
संसद का मानसून सत्र 2025: पहले ही दिन हंगामा, क्या अगले सप्ताह बहस की जंग छिड़ेगी?
पीएम मोदी की उच्चस्तरीय बैठक से क्या संकेत मिलते हैं संसद की रणनीति को लेकर?
संसद का मानसून सत्र हंगामेदार रहा, पीएम मोदी की बैठक से नई रणनीति सामने आई। विपक्ष ने बहस टालने पर नाराजगी जताई।
लोकतंत्र की नब्ज पर संसद की धड़कन
भारतीय लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ — संसद, जब भी सत्र में होती है, पूरा देश नज़र गड़ाकर बैठा रहता है। साल 2025 के मानसून सत्र की शुरुआत 22 जुलाई को हुई, और पहले ही दिन संसद परिसर में जो दृश्य सामने आए, वे ना केवल राजनीतिक ध्रुवीकरण का प्रतीक थे, बल्कि एक चेतावनी भी कि संवाद की जगह अगर शोर ले ले, तो लोकतंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है।
पहले दिन से ही गरमा-गरमी का माहौल
लोकसभा की कार्यवाही जैसे ही शुरू हुई, विपक्षी दलों ने पहलगाम आतंकी हमले और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के ‘मध्यस्थता’ बयान पर सरकार से जवाबदेही की मांग की। वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को देश के लिए गौरव बताया और इसे ‘विजयोत्सव’ के रूप में मनाने की बात कही।
विपक्ष की मांग: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विषय पर बयान दें।
सरकार की दलील: हम सभी मुद्दों पर चर्चा को तैयार हैं, बशर्ते विपक्ष सदन चलने दे।
इस रस्साकशी में सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित होती रही और पहले दिन का ज़्यादातर समय हंगामे की भेंट चढ़ गया।
पीएम मोदी की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठक: रणनीति का रोडमैप
संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण उच्चस्तरीय बैठक हुई, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और कई अन्य मंत्री शामिल हुए।
सूत्रों के अनुसार, बैठक में इन बिंदुओं पर चर्चा हुई:
मानसून सत्र का विधायी एजेंडा
संभावित विरोध और उसकी रणनीति
सरकार की छवि निर्माण के अवसर
मंत्रालयों के समन्वय पर ज़ोर
यह बैठक संकेत देती है कि सरकार इस सत्र को किसी भी हाल में “सफल” बनाना चाहती है, खासकर तब, जब विपक्ष आक्रामक मुद्रा में है।
पीएम मोदी के विदेश दौरे का सीधा असर
23-24 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी ब्रिटेन के आधिकारिक दौरे पर होंगे, और उसके तुरंत बाद 25-26 जुलाई को वे मालदीव यात्रा पर जाएंगे। ऐसे में यह स्वाभाविक था कि संसद में कुछ प्रमुख चर्चाओं को अगले सप्ताह तक टाल दिया गया।
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ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील और देश की सैन्य प्रतिष्ठा से जुड़े विषय पर होने वाली चर्चा को भी अगले हफ्ते शिफ्ट कर दिया गया।
विपक्ष ने इसे “जानबूझकर टालने की राजनीति” बताया, जबकि सरकार का कहना है कि “प्रधानमंत्री की मौजूदगी ज़रूरी है”।
संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस का मुद्दा
ऑपरेशन सिंदूर हाल ही में सेना द्वारा अंजाम दिया गया एक सफल सैन्य मिशन रहा है, जिसने देश की सैन्य क्षमताओं और रणनीतिक सोच को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। बीजेपी चाहती है कि इस पर संसद में जोरदार बहस हो और देश को बताया जाए कि “कैसे सेना ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए”।
विपक्ष का रुख थोड़ा अलग है। वह इस बहस को “सिर्फ जीत का गुणगान” नहीं, बल्कि “रणनीतिक समीक्षा” के रूप में देखना चाहता है, जिसमें सैन्य और राजनयिक पहलुओं पर गंभीर चर्चा हो।
विपक्ष ने लगाए बोलने नहीं देने के आरोप
कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर और अन्य नेताओं ने आरोप लगाया कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को बोलने का मौका नहीं दिया गया। उन्होंने दावा किया कि स्पीकर ने बार-बार टालमटोल किया और सत्ता पक्ष ने हंगामा करवा कर राहुल गांधी की आवाज़ को दबाया।
बीजेपी की ओर से जवाब आया कि राहुल गांधी तय समय पर सदन में नहीं पहुंचे और जानबूझकर ‘विलेन कार्ड’ खेल रहे हैं।
संसद में यह आरोप-प्रत्यारोप एक बार फिर उसी पुरानी राजनीति की ओर इशारा करता है, जो बहस और समाधान की जगह टकराव और तमाशे को प्राथमिकता देती है।
विपक्ष ने बहस टालने पर सवाल उठाए
बिजनेस अडवाइजरी कमिटी ने तय किया है कि ऑपरेशन सिंदूर पर 16 घंटे की बहस होगी। लेकिन यह बहस अगले सप्ताह होगी, क्योंकि पीएम विदेश यात्रा पर हैं।
कांग्रेस, डीएमके और टीएमसी समेत विपक्षी दलों ने मांग की कि:
बहस तत्काल शुरू हो
गृह मंत्री और रक्षा मंत्री सदन में मौजूद रहें
सरकार चर्चा की तारीख स्पष्ट करे
लेकिन सरकार ने फिलहाल तारीख घोषित नहीं की, जिससे नाराज़गी और बढ़ गई।
सरकार के विधायी एजेंडे पर नजर
सरकार इस मानसून सत्र में कुछ अहम विधेयकों को पारित कराने की कोशिश में है। सूत्रों के अनुसार, प्रस्तावित बिल्स में शामिल हैं:
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2025
गैरकानूनी धर्मांतरण नियंत्रण संशोधन विधेयक
गांव न्याय प्रणाली सुधार अधिनियम
यूनीफॉर्म सिविल कोड चर्चा प्रस्ताव
सरकार का प्रयास होगा कि इन सभी को न्यूनतम हंगामे में पास करवाया जाए, लेकिन विपक्ष की रणनीति इस पर निर्भर करेगी कि संसद में किसे बोलने दिया जाता है।
क्या यह सत्र भी ‘विफल’ की दिशा में?
पिछले कुछ वर्षों में संसद के हर सत्र में कार्यवाही का एक बड़ा हिस्सा हंगामे में बर्बाद हुआ है। अगर मानसून सत्र 2025 की शुरुआत के पहले दिन को संकेत मानें, तो आगे की राह आसान नहीं।
विपक्ष सत्ता पक्ष को ‘तानाशाह’ कहता है, और सत्ता पक्ष विपक्ष को ‘अवरोधक’ कहता है। लेकिन दोनों की ज़िम्मेदारी है कि संसद चले और देशहित में कानून बने।
संवाद नहीं, टकराव की नीति लोकतंत्र को कमज़ोर करती है
प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि “यह सत्र विजयोत्सव होगा” एक प्रेरक वक्तव्य है, लेकिन तब ही सार्थक होगा जब उसमें सभी पक्षों की भागीदारी हो।
संसद बहस का मंच है, प्रचार का नहीं। यदि हर विषय पर राजनीतिक लाभ-हानि की सोच के बजाय नीतिगत विमर्श किया जाए, तो सत्र देश के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।