक्रम का नेतृत्व विश्वविद्यालय के निदेशक राजेश चन्द्रा (पूर्व न्यायमूर्ति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय) और संकायाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) वैभव गोयल भारतीय ने किया।
मुख्य वक्ता रहे एडवोकेट शंशाक मोहन गुप्ता, जो इसी कॉलेज के पूर्व छात्र हैं। उनके संबोधन ने छात्रों को यह सोचने पर मजबूर किया कि आज की लीगल प्रैक्टिस केवल अदालतों तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब वह डिजिटल दुनिया की सुरक्षा, डेटा प्रोटेक्शन और साइबर एथिक्स से भी जुड़ चुकी है।

डिजिटल कानून का नया परिदृश्य
शंशाक मोहन ने कहा, “सूचना प्रौद्योगिकी और साइबर लॉ मिलकर डिजिटल दुनिया को नियंत्रित करते हैं।”
उन्होंने समझाया कि आज हर व्यक्ति ऑनलाइन है—भुगतान, खरीदारी, बैंकिंग, यहाँ तक कि शिक्षा भी। ऐसे में साइबर अपराध, डेटा चोरी, या डिजिटल ब्लैकमेल जैसे खतरे आम हो चुके हैं।
यही कारण है कि साइबर लॉ और लीगल कंप्लायंस अब कानूनी पढ़ाई का मुख्य हिस्सा बनते जा रहे हैं।
भारत में 2000 का सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) ने इस दिशा में बुनियाद रखी, लेकिन अब वक्त है कि विश्वविद्यालय उसे प्रैक्टिकल ट्रेनिंग से जोड़ें।
सुभारती लॉ कॉलेज ने इसी दृष्टिकोण से छात्रों को यह समझाने की कोशिश की कि कैसे कानून और तकनीक मिलकर समाज में “डिजिटल जस्टिस” की नींव डाल सकते हैं।
अकादमिक दृष्टि से यह पहल क्यों अहम है
आज का छात्र सिर्फ डिग्री नहीं चाहता, उसे कैरियर-रेडी स्किल्स चाहिए।
साइबर लॉ इस मायने में बेहद प्रासंगिक विषय है।
यह न केवल कानूनी पेशेवरों के लिए नए अवसर खोलता है, बल्कि इंटरनेट गवर्नेंस, डेटा पॉलिसी, और टेक्नोलॉजी एथिक्स जैसे क्षेत्रों में भी युवाओं के लिए नए दरवाज़े खोलता है।
सुभारती विश्वविद्यालय की यह पहल दिखाती है कि कैसे एक स्थानीय संस्था भी वैश्विक विषयों पर अपनी छाप छोड़ सकती है।
कार्यक्रम में उपस्थित शिक्षकों जैसे प्रो. (डॉ.) रीना बिश्नोई, डॉ. सारिका त्यागी, डॉ. प्रेम चन्द्रा, डॉ. आफरीन अलमास, एना सिसोदिया, सोनल जैन, शिवानी, अनुराग, मुस्कान, आशुतोष देशवाल और हर्षित ने भी इस पर जोर दिया कि
शिक्षा केवल सैद्धांतिक न हो, बल्कि छात्रों को डिजिटल यथार्थ से जोड़ने वाली हो।
भारत में साइबर कानून शिक्षा की वर्तमान स्थिति
भारत में अभी साइबर लॉ की पढ़ाई कुछ ही विश्वविद्यालयों में है — जैसे NALSAR, अमिटी, सुभारती, और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली।
मगर ज्यादातर कॉलेज अब भी पारंपरिक विधिक पाठ्यक्रमों तक सीमित हैं।
इसलिए सुभारती जैसे विश्वविद्यालय जब इस दिशा में पहल करते हैं, तो वह एक उदाहरण बनते हैं।
साइबर कानून की मांग बढ़ने की एक वजह यह भी है कि सरकार लगातार डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रही है।
हर नीति अब टेक्नोलॉजी से जुड़ी है — चाहे वह आधार कार्ड हो, डिजिटल पेमेंट हो या डेटा प्रोटेक्शन बिल।
ऐसे में, “साइबर अनुपालन” (Cyber Compliance) सिर्फ कानून की शाखा नहीं, बल्कि समाज के लिए ज़रूरी सुरक्षा कवच बन चुका है।
व्याख्यान का सामाजिक और कानूनी महत्व
इस व्याख्यान का असली संदेश यही था —
कानून अब कोरी किताब नहीं, बल्कि जीवित दस्तावेज़ है जो तकनीक के साथ विकसित हो रहा है।
छात्रों को समझाया गया कि कैसे साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए
आईटी पेशेवर, नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेटर, साइबर सिक्योरिटी एनालिस्ट और लीगल काउंसल — सभी को एक साझा भाषा बोलनी होगी।
शंशाक मोहन गुप्ता ने यह भी कहा कि “साइबर कानून केवल वकीलों के लिए नहीं, बल्कि हर नागरिक के लिए ज़रूरी है।”
यह बात खास इसलिए अहम है क्योंकि इंटरनेट का इस्तेमाल अब सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि ज़रूरत बन चुका है।
एक बौद्धिक मंथन का आरंभ
यह कार्यक्रम महज़ एक लेक्चर नहीं था, बल्कि एक बौद्धिक संवाद था — जिसमें विधि, तकनीक, और नैतिकता का संगम दिखा।
राजेश चन्द्रा जैसे अनुभवी न्यायविद का मार्गदर्शन इस बात का प्रतीक है कि विश्वविद्यालय केवल नौकरी देने का माध्यम नहीं, बल्कि नागरिक चेतना का केंद्र भी हैं।
सुभारती विश्वविद्यालय की इस पहल ने यह दिखाया कि जब शिक्षा संस्थान समाज की वास्तविक जरूरतों को समझते हैं, तो वे केवल डिग्रियाँ नहीं, बल्कि जिम्मेदार डिजिटल नागरिक तैयार करते हैं।
भविष्य की दिशा
आने वाले समय में, जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ब्लॉकचेन कानून का हिस्सा बनेंगे,
तो ऐसे कार्यक्रम युवाओं को नई दिशा देंगे।
कानूनी पेशे में डेटा विश्लेषण, ऑनलाइन एविडेंस, और ई-कोर्ट जैसी चीज़ें अब मुख्यधारा में हैं।
इसलिए यह ज़रूरी है कि कॉलेज अपने पाठ्यक्रम को अपडेट करें और
प्रशिक्षण में रीयल केस सिमुलेशन और साइबर कोर्ट प्रैक्टिस शामिल करें।
सुभारती विश्वविद्यालय ने यह प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो आने वाले समय में भारत की लीगल एजुकेशन का चेहरा बदल सकती है।
सुभारती विश्वविद्यालय का यह आयोजन केवल एक सेमिनार नहीं था —
यह इस बात का संकेत था कि भारत की नई पीढ़ी अब “कानून” को किताबों से निकालकर “कोड” की भाषा में समझना चाहती है।यह विश्वविद्यालयों के लिए भी एक संदेश है कि
शिक्षा तब तक प्रासंगिक नहीं हो सकती जब तक वह तकनीक और नैतिकता दोनों से संवाद न करे।
सुभारती ने यह संवाद शुरू कर दिया है — और यही उसे बाकी संस्थानों से अलग बनाता है।






