
Putin-Xi's discussion on immortality and organ transplantation in Beijing sparks global debate. (Shah Times)
बायोटेक्नोलॉजी से अमरता: पुतिन-शी की चर्चा पर विवाद
अमरता पर पुतिन-शी की बातचीत ने उठाए सवाल
बीजिंग में पुतिन-शी चिनफिंग की हॉट माइक बातचीत में अमरता, बायोटेक्नोलॉजी और अंग प्रत्यारोपण पर चर्चा ने वैश्विक बहस छेड़ी।
बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर में आयोजित भव्य सैन्य परेड का एक अनपेक्षित मोड़ उस वक़्त सामने आया जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच हुई एक हॉट माइक बातचीत अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों का हिस्सा बन गई। दोनों नेताओं ने अमरता (Immortality) की संभावना, जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) और अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplant) के ज़रिये इंसानी उम्र को बढ़ाने पर अपने विचार साझा किए।
पुतिन का विवादित दावा
पुतिन ने हल्के अंदाज़ में कहा कि लगातार अंग प्रत्यारोपण के ज़रिये इंसान हमेशा जवान रह सकता है और शायद अमरता भी प्राप्त कर सकता है। यह बयान वैज्ञानिकों, बायोएथिक्स विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय पॉलिसी विश्लेषकों के लिए चर्चा का केंद्र बन गया।
अंग प्रत्यारोपण की नैतिक चुनौती
यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर अमरता की राह अंग प्रत्यारोपण से होकर गुजरती है तो उन अंगों का स्रोत क्या होगा। चिकित्सा जगत मानता है कि प्रत्यारोपण योग्य अंग एक Rare Medical Resource हैं। इन्हें किसी एक व्यक्ति, विशेषकर सत्ता में बैठे नेताओं की दीर्घायु के लिए उपयोग करना अन्य ज़रूरतमंदों को वंचित कर सकता है।
आज का शाह टाइम्स ई-पेपर डाउनलोड करें और पढ़ें
वैज्ञानिक विश्लेषण और संभावनाएं
प्रयोगशाला में विकसित अंग: एक विकल्प?
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पुतिन का इशारा शायद Stem Cell Technology और Lab-Grown Organs की ओर रहा होगा। आज की तारीख़ में वैज्ञानिक छोटे-छोटे Organoids यानी मिनी-अंग बना चुके हैं, जो रिसर्च में काम आते हैं। लेकिन Fully Functional Organs विकसित करना अभी भी विज्ञान की पहुंच से बाहर है।
प्रत्यारोपण और उम्र की सीमा
भले ही भविष्य में असीमित अंग उपलब्ध हो जाएं, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ शरीर की Resilience यानी लचीलापन घटता जाता है। बार-बार सर्जरी झेलना मुश्किल हो जाता है। और सबसे अहम बात—हम अपने दिमाग का प्रत्यारोपण नहीं कर सकते। यानी हमारी असली पहचान, चेतना और यादें—ये सब उम्र के साथ कमजोर ही होती जाएंगी।
दीर्घायु के अन्य रास्ते
विज्ञान ने Longevity Research में काफी प्रगति की है। प्रयोगशाला में चूहों, बंदरों और मक्खियों की उम्र Diet Modification, Cellular Reprogramming और Genetic Engineering से बढ़ाई गई है। लेकिन इन्हें सीधे इंसानों पर लागू करना आसान नहीं। फिर भी यह संभावना जीवित है कि आने वाले दशकों में इंसान की जीवन-सीमा 100 से 150 साल तक पहुंच सकती है।
—
राजनीतिक और सामाजिक पहलू
वैश्विक ताकतों का दृष्टिकोण
चीन और रूस, दोनों ही देश Biotechnology को अपनी राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा बना रहे हैं। अगर अमरता या दीर्घायु की तकनीक विकसित होती है, तो उसका इस्तेमाल सत्ता संतुलन और भू-राजनीतिक खेल में भी हो सकता है। सवाल उठता है कि क्या ऐसी तकनीकें सभी के लिए उपलब्ध होंगी, या केवल चुनिंदा वर्ग तक सीमित रह जाएंगी?
नैतिकता बनाम सत्ता
कई बायोएथिक्स विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि जीवन बढ़ाने की होड़ Inequality को और गहरा सकती है। अगर सिर्फ अमीर और शक्तिशाली लोग ही लंबे समय तक जीवित रहेंगे, तो सामाजिक असंतुलन और बढ़ सकता है।
काउंटरपॉइंट्स
1. विज्ञान का यथार्थ – अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि इंसान उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को पूरी तरह रोक सकता है।
2. नैतिक दुविधा – अंग प्रत्यारोपण पर आधारित अमरता का विचार सामूहिक हितों के विरुद्ध हो सकता है।
3. व्यावहारिक कठिनाई – सर्जरी, रिकवरी और मानसिक सीमाएं इस विचार को अव्यावहारिक बनाती हैं।
4. विकल्प मौजूद – स्वास्थ्यवर्धक जीवनशैली, चिकित्सा सुधार और नई दवाएं ही फिलहाल दीर्घायु की वास्तविक दिशा हैं।
—
निष्कर्ष
पुतिन और शी चिनफिंग की यह बातचीत चाहे मज़ाकिया लहज़े में हुई हो, लेकिन उसने एक गहन बहस छेड़ दी है। सवाल यह नहीं कि अमरता संभव है या नहीं, बल्कि यह है कि विज्ञान की प्रगति का लाभ किसे मिलेगा और उसकी नैतिक सीमाएं क्या होंगी।
आज के दौर में दीर्घायु की खोज इंसान की जिज्ञासा और विज्ञान की सीमाओं को चुनौती दे रही है। लेकिन अमरता की राह सिर्फ विज्ञान से नहीं, बल्कि नैतिकता, सामाजिक न्याय और राजनीतिक इच्छाशक्ति से होकर भी गुज़रती है।