
Monsoon session 2025 debate in Indian Parliament
संसद मानसून सत्र : विपक्ष के तीखे सवालों से घिरेगी मोदी सरकार
संसद मानसून सत्र में विपक्ष उठाएगा सुरक्षा, विदेश नीति के मुद्दे
संसद का मानसून सत्र आज से शुरू, विपक्ष ने पहलगाम हमला, ऑपरेशन सिंदूर, ट्रंप के दावे और बिहार वोटर सूची पर सरकार से जवाब मांगा है।
मानसून सत्र 2025: सियासी आरोप-प्रत्यारोप के बीच संसद का घमासान तय
आज यानी 21 जुलाई 2025 से संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है, जो 21 अगस्त तक चलेगा। यह सत्र महज विधायी कार्यवाही तक सीमित नहीं रहने वाला, बल्कि इसमें विपक्ष और सरकार के बीच जबरदस्त सियासी टकराव देखने को मिलेगा। विपक्ष ने कई मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई है, जिनमें पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्थता वाले दावे, बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण और मणिपुर-चीन की स्थिति जैसे मुद्दे प्रमुख हैं।
विपक्ष के निशाने पर सरकार: मुख्य मुद्दों की सूची
इस मानसून सत्र में विपक्ष ने सरकार को घेरने के लिए जिन मुद्दों को प्राथमिकता दी है, वे सीधे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा, आंतरिक स्थिरता और विदेश नीति से जुड़े हैं:
पहलगाम आतंकी हमला – अप्रैल में हुए इस हमले में 26 नागरिकों की जान गई, और अभी तक जिम्मेदार आतंकियों का सुराग नहीं मिला।
ऑपरेशन सिंदूर – विदेशों में भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी को लेकर की गई कार्रवाई, लेकिन इसमें पारदर्शिता और जानकारी की कमी को विपक्ष उठा रहा है।
सीजफायर और डोनाल्ड ट्रंप के दावे – ट्रंप के 20 से अधिक बार भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के दावों ने सरकार की विदेश नीति पर सवाल खड़े किए हैं।
बिहार में वोटर वेरिफिकेशन – विधानसभा चुनावों से पहले चल रही मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया पर राजनीतिक संदेह और सवाल उठ रहे हैं।
मणिपुर और चीन सीमा विवाद – पूर्वोत्तर भारत और लद्दाख में हालिया घटनाओं पर भी बहस की मांग की जा रही है।
कांग्रेस का आक्रामक रुख: स्थगन प्रस्ताव और सत्र की रणनीति
कांग्रेस ने पहले दिन से ही आक्रामक रणनीति अपनाते हुए लोकसभा और राज्यसभा दोनों में स्थगन प्रस्ताव दिए हैं।
बी. मणिकम टैगोर ने लोकसभा में “राष्ट्रीय सुरक्षा विफलता” पर चर्चा की मांग रखी।
रणदीप सुरजेवाला और रेणुका चौधरी ने राज्यसभा में नियम 267 के तहत कार्य स्थगन नोटिस देकर पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर को बहस का विषय बनाया।
कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने साफ कहा कि सरकार अब तक कई मुद्दों पर जवाब नहीं दे पाई है। यह सिर्फ राजनीतिक आरोप नहीं बल्कि लोकतंत्र में जवाबदेही की मांग है।
क्या प्रधानमंत्री देंगे जवाब?
सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऑपरेशन सिंदूर और ट्रंप के बयान जैसे संवेदनशील मुद्दों पर खुद संसद में बयान देना चाहिए। हालांकि, संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने यह स्पष्ट कर दिया कि पीएम की जगह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इन मुद्दों पर जवाब देंगे। सरकार ने संसद में सभी बहसों को नियमों के दायरे में करवाने की बात कही है।
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सरकार का पक्ष: बहस से भागने का सवाल नहीं
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सरकार किसी भी विषय पर चर्चा से भाग नहीं रही है, लेकिन बहस संसदीय नियमों और प्रक्रिया के तहत ही होगी।
उन्होंने विपक्ष से सहयोग की भी अपील की ताकि सत्र का संचालन सुचारू हो सके। सर्वदलीय बैठक में कुल 54 नेताओं ने भाग लिया।
क्षेत्रीय दलों की भूमिका: सवालों की नई लिस्ट
सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, आप, TMC और अन्य विपक्षी दलों ने भी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की तैयारी की है।
आप सांसद संजय सिंह ने बिहार में चल रहे वोटर वेरिफिकेशन अभियान को “बड़ा फ्रॉड” बताते हुए चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद अल्ताफ अहमद लारवी ने पहलगाम हमले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और इसे संसद में उठाने की बात कही।
क्या सरकार दे पाएगी संतोषजनक जवाब?
सरकार की ओर से यह संकेत मिल रहे हैं कि मुद्दों पर चर्चा को टालने की कोई मंशा नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट या चुनाव आयोग से जुड़े विषयों पर सरकार बहस से बच सकती है।
बिहार वोटर वेरिफिकेशन जैसे मामले को सरकार तकनीकी और संवैधानिक प्रक्रिया का हवाला देकर टाल सकती है।
मानसून सत्र: राजनीति या उत्तरदायित्व की परीक्षा?
इस बार का मानसून सत्र न केवल विधायी कार्यों के लिए बल्कि लोकतंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही की परीक्षा भी होगा।
जहां विपक्ष ने बड़ी गंभीरता से मुद्दों को उठाने की योजना बनाई है, वहीं सरकार की ओर से भी ठोस जवाब और बहस के लिए तैयार होने के संकेत मिल रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही रहेगा — क्या जनता को इन बहसों से समाधान और स्पष्टता मिलेगी या फिर ये सत्र भी सियासी बयानबाजी में खत्म हो जाएगा?
निष्कर्ष
मानसून सत्र 2025 भारतीय संसद के लिए एक निर्णायक पल है। यह सिर्फ विधायी प्रक्रिया नहीं, बल्कि सरकार और विपक्ष दोनों की जवाबदेही की कसौटी बन गया है।
विपक्ष ने जहां जनता से जुड़े मुद्दों पर सरकार को घेरने की ठान ली है, वहीं सरकार ने भी चर्चा के लिए दरवाजे खुले रखने की बात कही है।
अब देखना यह होगा कि क्या यह सत्र लोकतांत्रिक विमर्श का मंच बनता है या फिर राजनीतिक शोरगुल का मैदान।