पुण्यतिथि विशेष: नूतन का बॉलीवुड सफर, संघर्ष से सफलता तक
बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री नूतन, जो पहली मिस इंडिया बनीं और हिंदी सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाई। पढ़ें उनके संघर्ष, उपलब्धियों और बेहतरीन फिल्मों की कहानी।
मुंबई, (Shah Times) | भारतीय सिनेमा की बेहतरीन अभिनेत्रियों में से एक, नूतन, आज भी अपनी अदाकारी और कड़ी मेहनत के लिए याद की जाती हैं। 21 फरवरी उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर, हम उनके जीवन और सिनेमा में योगदान को याद कर रहे हैं।
संघर्ष और शुरुआत
4 जून 1936 को मुंबई में जन्मीं नूतन (पूरा नाम नूतन समर्थ) को अभिनय विरासत में मिला था। उनकी मां, शोभना समर्थ, खुद एक प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री थीं। घर के फिल्मी माहौल के कारण नूतन का झुकाव भी इसी दिशा में हुआ।
नूतन ने बतौर बाल कलाकार फिल्म नल दमयंती से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने अखिल भारतीय सौंदर्य प्रतियोगिता (Miss India) में हिस्सा लिया और विजेता बनीं। हालांकि, उस समय यह खिताब जीतना उनके लिए बॉलीवुड में सफलता की गारंटी नहीं बना, और उन्हें फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
बॉलीवुड में पहचान और सफलता
1950 में नूतन को पहली बार अपनी मां शोभना समर्थ के निर्देशन में बनी फिल्म हमारी बेटी में काम करने का मौका मिला। इसके बाद हम लोग, शीशम, नगीना और शवाब जैसी फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन उन्हें बड़ी पहचान नहीं मिली।
1955 में फिल्म सीमा से नूतन को असली सफलता मिली। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। इसके बाद उन्होंने पेइंग गेस्ट, तेरे घर के सामने जैसी हल्की-फुल्की फिल्मों में काम किया और अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया।
नूतन की यादगार फिल्में
सुजाता (1959): इस फिल्म में उन्होंने एक अछूत लड़की की भूमिका निभाई, जो उनके करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक बनी।
बंदिनी (1963): इस फिल्म में नूतन ने ऐसा प्रभावशाली अभिनय किया कि उन्हें दूसरा फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
दिल्ली का ठग (1958): इसमें उन्होंने बोल्ड अवतार में नजर आकर चर्चा बटोरी।
सरस्वतीचंद्र (1968): यह फिल्म सुपरहिट साबित हुई और नूतन इंडस्ट्री की नंबर वन अभिनेत्री बन गईं।
सौदागर (1973), मेरी जंग (1985), कर्मा (1986): इन फिल्मों में चरित्र भूमिकाओं में भी उन्होंने शानदार अभिनय किया।
बॉलीवुड की ट्रेजेडी क्वीन
सुजाता, बंदिनी और दिल ने फिर याद किया जैसी फिल्मों की सफलता के बाद नूतन को ‘ट्रेजेडी क्वीन’ कहा जाने लगा। हालांकि, छलिया और सूरत और सीरत जैसी फिल्मों में उन्होंने हास्य भूमिका निभाकर इस धारणा को तोड़ दिया।
आखिरी दौर और विरासत
अस्सी के दशक में नूतन ने मां की भूमिकाएं निभानी शुरू कीं और मेरी जंग, नाम, कर्मा जैसी फिल्मों में दर्शकों को प्रभावित किया। मेरी जंग के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।
लगभग चार दशकों तक अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने वाली नूतन का 21 फरवरी 1991 को निधन हो गया। लेकिन उनकी अदाकारी और विरासत आज भी बॉलीवुड में अमर है।
नूतन सिर्फ एक अदाकारा नहीं, बल्कि एक प्रेरणा थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी। उनका संघर्ष, उनकी उपलब्धियां और उनका योगदान भारतीय सिनेमा के सुनहरे अध्यायों में दर्ज हैं।