
Nimisha Priya in Yemen Jail Death Penalty Stay 2025
निमिषा प्रिया की यमन में फांसी टली: भारत सरकार और धार्मिक नेताओं के कोशिश रंग लाई
निमिषा प्रिया को मिली फांसी से राहत, यमन सरकार ने सजा पर लगाई रोक
केरल की भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की यमन में फांसी की सजा भारत सरकार और धार्मिक नेताओं की कोशिशों से टल गई है। जानिए पूरा मामला और आगे की संभावनाएं। पढ़िए शाह टाइम्स एडिटोरियल एनालिसिस
एक अंतरराष्ट्रीय मानवीय संघर्ष
भारतीय नर्स निमिषा प्रिया, जो केरल की निवासी हैं, को यमन में अपने यमनी बिजनेस पार्टनर की हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी। यह मामला अब मानवीय, कूटनीतिक और धार्मिक हस्तक्षेपों की बदौलत एक नई दिशा ले रहा है। 16 जुलाई 2025 को फांसी की तय तारीख से पहले ही यमन सरकार ने उनकी सजा स्थगित कर दी है। यह स्थगन भारत सरकार की सक्रियता, केरल के मुस्लिम धार्मिक नेताओं की पहल और यमन के वरिष्ठ धार्मिक व न्यायिक अधिकारियों के हस्तक्षेप के चलते संभव हो पाया है।
हत्या का मामला और कानूनी प्रक्रिया
निमिषा प्रिया पर आरोप है कि उन्होंने वर्ष 2017 में अपने यमनी साझेदार तलाल अब्दो महदी की हत्या की थी। अदालत ने 2020 में उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। अंतिम अपील वर्ष 2023 में खारिज कर दी गई थी। इसके बाद 16 जुलाई 2025 को फांसी की तारीख तय कर दी गई थी। निमिषा फिलहाल यमन की राजधानी सना की जेल में बंद हैं।
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इस केस में मुख्य आरोप यह है कि निमिषा ने महदी को बेहोशी का इंजेक्शन दिया ताकि वह उनसे अपना पासपोर्ट वापस ले सकें। लेकिन इंजेक्शन से महदी की मृत्यु हो गई। यमन के कानून के अनुसार यह मामला हत्या की श्रेणी में आता है, और उसी के आधार पर उन्हें मौत की सजा दी गई।
भारत सरकार की भूमिका और सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप
भारत सरकार ने इस मामले में शुरुआत से ही सक्रिय भूमिका निभाई। विदेश मंत्रालय, यमन में भारतीय दूतावास और वहां के जेल अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क बनाए रखा गया। इसके अतिरिक्त भारत के सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले में याचिका दायर की गई थी, जिसमें केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया कि वे निमिषा की जान बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत सरकार यमन में निमिषा प्रिया के मामले पर लगातार वार्ता कर रही है। जब तक बातचीत जारी है, तब तक यमन सरकार से फांसी के आदेश पर स्थगन की मांग की गई थी, जिसे यमन सरकार ने मान लिया।
धार्मिक नेताओं की मध्यस्थता
इस मामले में एक अहम भूमिका निभाई है केरल के सुन्नी मुस्लिम नेता कंथापुरम ए पी अबूबकर मुसलियार ने। उन्होंने यमन में धार्मिक और सामाजिक नेताओं के साथ संपर्क साधा और वहां के सूफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हफीज के प्रतिनिधियों से बातचीत की। इन प्रयासों से मृतक महदी के परिवार के एक महत्वपूर्ण सदस्य को बातचीत के लिए राजी किया जा सका, जो कि पहले तक असंभव माना जा रहा था।
यह सदस्य न केवल यमन की होदेइदाह राज्य न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश है, बल्कि यमनी शूरा काउंसिल का भी सदस्य है। उसके शामिल होने से ब्लड मनी के आधार पर समझौते की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
ब्लड मनी: यमन के शरिया कानून में समाधान का विकल्प
यमन में शरिया कानून के तहत हत्या के मामलों में एक समाधान होता है जिसे ब्लड मनी कहते हैं। इसके अंतर्गत आरोपी पक्ष, मृतक के परिवार को एक वित्तीय मुआवजा देता है। यदि मृतक का परिवार इस मुआवजे को स्वीकार कर ले, तो फांसी की सजा को टाला जा सकता है।
इस मामले में अब तक मृतक महदी के परिवार से संपर्क नहीं हो पा रहा था, लेकिन धार्मिक नेताओं के हस्तक्षेप के बाद परिवार के करीबी सदस्य को राजी कर लिया गया है। ऐसे में अब बातचीत की संभावना बढ़ गई है कि मुआवजा देकर निमिषा प्रिया की सजा को पूरी तरह माफ कराया जा सके।
सामाजिक और मानवीय पहलू
निमिषा प्रिया की कहानी केवल एक कानूनी मामला नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय और सामाजिक पहलुओं की भी गहरी भूमिका है। एक महिला जिसने विदेश में काम करने और आत्मनिर्भर बनने की कोशिश की, वो अब कई वर्षों से जेल में है। उनकी मां, पति और बेटी सालों से उनकी वापसी की उम्मीद में हैं।
भारत में विभिन्न मानवाधिकार संगठनों ने भी इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की थी और सरकार से आग्रह किया था कि वे कूटनीतिक और धार्मिक माध्यमों से समाधान निकालें।
क्या आगे की राह आसान होगी?
फिलहाल निमिषा की फांसी स्थगित हो गई है, लेकिन पूरी तरह माफ नहीं हुई है। ब्लड मनी को लेकर चल रही बातचीत में यदि सहमति बन जाती है, तो उनकी रिहाई की संभावना प्रबल हो सकती है। इसके लिए भारत सरकार, यमन के धार्मिक-न्यायिक प्रतिनिधियों और मृतक के परिवार के बीच एक संतुलित समझौते की आवश्यकता है।
निष्कर्ष: कूटनीति, धर्म और न्याय का संगम
निमिषा प्रिया का मामला एक ऐसा उदाहरण बन चुका है जहां कूटनीति, धार्मिक नेतृत्व और न्यायिक हस्तक्षेप मिलकर एक संभावित फांसी को टालने में सफल हो रहे हैं। भारत सरकार की सतत कोशिशें, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी, और सामाजिक-धार्मिक नेताओं का प्रयास इस दिशा में उम्मीद की किरण बनकर उभरा है।
यदि आगे भी यही सामंजस्य बना रहा और ब्लड मनी समझौते पर सहमति बन गई, तो यह एक ऐसा मामला बन जाएगा जो अंतरराष्ट्रीय मानवीय कूटनीति की मिसाल पेश करेगा।