
संसद में हंगामा: पीएम-सीएम हटाने वाले बिल पर सियासी टकराव
संसद में सरकार का दावा – नैतिकता की मिसाल; विपक्ष का आरोप – लोकतंत्र पर हमला
संसद में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को गिरफ्तारी की स्थिति में हटाने वाले बिल पर जबरदस्त हंगामा। सरकार नैतिकता की बात कर रही, विपक्ष इसे असंवैधानिक बता रहा है।
संसद का मानसून सत्र हमेशा से बहस और टकराव का गवाह रहा है, मगर इस बार पेश हुए तीन अहम बिल ने भारतीय राजनीति को नए भू-राजनीतिक बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है। सरकार ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार या हिरासत में लिए जाने पर पद से हटाने का प्रावधान रखने वाले विधेयक संसद में पेश किए।
गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 लोकसभा में रखा। विपक्ष ने इस पर तीखा विरोध जताया, कॉपियां फाड़ीं और सदन में हंगामा किया।
अमित शाह का जवाब
अमित शाह ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि यह कदम किसी जल्दबाज़ी में नहीं उठाया गया। उन्होंने याद दिलाया कि जब उनपर आरोप लगे थे तो उन्होंने नैतिकता के आधार पर खुद इस्तीफा दिया था। शाह ने कहा, “हम चाहते हैं कि राजनीति में नैतिकता का स्तर और ऊंचा हो। अगर कोई नेता जेल जाता है, तो संवैधानिक पद पर बने रहना उचित नहीं।”
विपक्ष की आपत्तियाँ
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और असदुद्दीन ओवैसी ने इन बिलों को संविधान-विरोधी करार दिया। उनका तर्क था कि भारतीय न्याय व्यवस्था में कानून का मूल सिद्धांत ‘निर्दोष जब तक दोषी साबित न हो’ है। ऐसे में केवल गिरफ्तारी के आधार पर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को हटाना लोकतंत्र पर हमला है।
प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे “तानाशाही का कदम” बताते हुए कहा कि अगर किसी भी मुख्यमंत्री पर झूठा केस डालकर उन्हें 30 दिन जेल में रख दिया गया तो बिना सज़ा हुए ही उनकी कुर्सी छिन जाएगी।
शशि थरूर का अलग नजरिया
जहाँ कांग्रेस इस बिल का विरोध कर रही है, वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने अलग राय दी। उनका कहना है कि यदि कोई मंत्री लगातार 30 दिन जेल में है, तो पद पर बने रहना तार्किक नहीं। उन्होंने कहा कि “यह कॉमन सेंस का मामला है, न कि सिर्फ राजनीति का। इस पर संसदीय समिति में खुलकर चर्चा होनी चाहिए।”
थरूर की यह राय कांग्रेस के भीतर मतभेद को उजागर करती है। पहले भी उन्होंने जी-23 समूह के जरिए गांधी परिवार की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। इस बार फिर उन्होंने विपक्षी लाइन से अलग बयान देकर पार्टी को असहज किया है।
राजनीतिक और लोकतांत्रिक असर
यह बिल सिर्फ कानूनी या संवैधानिक बहस तक सीमित नहीं, बल्कि इसके गहरे राजनीतिक मायने भी हैं। अगर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री किसी भी साज़िशी गिरफ्तारी में फंसते हैं और उन्हें 30 दिन जेल में रखा जाता है, तो पूरा शासन तंत्र अस्थिर हो सकता है।
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विपक्ष का मानना है कि इसका इस्तेमाल सत्ता पक्ष राज्यों की विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने में करेगा।
वहीं, सरकार इसे “नैतिक राजनीति” की ओर एक कदम बताती है।
यह बहस भारत की लोकतांत्रिक संस्कृति को नई दिशा देने वाली है। एक ओर नैतिकता की कसौटी को मज़बूत करने का तर्क है, दूसरी ओर संवैधानिक ढांचे की जड़ों को हिलाने का खतरा।
भविष्य की राह
अब यह बिल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा जाएगा। वहाँ हर पहलू पर चर्चा होगी। अगर समिति ने इसे पास किया तो भारतीय राजनीति में एक नई परंपरा स्थापित होगी, जहाँ सिर्फ जेल में रहने भर से कोई भी शीर्ष पद से हटाया जा सकेगा।लेकिन सवाल यही है – क्या यह लोकतंत्र की मज़बूती होगी या उसका क्षरण?