
Mohan Bhagwat speaking on retirement at 75, triggering political debate - Shah Times
75 की उम्र में रिटायरमेंट की बात कहकर मोहन भागवत ने खोली बीजेपी की पुरानी फाइलें
शॉल का संकेत या सियासी संदेश? मोहन भागवत के बयान पर उठा बवंडर
मोहन भागवत ने 75 साल में रिटायरमेंट की बात कही, विपक्ष ने इसे पीएम मोदी पर तंज के रूप में लिया, जानिए पूरी राजनीतिक हलचल।
📰 75 की उम्र में रिटायरमेंट की सलाह पर सियासी तूफान: मोहन भागवत के बयान से BJP की मुश्किलें बढ़ीं?
Shah Times | Editorial Analysis
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत का हालिया बयान—जिसमें उन्होंने 75 वर्ष की आयु के बाद सार्वजनिक जीवन से पीछे हटने की बात कही—ने भारतीय राजनीति में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है। इस बयान के बाद कांग्रेस और शिवसेना (UBT) जैसे विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोला है, जो इसी साल 75 वर्ष के हो जाएंगे।
📚 पृष्ठभूमि: मोरोपंत पिंगले की पुस्तक विमोचन में दिया गया बयान
9 जुलाई 2025 को नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में भागवत ने ‘मोरोपंत पिंगले: द आर्किटेक्ट ऑफ हिंदू रिसर्जेंस’ नामक पुस्तक के विमोचन के दौरान यह बात कही। उन्होंने मोरोपंत पिंगले के 75वें जन्मदिन पर शॉल ओढ़ाए जाने की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि यह सम्मान केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश होता है—कि अब आपको नए लोगों के लिए रास्ता छोड़ना चाहिए।
भागवत ने कहा:
“जब 75 साल पूरे होने पर शॉल दी जाती है, तो इसका मतलब होता है कि अब आपकी उम्र हो गई है, आपको पीछे हट जाना चाहिए। और बाकी लोगों को अवसर देना चाहिए।”
🗳️ राजनीतिक मतलब: बयान या संदेश?
इस बयान का राजनीतिक अर्थ तुरंत निकाल लिया गया। कांग्रेस और शिवसेना (UBT) ने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इंडायरेक्ट सिग्नल बताया, जो इस वर्ष 17 सितंबर को 75 वर्ष के हो जाएंगे। संयोग से मोहन भागवत खुद भी 11 सितंबर 2025 को 75 के हो जाएंगे।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तंज कसते हुए कहा:
“एक तीर, दो निशाने। भागवत जी ने लौटते ही याद दिलाया कि प्रधानमंत्री भी 75 साल के हो रहे हैं।”
संजय राउत (शिवसेना-UBT) ने भी सवाल उठाया कि:
“मोदी जी ने जब मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेताओं को रिटायर किया, तो क्या अब वह खुद को भी यही मानदंड लागू करेंगे?”
🧠 RSS-BJP संबंध: बनते-बिगड़ते समीकरण?
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इस बयान को BJP और RSS के बीच मतभेद का संकेत बताया। उनका कहना था कि RSS अब BJP को उसके 2014 के वादे की याद दिला रहा है, जब 75 पार नेताओं को ‘मार्गदर्शक मंडल’ में भेजा गया था।
“यह अंदरूनी टकराव अब सार्वजनिक हो गया है। RSS और BJP के बीच बढ़ती खाई अब शब्दों में नजर आने लगी है।”
🧩 राजनीतिक विश्लेषण: अंदरूनी बदलाव या संकेत मात्र?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोहन भागवत का यह बयान यूं ही नहीं आया है। यह एक सोच और संस्कृति का हिस्सा है, जिसमें सत्ता की पीढ़ीगत तब्दीली एक स्वाभाविक प्रक्रिया मानी जाती है। संघ लंबे समय से ‘सेवा और त्याग’ की परंपरा का समर्थक रहा है।
बयान के बाद उठे सवाल:
- क्या यह BJP को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करने की कोशिश है?
- क्या यह संघ द्वारा पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की तरफ इशारा है?
- क्या PM मोदी इस बयान को व्यक्तिगत तौर पर लेंगे?
🏛️ बीजेपी की रणनीति: मौन या जवाब?
अब सबकी नजर BJP की प्रतिक्रिया पर टिकी है। क्या पार्टी इस बयान को नजरअंदाज करेगी या इसे विपक्षी हमले के जवाब में डिफेंड करेगी? अभी तक पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
सूत्रों के मुताबिक, BJP इस मुद्दे पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है क्योंकि मामला सीधे प्रधानमंत्री की उम्र और नेतृत्व क्षमता से जुड़ा है।
📌 संघ परंपरा बनाम राजनीतिक व्यवहार
RSS में समय-समय पर वरिष्ठ स्वयंसेवकों को कार्य से विराम देने की परंपरा रही है। मोहन भागवत का बयान इसी परंपरा को दोहराता प्रतीत होता है। लेकिन जब यही विचार राजनीतिक क्षेत्र में लाया जाता है, तो उसकी व्याख्या अलग तरीके से होती है।
🧵 विचार का वक्त
मोहन भागवत के बयान ने एक जरूरी और अनछुआ मुद्दा—राजनीति में उम्र की भूमिका—को चर्चा में ला दिया है। क्या 75 की उम्र सच में रिटायरमेंट की सीमा होनी चाहिए? क्या नेताओं को युवाओं के लिए स्थान छोड़ना चाहिए? और क्या बीजेपी, जिसने पहले दूसरों पर यही मापदंड लागू किया, अब खुद उस पर अमल करेगी?
राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता, लेकिन विचार और मूल्यों पर आधारित संवाद समय-समय पर जरूरी होता है। मोहन भागवत ने वही किया है—एक बहस को जन्म दिया है, जिसका असर 2025 की राजनीति पर गहरा हो सकता है।