
Mayawati speaking at a press conference addressing concerns over Bihar’s lottery-based principal appointments – Shah Times Editorial Coverage
लाटरी से प्रिंसिपल नियुक्ति पर मायावती का हमला: शिक्षा व्यवस्था के लिये घातक प्रयोग?
प्रिंसिपलों की लाटरी नियुक्ति से शिक्षा संकट में? बसपा सुप्रीमो का केंद्र पर निशाना
Shah Times Political News
बसपा सुप्रीमो मायावती ने पटना विश्वविद्यालय में लाटरी के जरिए प्रिंसिपल नियुक्ति को शिक्षा व्यवस्था के लिए घातक बताया। जानें क्यों यह प्रणाली सवालों के घेरे में है।
बिहार की राजधानी पटना स्थित प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में हाल ही में एक अनोखा प्रयोग देखने को मिला—लाटरी सिस्टम के जरिए कॉलेज प्रिंसिपलों की नियुक्ति। यह प्रयोग न केवल मीडिया जगत बल्कि शिक्षाविदों, छात्रों और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। इस विषय पर बसपा प्रमुख मायावती ने तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे “शिक्षा व्यवस्था के लिए घातक” करार दिया है।
मुद्दा क्या है?
पटना विश्वविद्यालय से संबद्ध पाँच प्रतिष्ठित कॉलेजों—पटना कॉलेज, साइंस कॉलेज, कॉमर्स कॉलेज, मगध महिला कॉलेज और लॉ कॉलेज में प्रिंसिपल की नियुक्ति लाटरी प्रणाली से की गई। दावा किया गया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष है, क्योंकि उम्मीदवारों का चयन अयोग्य नहीं बल्कि योग्य लोगों के समूह से लाटरी द्वारा किया गया।
लेकिन प्रश्न यह उठता है: क्या लाटरी जैसा तरीका उच्च शिक्षा की गरिमा के अनुकूल है? क्या इससे विशेषज्ञता, योग्यता और संस्थान की विशिष्ट आवश्यकताओं की अनदेखी नहीं होती?
मायावती की चिंता कितनी जायज़?
मायावती का तर्क है कि —
“1863 में स्थापित पटना कॉलेज में केवल आर्ट्स विषय पढ़ाए जाते हैं, लेकिन वहाँ कैमिस्ट्री के प्रोफेसर को प्राचार्य बना दिया गया।”
इसी तरह, गृह विज्ञान की प्रोफेसर साइंस कॉलेज, और कला संकाय की प्रोफेसर को कॉमर्स कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया गया। शिक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह न केवल शैक्षणिक अनुशासन की अवहेलना है, बल्कि इससे छात्रों के शैक्षणिक भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न लगते हैं।
पारदर्शिता बनाम योग्यता: क्या है सही संतुलन?
लाटरी प्रणाली का उद्देश्य राजनीतिक हस्तक्षेप, जातीय समीकरण और पक्षपात को रोकना बताया गया है। लेकिन क्या पारदर्शिता की आड़ में ‘योग्यता और विशेषज्ञता’ की बलि देना तर्कसंगत है?
पारदर्शिता का तात्पर्य यह नहीं कि आप किसी योग्य व्यक्ति को उसके विशेषज्ञ विषय से हटाकर किसी अन्य विषय की जिम्मेदारी दे दें। इससे संस्थान की गुणवत्ता और छात्र शिक्षा दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
शिक्षा संस्थानों का उद्देश्य और ज़िम्मेदारी
उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रमुख भूमिका है:
विषय-विशेष में गहन ज्ञान देना
अनुसंधान को बढ़ावा देना
अकादमिक माहौल बनाए रखना
एक विषय विशेषज्ञ जो अपने क्षेत्र में अनुभव रखता है, वही प्राचार्य के पद पर संस्था का सही दिशा में नेतृत्व कर सकता है। लाटरी द्वारा चुना गया व्यक्ति भले ही योग्य हो, लेकिन यदि वह विषय-साम्य नहीं रखता तो उसका नेतृत्व संस्थान के विकास में बाधक बन सकता है।
संभावित दुष्परिणाम:
- छात्रों की शिक्षा गुणवत्ता पर असर
विषय के अनजान प्राचार्य से पाठ्यक्रमों में दिशा भ्रम हो सकता है। - शिक्षकों के मनोबल में गिरावट
जब विशेषज्ञता को तवज्जो नहीं दी जाएगी, तो शिक्षकों में असंतोष बढ़ेगा। - संस्थानों की साख पर आंच
प्रतिष्ठित कॉलेजों की पहचान उनके शिक्षकों और नेतृत्व से होती है। - राज्य स्तर पर शिक्षा नीति की आलोचना
यह प्रयोग केंद्र सरकार और UGC के मानकों पर भी प्रश्नचिह्न उठाता है।
क्या यह व्यवस्था अन्य राज्यों में लागू होगी?
मायावती ने यह भी सवाल उठाया कि क्या भाजपा-शासित अन्य राज्यों में भी ऐसी लाटरी प्रणाली को लागू किया जाएगा? यह सवाल राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि यह मॉडल सफल रहा तो यह नई नीति के रूप में देशभर में लागू हो सकता है, लेकिन यदि यह असफल हुआ तो इसका दुष्प्रभाव वर्षों तक महसूस किया जाएगा।
भविष्य की चेतावनी:
मायावती ने स्पष्ट कहा कि:
“यदि यह परंपरा जारी रही तो कल को मेडिकल कॉलेज, IITs, ISRO जैसी संस्थाओं में भी गैर-एक्सपर्ट नियुक्त हो सकते हैं।”
यह चेतावनी किसी भी शिक्षा नीति-निर्माता के लिए गंभीर संकेत है।
समाधान की राह:
- लाटरी प्रणाली का सीमित प्रयोग
लाटरी केवल समकक्ष योग्य लोगों में अंतिम चयन हेतु हो, लेकिन विषय साम्यता बनी रहे। - UGC और केंद्र सरकार की समीक्षा
यह विषय केवल राज्य का नहीं, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की विश्वसनीयता से जुड़ा है। - नियुक्ति में विशेषज्ञों की समिति
चयन प्रक्रिया में विषय विशेषज्ञों और पूर्व प्राचार्यों की भूमिका हो। - अंतरिम व्यवस्था को जल्द स्थायी विकल्प से बदलें
अगर यह अस्थायी समाधान है, तो सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए।
निष्कर्ष:
शिक्षा प्रणाली किसी भी देश की रीढ़ होती है। उसमें पारदर्शिता जरूरी है, लेकिन यह पारदर्शिता योग्यता और विशेषज्ञता की कीमत पर नहीं होनी चाहिए। लाटरी एक शॉर्टकट है, लेकिन शॉर्टकट कभी भी दीर्घकालिक गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं कर सकता। मायावती की चेतावनी केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि शिक्षा नीति में सुधार की पुकार है जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।